आये दिन की समस्याएँ और उनके समाधान

March 1986

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सामने प्रस्तुत समस्याओं में से अधिकांश की जड़ें अपने भीतर होती हैं। ऐसी घटनाएँ कम ही होती हैं जिन्हें दुर्घटना या आक्रमण कहा जा सके। ऐसी विपन्नताएँ सामने आने पर हड़बड़ाने की अपेक्षा धैर्यपूर्वक यह सोचना चाहिए कि तात्कालिक संकट का निवारण करने के लिए क्या किया जाना चाहिए। उपाय अवश्य सूझ पड़ेगा और उनका सहारा लेने पर, संकट से उबरने का अवसर भी मिल जाएगा।

यदि कमजोरी अपनी है तो उसे सुधारनी चाहिए अन्यथा शरीर में घुसा हुआ विष आज नहीं तो कल, इस रूप में नहीं तो उस रूप में सामने आये बिना न रहेगा। दूसरों को सुधारना कठिन है। जो प्रतिकूल हैं उन्हें अनुकूल बनाने में कठिनाई हो सकती है किन्तु यह सरल है कि अपने जिन दुर्गुणों के कारण दूसरे विरोध करते हैं या द्वेष मानते हैं, उन गलतियों को आत्म-निरीक्षण द्वारा स्वयं समझकर सुधारा जाय।

उत्तेजित मस्तिष्क में एक और भी दुर्गुण है कि वह वस्तुस्थिति को नहीं समझने देता। अपने को निर्दोष और दूसरों को दोषी ठहराने के लिए वकीलों जैसे तर्क करता है। इससे सामने वाले को सहमत करना और अनुकूल बनाना कठिन पड़ता है। ऐसी दशा में यही उचित है कि किसी मध्यवर्ती को दोनों ओर की बात सुनाकर समाधान निकालने का प्रयत्न किया जाय।

समस्याओं के पीछे अधिकतर अपने ही दोष होते हैं। निजी व्यक्तित्व में शेष दुर्गुण भरे हों तो उसी स्तर के मित्र सहयोगी मिलेंगे। उनकी बढ़ोत्तरी और सलाह ऐसी होगी जिससे उलझन सुलझे नहीं वरन् और अधिक उलझे, इसलिए अपने स्वभाव और व्यवहार को ऐसा रखना चाहिए जिनके कारण घनिष्ठता क्षेत्र में सज्जनों का ही प्रवेश होने पाए। उनका सान्निध्य एवं सहयोग अपने को सुधारने एवं ऊपर उठाने में ही सहायक होता है।

भले या बुरों से घनिष्ठता बढ़ाने और समस्या उत्पन्न करके समाधान से सहायता लेने की अपेक्षा तीसरा एक और भी मार्ग है कि पूरी तरह आत्म निर्भर रहा जाय। सीधे रास्ते चला जाय। सज्जनोचित व्यवहार किया जाय। इतने पर भी यदि समस्याएँ उत्पन्न होती हैं तो उनको महत्व न दिया जाय वरन् अपने दृष्टिकोण एवं व्यवहार में जितना हेर-फेर करने की आवश्यकता हो उसे कर लिया जाय। इसके उपरान्त साहस से काम लिया जाय। अपने ऊपर भरोसा रखा जाय और सोचा जाय कि इस संसार का नियम ही अनुकूलता प्रतिकूलता आते-जाते रहने का है। उसे बदला नहीं जा सकता अतः परिस्थिति के अनुसार तालमेल बिठाने के लिए सूझ-बूझ का परिचय दिया जाय।


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