अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी न कर घर के व्यामोह में फंसे रहने वाले सदा दुत्कारे ही जाते हैं। छत की मुड़ेर पर नित्य काला कौआ आकर बैठता। छोटा बालक माता से रोज पूछता यह काला क्यों है? और इतनी जल्दी क्यों आता है? घर आकर क्या कहता है?
एक दिन माता को उत्तर सूझ पड़ा। उसने बताया- यह भक्ष-अभक्ष कुछ भी खाता है इसलिए इसका मुँह काला है। कटु-कर्कश बोलता है इसलिए जगह-जगह मारा-मारा फिरता है। घर-घर जल्दी पहुँच कर यह कहता है, मेरा जैसा अशांत, अपमानित जीवन और कोई न जिये। जीवन का उत्तरार्ध- पूर्वार्ध से श्रेष्ठ हो। परमार्थ के कार्य में लगे हर व्यक्ति को सोचना व इसके लिये सुनियोजित कदम पूर्व से ही उठाना चाहिए।