सार्त्र ने जीवन के अन्तिम दिन तक उपयोगी काम करते रहने का सिलसिला जारी रखा। वे अपने को कभी थका हुआ या परिस्थितियों की प्रतिकूलता से हारा हुआ नहीं मानते थे। वे समझौते की नीति पर विश्वास करते थे और कहते थे कि यदि परिस्थितियां अपने अनुकूल नहीं बन सकती तो हमें उनके अनुकूल बनना चाहिए। खींच-तान की अपेक्षा समझौते की नीति अपनानी चाहिए। केवल अनीति ही एक ऐसा असमंजस है जिसके साथ न तो सहमत ही हुआ जा सकता है और न उसका साथ दिया जा सकता है।