चिकित्सा क्षेत्र में ध्यानयोग का प्रवेश

March 1986

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वेलिंगटन विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक टाम ज.रौट ने अपने अध्ययन में पाया है कि- ध्यान का अभ्यास करने वाले साधक की शारीरिक क्षमता सामान्य और सुचारु रूप से सम्पादित होने लगती है। ध्यान के बाद भी अभ्यास कर्त्ता की श्वसन गति धीमी एवं आरामदायक रूप में चलती रहती है। धीरे-धीरे श्वसन गति की दर कम हो जाती है जो स्वास्थ्य के लिए सुखद मानी जाती है।

वैज्ञानिक डैविड डब्ल्यू. ओर्मे जान्सन ने “आटोनामिक स्टैबिलिटी एण्ड मेडीटेशन” पर अपने अनुसन्धान में पाया है कि- ध्यान के द्वारा तन्त्रिका तन्त्र के क्रियाकलापों में एक नई चेतना आ जाती है और उनके सभी कार्य नियमित एवं स्थायी रूप में होने लगते हैं। शरीर की त्वचा बाह्य वातावरण के प्रति प्रतिरोधी क्षमता धारण कर लेती है और उस पर आये दिन पड़ने वाले वातावरण के तनाव, मनःकायिक बीमारियां (साइकोसोमैटिक डिसीज), व्यावहारिक अस्थायित्व एवं तन्त्रिका तन्त्र की विभिन्न कमजोरियां आदि दूर हो जाती हैं। शरीर के अन्दर शक्ति का संरक्षण और भण्डारण होने लगता है और यह अतिरिक्त ऊर्जा शरीर और मन के विभिन्न कार्यों व्यवहारों को अच्छे ढंग से सम्पादित करने के कार्य में प्रयुक्त होने लगती है।

ध्यान का अभ्यास करने वाले व्यक्ति तनाव जैसी मानसिक बीमारियों से जल्दी ही छुटकारा पा लेते हैं। यह कार्य उनके शारीरिक ताँत्रिक तन्त्र की क्रियाशीलता बढ़ जाने के परिणाम स्वरूप होता है।

अमेरिका के वैज्ञानिक द्वय राबर्ट शा और डैविड कोल्ब ने ध्यान के अभ्यासियों पर किए गये अपने प्रयोगों में पाया है कि ध्यान करने वाले लोगों में शरीर और मस्तिष्क के बीच अच्छा समन्वय, सतर्कता में वृद्धि, मति मन्दता में कमी और प्रत्यक्ष ज्ञान, निष्पादन क्षमता, एवं रिएक्शन टाइम में वृद्धि असामान्य रूप से होती है।

मिरर स्टार- ट्रेसिंग टेस्ट में भी ऐसे व्यक्ति अग्रणी निकले हैं। उनके शारीरिक न्यूरोमस्कुलर समाकलन की दक्षता बहुत बढ़ी-चढ़ी हुई पाई गई।

आन्द्रे एस. जोआ ने हालैण्ड में हाई स्कूल के छात्रों को एक वर्ष तक ध्यान का अभ्यास कराया। नियमित ध्यान करने वाले छात्रों की सामान्य विद्यार्थियों की अपेक्षा बुद्धि क्षमता में बहुत अधिक वृद्धि पाई गई। कठिन मामलों के हल प्रश्नों के उत्तर देने में ध्यान करने वाले छात्र अग्रणी रहे। इनकी स्मृति क्षमता में भी वृद्धि हुई। शैक्षणिक-प्रदर्शन में ये छात्र सर्वश्रेष्ठ रहे।

वैज्ञानिक विलियम सीमैन ने बताया है कि प्रथम दो महीने तक ध्यान करने वाले व्यक्तियों के व्यक्तित्व में विकास होते देखा गया है। ध्यान का अभ्यास नियमित क्रम से करते रहने पर अन्तःवृत्तियों अंतःशक्तियों पर नियन्त्रण पाया जा सकता है और चिन्ता मुक्त हुआ जा सकता है।

थियोफेर नामक वैज्ञानिक ने अपने अध्ययन में पाया है कि ध्यान करने वाले व्यक्तियों की साइकोलाजी में असाधारण रूप से परिवर्तन होता है। ऐसे व्यक्तियों में घबराहट, उत्तेजना, मानसिक तनाव, साइकोसोमैटिक बीमारियाँ, स्वार्थपरता आदि विकारों में कमी पाई गई है तथा आत्म-विश्वास और सन्तोष में वृद्धि, सहन शक्ति, साहसिकता, सामाजिकता, मैत्री भावना, जीवटता, भावनात्मक स्थिरता, कार्यदक्षता, विनोदप्रियता, एकाग्रता जैसे सद्गुणों की वृद्धि ध्यान के प्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं।

वैज्ञानिक द्वय विलियम पी. वानडेनबर्ग और बर्ट मुल्डर ने नीदरलैण्ड में विभिन्न उम्र, लिंग और शैक्षणिक योग्यता वाले ध्यान के अभ्यासकर्त्ताओं पर किये गये अपने सप्ताह के प्रयोगों में पाया है कि ध्यान कर्त्ताओं के दृष्टिकोण में आमूल-चूल परिवर्तन हो गया। उनमें भौतिक और सामाजिक अपर्याप्तता, दबाव एवं कठोरता युक्त व्यवहार में कमी आई तथा आत्म-सम्मान की वृद्धि हुई।

मिनेसोटा के प्रसिद्ध चिकित्सक डेविड डब्ल्यू. आर्मेजान्सन ने ध्यान का प्रयोग व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य सुधारने में किया। कुछ महीनों तक ध्यान का अभ्यास करने पर उन्हें लोगों के व्यक्तित्व में आशाजनक सत्परिणाम देखने को मिले। हाइपोकोन्ड्रिया, साइजोफ्रेनिया, टायलर मेनीफेस्ट एंक्जाइटी जैसी बीमारियों को ध्यान द्वारा नियन्त्रित करने में भी जान्सन को सफलता मिली। अधिक दिनों तक ध्यान के नियमित अभ्यास का क्रम बनाये रखने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में असाधारण रूप से वृद्धि होती है।

मनोवैज्ञानिक द्वय फिलिप सी. फर्गुसन और जॉन सी. गोवान का निष्कर्ष है कि बहुत दिनों तक ध्यान का अभ्यास करते रहने पर व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को जान लेता है। छह सात सप्ताह तक नियमित ध्यान का अभ्यास करने वाले व्यक्ति चिन्ता और तनाव मुक्त होते देखे गये हैं। ध्यान में लगाया गया अधिकाधिक समय चक्रवृद्धि ब्याज सहित सत्परिणाम देता है।

वैज्ञानिकों का मत है कि ध्यान का प्रयोग उच्च रक्त चाप को कम करता है। हर्बर्ट बेन्सन और रार्बट कीथ वैलेस ने उच्च रक्तचाप युक्त 22 बीमार व्यक्तियों का ध्यान के पूर्व और ध्यान के बाद 1119 बार उनका सिस्टोलिक और आर्टीरियल ब्लड प्रेशर रिकार्ड किया। ध्यान करने के बाद उक्त रोगियों के रक्तचाप में महत्वपूर्ण कमी आँकी गई।

इन्हीं वैज्ञानिक द्वय ने शराब और सिगरेट पीने वाले नशा होने के आदी 1862 व्यक्तियों को 20 महीने तक ध्यान का अभ्यास कराया। धीरे-धीरे नशे की आदत छूटती गई और जो लोग पहले तनाव, श्वास-खाँसी के मरीज बने थे, उनके स्वास्थ्य सुधरने लगे।

वैज्ञानिक फ्रैंक पैपेन्टिन ने अपने अनुसन्धान- “ध्यान और शुद्धिकरण” में बताया है कि ध्यान का नियमित अभ्यास करने से मनुष्य के शरीर की जीवन शक्ति बढ़ती है- इम्यून सिस्टम विकसित होता है। फलतः आये दिने धर दबोचने वाली अनेकों छूत की बीमारियों- संक्रामक बीमारियों से सहज ही छुटकारा मिल जाता है। फ्रैंक का कहना है कि संक्रामक बीमारियों के ग्रस्त 408 व्यक्तियों को ध्यान का अभ्यास कराने पर 70 प्रतिशत व्यक्ति प्रतिवर्ष की दर से अच्छे होते देखे गये। एलर्जी से त्रस्त 156 व्यक्तियों में से 56 प्रतिशत व्यक्तियों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ अथवा वे एलर्जी से मुक्त हुए। इससे स्पष्ट होता है कि ध्यान करने से व्यक्ति की जीवनी शक्ति में वृद्धि होती है।

40 घण्टों तक निद्रा से वंचित और तनाव से ग्रस्त व्यक्तियों को ध्यान का अभ्यास कराया गया। ध्यान के बाद उन्हें गहरी निद्रा आई और वे अपने को स्वस्थ अनुभव करने लगे। यह बात डा. डोनाल्ड ई. मिस्कीमैन ने अपने अनुसन्धान “क्षतिपूरक विरोधाभासी निद्रा पर ध्यान का प्रभाव” में कही है। उनके अनुसार ध्यान के अभ्यास द्वारा इन्सोम्निया- अनिद्रा रोग पर सहज में ही विजय पाई जा सकती है।

इरा एम. क्लेमोन्स नामक वैज्ञानिक ने ध्यान के प्रयोगों द्वारा 46 व्यक्तियों के दाँत की बीमारियों- मसूड़ों के रोगों पर जीवनी शक्ति बढ़ाकर नियन्त्रण कर दिखाया। क्लेमोन्स के अनुसार ध्यान करने से रोगी की प्रतिरोधी सामर्थ्य बढ़ जाती है और तब उसकी बीमारियों पर चिकित्सा द्वारा आसानी से नियन्त्रण पाया जा सकता है।

ध्यान योग अब चिकित्सा विज्ञान में एक विधा के रूप में प्रतिष्ठा पा चुका है और वह दिन दूर नहीं जब असाध्य रोगों का उपचार एवं सम्भावित रोगों से रोकथाम हेतु चिकित्सक किसी औषधि का प्रयोग न कर पहले रोगियों को ध्यान की कसौटी पर परखेंगे।


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