‘स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है’ के मन्त्रदाता लोकमान्य तिलक के आजीवन शिवाजी जैसी स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी। उनने दौरे करके अपने ‘केशरी’ पत्र द्वारा जन-जन में नव चेतना का संचार किया।
उनने वकालत पास भर की पर लगे सदा आजादी की वकालत करने में ही रहे। संगठन, जन-जागरण और संघर्ष के त्रिविधि कार्यक्रमों में वे सदा चक्रव्यूह रचते रहे। इसलिए अंग्रेजों की आँखों में सदा खटकते और जनता ने उन्हें अपना हृदय सम्राट माना। उनका धर्मशास्त्रों का ज्ञान अगाध था।
महाराष्ट्र में जन-चेतना भरने के लिए उन्होंने गणेशोत्सव और शिवाजी जयन्ती के दो पर्व इस प्रकार चलाये कि उन्होंने महाराष्ट्र के सोये पराक्रम को जगा दिया। उन्हें बार-बार जेल जाना पड़ा। एक बार तो उन्हें वर्मा की माँडले जेल में भेजा गया।
देश में राष्ट्रीयता का बिगुल बजाने में तिलक अग्रणी थे। उनके प्रभाव से काँग्रेस को बलवती होने का अवसर मिला।