Quotation

July 1986

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सांसारिक सफलताओं में पुरुषार्थ की अत्यधिक प्रगति के लिए आत्मपरिष्कार एवं श्रद्धा की आवश्यकता पड़ती है।

** ** **

जो शिक्षा मनुष्य को धूर्त, परावलंबी और अहंकारी बनाती हो, वह अशिक्षा से भी बुरी है।

अपने जीवन का महत्त्व समझें। उसे भटकावों में न बिताए, गर्त में न गिराए और निर्जीवों की तरह अपने को दुर्गंधभरी सड़न के रूप में परिणत न करें। इसकी पूरी-पूरी गुंजाइश है कि महामानवों का ही अनुसरण किया जाए। उनके ही पदचिह्नो पर चला जाए और वह कर गुजारा जाए, जिससे अपनी गणना मनस्वी, यशस्वी वर्ग में हो सके और विनाश के वातावरण का आमूलचूल परिवर्तन हो सके।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles