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March 1986

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प्रभु, तुम्हारे इस उद्यान में मुझे किस बात की कमी है। उमड़ते बादल, बहते निर्झर, हरीतिमा से भरे बिछावन मेरे लिए पर्याप्त हैं और फिर तुम मुझे खाली पेट भी तो नहीं सोने देते। भोजन दोनों बार मुझे मिल जाता है। तन भी उघाड़ा कहाँ रहा। मरे परमेश्वर तुम मुझे अब तक सत्पथ पर चलाते लाये हो। अगले दिनों इतना करना कि मेरी प्रीति तुम्हारे साथ छूटने न पाये। तुम्हारे प्रकाश में मुझे भटकाव न घेरे इतनी भर आकाँक्षा और प्रार्थना है।

-सेन्टपाल


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