बहुत लोग ईश्वर की पूजा इस प्रकार करते हैं मानो सचमुच ही भक्त हों, पर जीवन ऐसा जीते हैं मानो उनकी नास्तिकता में कोई कसर नहीं रही।
दिन के बाद रात आती है और रात के बाद दिन। दोनों के अपने -अपने उपयोग हैं और अपने-अपने तकाजे। हमें समय के अनुरूप बदलना चाहिए और किसी आग्रह विशेष पर अड़े नहीं रहना चाहिए।
नीति और कर्त्तव्य पालन के सम्बन्ध में दृढ़ता अपनाना आवश्यक है। बाकी यही सोचना चाहिए कि हर किसी को बदल सकना अपने हाथ की बात नहीं है। परामर्श किया जा सकता है पर इतना आग्रह न किया जाय कि टकराव की स्थिति उत्पन्न हो। सामान्य लोक व्यवहार में ऐसी ही काम चलाऊ नीति अपनानी पड़ती है। मात्र अनीति से असहयोग करना ही पर्याप्त है। विरोध की परिस्थितियां हों तो संघर्ष भी किया जा सकता है।