प्रगति में लगन का योगदान

March 1986

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किन्हीं-किन्हीं बच्चों में छोटी आयु से ही पढ़ने में असाधारण रुचि होती है। जो वे पढ़ते हैं वह याद भी हो जाता है और भविष्य में भी चिरकाल तक स्मरण बना रहता है। ऐसे बच्चे परीक्षाओं में साथियों की तुलना में अधिक जल्दी उत्तीर्ण होते जाते हैं और अपनी प्रतिभा से संपर्क में आने वाले सभी को प्रभावित करते हैं।

इन दिनों आयु का भी बन्धन है पर कुछ शताब्दियों पूर्व ऐसा बन्धन नहीं था। प्रतिभा और योग्यता की कसौटी पर खरे उतरने वाले पदाधिकारी बना दिये जाते थे चाहे उनकी आयु कम ही क्यों न हो? जो स्वयं पढ़ने के अतिरिक्त दूसरों को भी पढ़ाने की क्षमता प्रदर्शित करता था वह बिना रोक-टोक कम आयु होते हुए भी अध्यापन कार्य करने लगता था।

जिन्हें विद्या में वास्तविक रुचि है उनका शिक्षाकाल आजीवन चलता है। वे आजीविका उपार्जन भी करते रहते हैं और साथ ही विद्यार्थियों की भाँति आगे का शिक्षण कार्य भी जारी रखते हैं। ऐसों को ही उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँचने का अवसर मिलता है।

शिक्षा में अभिरुचि का असाधारण स्तर का होना पूर्व जन्मों के संचित संस्कारों का भी प्रतिफल है।

जिन्हें विद्याध्ययन में रस आने लगता है, उनके लिए उस क्षुधा पूर्ति करते रहना एक प्रिय विषय बन जाता है। उसी तरह जिस तरह कि व्यसनी अपने शौक चाव की पूर्ति को ही एक बड़ी उपलब्धि मानकर उसके लिए किसी भी प्रकार समय निकाल लेते हैं और तन्मयता पूर्वक बिना ऊबे, उकताये अपनी गतिविधियों को निरन्तर जारी रखते हैं।

इंग्लैंड के प्रसिद्ध रोज पब्लिक स्कूल में जब फिलिप हैरंद्यम हैडमास्टर बने, तब वे पूर 18 वर्ष के भी नहीं होने पाये थे। वे व्यवस्था बड़ी कुशलतापूर्वक चलाते थे और साथ ही विद्यार्थियों को पढ़ाते भी थे। इसके अतिरिक्त उनने आगे की अपनी पढ़ाई भी जारी रखी।

अरकन्सास के एक असाधारण विद्वान और प्रबन्धक अपने जीवन काल में पाँच कालेजों के अध्यक्ष रहे और उन्हें आजीवन व्यवस्थापूर्वक चलाते रहे।

केन्टुकी लेबनान का एक प्रतिभाशाली बालक 14 वर्ष की आयु में सेन्ट मेरीज कालेज की उच्च कक्षाओं को गणित पढ़ाने वाला अध्यापक नियुक्त हुआ। बिना किसी की सहायता के वह अपनी प्रतिभा के बल पर ऊँचा उठता गया और वाल्टीमोर का आर्क बिशप बना।

सन् 1900 में रदर फोर्ड कालेज से चार्ल्स बीवर सर्वोच्च परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ। वह प्रतिभाशाली छात्र उसी वर्ष कालेज का अध्यक्ष भी चुन लिया गया।

शिकागो विश्वविद्यालय के संस्थापक विलियम रैनेहायर ने हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करके मरकिंगम कालेज में प्रवेश पा लिया था। वे प्रसिद्ध शिक्षाविद् के रूप में प्रख्यात हुए। 9 कालेजों के अध्यापक बनाये। उनका प्रत्येक क्षण शिक्षा सेवा में ही संलग्न रहा।

सन् 1630 में जन्मा एक जर्मन छात्र 16 वर्ष की आयु में यूनानी, लेटिन और हिब्रू भाषाओं में कविता लिखने लगा था। तभी से वे छपने भी लगी थीं।

आँखें चली जाने और शरीर को लकवा मार जाने के बाद फ्राँसीसी इतिहासकार अगास्टि ने मुँह से बोलकर और दूसरों से लिखाकर इतिहास के अत्यन्त सम्पादित 28 ग्रन्थ लिखाये।

अंग्रेजी उपन्यासकार चार्लोट योन्ज 7 वर्ष की आयु से एक रविवासरीय स्कूल में धर्म शिक्षा लेने जाया करता था। बड़ा होने पर उसने उसी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया और 71 वर्ष की आयु तक उस व्रत को निवाहा।

वोडोइन कालेज के अध्यापक एल्फुअस लगातार 66 वर्ष तक अध्यापक का काम करत रहे। रिटायर होने के नियमों को उन्होंने स्वीकार नहीं किया। बिना वेतन लिए भी वे मरण तक अध्यापन करते रहे।

बेंजामिन शुल्क को 100 विदेशी भाषाएँ आती थीं। उसने आजीवन उन भाषाओं में बाइबिल का अनुवाद किया। शुल्ज की मृत्यु 1760 में हुई।

एम्बडन की अध्यापिका ओजियन्स को नये स्कूल खोलने की भारी लगन थी। उसने 30 वर्षों तक पढ़ाया। प्रथम वर्ष स्वयं ही संचालिका और अध्यापिका रही। इस प्रकार उसे 30 स्कूलों की संस्थापिका और प्रधानाध्यापिका रहने का गौरव प्राप्त हुआ।

जहाँ तक प्रकाशन का सम्बन्ध है, पहला नम्बर बाइबिल का है। बाइबिल और उसके अन्यान्य हिस्से 1735 भाषाओं में अनूदित हुए। 1875 से 1875 के बीच इसकी 250 करोड़ प्रतियाँ छपी इसके बाद दूसरी पुस्तक चीन के अधिनायक माओ लिखित “लाल किताब” का नम्बर आता है जो अब तक 100 करोड़ बिकी या वितरित हुई। यह किसी एक व्यक्ति ने नहीं किया पर यह भी एक समूह की लगन का परिणाम है।

इस प्रकार की विधा, लगन और प्रतिभा कोई भी अर्जित कर सकता है। शर्त एक ही है कि अपने विषय में समूची तन्मयता और तत्परता को नियोजित कर दिया जाय और अपने विषय में रस आने लगे।

शिक्षा की ही भाँति चिकित्सा भी जनसेवा का कार्य है। उसमें दूसरों का स्वास्थ्य सुधारने के अतिरिक्त अपने स्वास्थ्य की साज सम्भाल रखने का भी ध्यान रहता है। ऐसे सेवाभावी चिकित्सक प्रायः दीर्घजीवी पाये जाते हैं और लम्बे समय तक उनका शरीर उस कार्य को करते रहने योग्य बना रहता है।

हारवर्ड विश्वविद्यालय में डाक्टर की डिग्री प्राप्त करने वाला एडवर्ड होलियोक सन् 1728 में जन्मा और पूरा सौ वर्ष का होकर 1828 में मरा। उसने 80 वर्ष तक चिकित्सा कार्य पूरी तत्परता के साथ किया। घर में अस्पताल तक वह 7 मील रोज पैदल चलकर जाता था। गम्भीर आपरेशन करने योग्य उसका शरीर 90 वर्ष की आयु तक बना रहा।

लैग हाम्स (स्काट लैण्ड) का एक डॉक्टर जेम्स पुअट सन् 1656 में पैदा हुआ और 1776 में 120 वर्ष जीवित रहने के उपरान्त मरा। वह 95 वर्ष की आयु तक सर्जरी में अपनी निपुणता सिद्ध करता रहा।

इस प्रकार की सफलताएँ भाग्य के ऊपर नहीं लगन और रुचि के ऊपर निर्भर हैं। इन विशेषताओं को अपने में उत्पन्न करके कोई भी ऐसी ही सराहनीय स्थिति तक पहुँच सकता है।


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