अपनी गतिविधियों में प्रखरता लाएँ

July 1986

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गतमास की अखण्ड ज्योति में वरिष्ठ प्रज्ञा परिजनों के करने योग्य पाँच कार्य बताए गए हैं। वे सभी एक-एक लाख की संख्या में पूरे होने हैं। पाँचों को मिलाकर वे पाँच लाख होते हैं। इनकी पूर्ति प्रज्ञा परिवार की विशालता को देखते हुए कुछ भी कठिन नहीं है। भावना और साहसिकता विद्यमान हो तो इतने काम मुट्ठी भर लोग भी कर सकते हैं। हजार आम के बगीचे लगाने वाले हजारी किसान की समता करने वालों की संख्या अपने परिवार में कम नहीं है।

जहाँ तक उत्साही परिजनों का संबंध है, अच्छा हो न्यूनतम एक वर्ष का वानप्रस्थ लिया जाए और उस समय में शान्तिकुञ्ज हरिद्वार रहकर या वहाँ के द्वार भेजे गए अन्य कार्यक्रमों में संलग्न रहने का व्रत लिया जाए। जिनकी घर से बाहर जाने की स्थिति है, उनके लिए ऐसा ही उदार साहस अपनाया जाना योग्य है।

जो घर से बाहर जितने समय जा सकते हैं, वे उसे जनजागरण की तीर्थयात्रा में लगावेंगे। जैसी उनकी योग्यता है, जिस प्रकार के कार्यक्रमों में उनकी उपयोगिता है, उसके लिए वे तत्पर रहेंगे। शान्तिकुञ्ज में रहकर या जहाँ भी उन्हें भेजा जाएगा, वह सौंपे हुए उत्तरदायित्व को पूरा करेंगे। जो घर छोड़कर अधिक समय के लिए बाहर नहीं जा सकते, वे स्थानीय क्रियाकलापों में ही संलग्न रहने का प्रयास पूरे उत्साह के साथ करते रहेंगे। घर रहकर या बाहर जाकर अनेक प्रकार की रचनात्मक क्रियाओं में अपना कौशल दिखाया जा सकता है।

स्थानीय क्रियाकलापों में संलग्न रहकर भी अभियान का सूत्रसंचालन उस क्षेत्र में किया जा सकता है। (1) झोला पुस्तकालय (2) जन्म दिवसोत्सव (3) दीवारों पर आदर्श वाक्य लेखन (4) प्रौढ़ शिक्षा (5) बालसंस्कारशाला (6) व्यायामशाला (7) अशोक-वाटिका एवं अन्य औषधीय वृक्षों का आरोपण (8) स्लाइड प्रोजेक्टर प्रदर्शन (9) टेप रिकार्डर से युग संदेश सुनाना जैसे कार्य आसानी से किए जा सकते हैं। श्रमदान-समयदान देने वाले कुछ साथी और भी मिल जाएँ तो स्वच्छता आंदोलन चलाया जा सकता है। घरेलू शाक-वाटिका लगाने के लिए लोगों को सहमत एवं उद्यत करना भी कुछ कठिन नहीं होना चाहिए। बालविवाह, खर्चीली शादियाँ, पर्दाप्रथा, मृतक भोज, नशेबाजी आदि कुरीतियों को मिटाने का सुधारात्मक कदम अपने घर में उठाकर दूसरों को उसका अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। भिक्षा व्यवसाय को प्रोत्साहन न मिले, ऐसा माहौल बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अल्प बचत, परिवार कल्याण जैसे कार्यों को समर्थन और प्रोत्साहन दिया जा सकता है। अपने ही इर्द-गिर्द नजर उठाकर देखा जाए तो ढेरों कार्य ऐसे दृष्टिगोचर होंगे, जिन्हें कार्यांवित करने के लिए कोई भी प्रतिभावान अपने प्रभाव का उपयोग कर सकता है। स्वयं करने लगना दूसरों से उन्हीं बातों का कराने के लिए कारगर तरीका है। मनस्वी जिस दिशा में चलते हैं, उसी दिशा में अन्यान्य लोगों के कदम भी उठने लगते हैं।

कार्यकर्त्ता उत्पादन और प्रशिक्षण ऐसा कार्य है, जिसे सर्वोत्कृष्ट और सर्वप्रथम श्रेणी में गिना जा सकता है। शान्तिकुञ्ज में इस बार जो “महा अभियान सत्र” आरंभ हुए हैं उनकी विशेषता बहुमुखी नेतृत्व कर सकने की क्षमता जगाना, तद्विषयक कौशल उभारना है। एक महीने के इस प्रशिक्षण से लौटने वाले शिक्षार्थी से यह आशा की गई है कि उसी से मिलता-जुलता प्रशिक्षण अपने गाँव में भी चलाएँगे और इसी स्तर की छोटी पाठशाला का गठन करेंगे। यह पाठशालाएँ शान्तिकुञ्ज के एक मासीय प्रशिक्षण की अनुकृति होंगी। इसमें चिंतन, चरित्र और व्यवहार को उत्कृष्टता तथा शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक प्रगतिशीलता के सिद्धांत और व्यवहार सिखाएँ-समझाएँ जाएँगे। इतना ही नहीं, सुगम संगीत, भाषण, संभाषण, धर्मकृत्यों के माध्यम से लोक-शिक्षण के विभिन्न पहलुओं के अध्यापनक्रम भी चलते रहेंगे। मूल उद्देश्य यह है कि आत्मनिर्माण और समाज-निर्माण के दोनों पक्षों से जनमानस को अवगत और अभ्यस्त किया जाए। शान्तिकुञ्ज में सीमित स्थान है। उसी तक सभी का प्रशिक्षण सीमित कर दिया जाए तो अभीष्ट प्रगति में वर्षों लगेंगे, इसलिए उचित यही समझा गया कि शान्तिकुञ्ज के प्रशिक्षित शिक्षार्थी अपने-अपने स्थानों में सुविधा के समय कुछ घंटे की नित्य नवसृजन कक्षाएँ चलाया करें और नए-नए व्यक्तियों को मिशन के चिंतन एवं कार्यक्रमों से परिचित कराया करें, प्रशिक्षित करें। इस प्रकार अगले कुछ ही समय में वर्तमान प्रज्ञा-प्रशिक्षण लाखों नए सृजनशिल्पी तैयार कर देगा।

तीर्थयात्रा-पदयात्रा का स्वरूप साइकिल यात्रा काे दे दिया गया है। अपने-अपने क्षेत्र में प्रवास चक्र बनाकर दिन में दीवारों पर आदर्श वाक्य लिखना और रात्रि को संगीत-प्रवचन कार्यक्रम रखना, यह जनजागरण की सरल एवं प्रभावी-प्रक्रिया है। 7 दिन से 15 दिन तक की चार-चार व्यक्तियों की ऐसी प्रवास टोलियाँ निकलें तो तीर्थयात्रा का युग-प्रयोजन पूरा हो। बड़े शहर या कस्बे में तीर्थयात्रा करनी है तो उसके सात मुहल्लों को सात गाँव मानकर कार्यक्रम बनाया जा सकता है।

अपने गाँव या क्षेत्र में जनजागृति उत्पन्न करने के लिए एक ढाई दिवसीय प्रचार कार्यक्रम सभी समर्थ शाखाओं को संपन्न करना चाहिए। इसके लिए बहुत दौड़-धूप या तैयारी की आवश्यकता नहीं है। शान्तिकुञ्ज से प्रचार जीप गाड़ियाँ इसी प्रयोजन के लिए भेजी जाती हैं, जिनमें पाँच प्रचारक होते हैं। सभी में गायक और वक्ता की योग्यता होती है। वादन के सभी यंत्र साथ रहते हैं। साथ ही लाउडस्पीकर भी। यज्ञशाला मंच तथा प्रवचन मंच भी। यह सभी साधन जीपों में होने से स्थानीय कार्यकर्त्ताओं को स्थान का, विद्यालय का, रोशनी का प्रबंध करना भर बाकी रह जाता है। दो-दो की टोलियाँ आयोजन, निमंत्रण के पीले चावल घर-घर बाँटे तो प्राचीनकाल की निमंत्रण शैली बन पड़ती है और सुयोग्य विचारशील लोगों की उपस्थिति पर्याप्त संख्या में होती है। समय मालूम होने से जनता ठीक समय पर पहुँच भी जाती है।

किसी बड़े कस्बे या शहर में आयोजन करने हों तो यह अधिक अच्छा है कि एक दिन नगर के इस कोने पर, दूसरे दिन दूसरे कोने पर आयोजन किए जाएँ। इससे अधिक लोगों के सम्मिलित होने की, अधिक लोगों तक प्रचार प्रकाश पहुँचने की संभावना रहती है। जनसंपर्क से जनसमर्थन, जनसमर्थन से जनसहयोग और जनसहयोग से किसी भी संस्था का संगठन मजबूत होता है और अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य बन पड़ता है। प्रचार जीपें आश्विन नवरात्रि से चलेंगी और चैत्र की नवरात्रि तक उनका दौरा रहेगा। जिन्हें अपने यहाँ आयोजन करने हों उन्हें अभी से पत्र-व्यवहार करके स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए।

चूँकि अब हर महीने एक लाख के करीब प्रचारात्मक, रचनात्मक, सुधारात्मक कार्यक्रम संपन्न होने लगे हैं। उन सबके समाचार छापने के लिए हर महीने, हर प्रांत का विवरण छापने वाली दस अखण्ड ज्योतियाँ छपनी चाहिए। यह संभव नहीं, इसलिए नाम छपने की महत्त्वाकांक्षा को तिलांजलि देकर हमें निस्पृह सेवाभाव से ही कार्य में संलग्न रहना चाहिए।


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