यज्ञकृत्य की ही तरह एक भिन्न आकृति का कार्य वृक्षारोपण है। इसके लिए परिजनों को समय-समय पर प्रोत्साहित किया जाता रहा है। जिनके पास अधिक भूमि है, वे बड़े वृक्ष लगाएँ। धार्मिक दृष्टि से पीपल, वट, बिल्व, आँवला आदि का विशेष महत्त्व माना गया है। यों फलदार तथा दूसरे किस्म के पेड़ अपनी-अपनी उपयोगिता रखते हैं। अशोक-वाटिका आंदोलन को इन दिनों अधिक महत्व दिया गया है कि वह शोक की मनःस्थिति में भी अशोक की— शांति-सात्विकता की मनःस्थिति बनाती है। ऐसा झुरमुट एक ग्राम्य देवालय की पूर्ति करता है। वृक्ष भगवान की स्थापना देवालयों में स्थापित पाषाण-प्रतिमाओं से किसी भी प्रकार कम महत्त्व की नहीं है; चूँकि अशोक धीमे बढ़ने वाला वृक्ष है, एक वृक्ष अशोक का, शेष आँवला, अर्जुन, सहजन, कचनार के चार वृक्ष मिलाकर एक वाटिका बनाई जा सकती है। ये सभी औषधीय पौधे हैं।
अपनी या किसी पूर्वज की स्मृति में सभी को वृक्ष लगाना चाहिए। पुत्रवत् उसका पालन करना चाहिए। उन्हें देव संज्ञा देनी चाहिए। भूमि अपने पास न हो तो दूसरे की भूमि में उसी के लिए अपने श्रम से पेड़ लगाने चाहिए।
शान्तिकुञ्ज में महर्षि चरक की परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए एक जड़ी-बूटी उद्यान लगा है। उसकी उपयोगिता और चमत्कारी परिणतियाँ दिन-दिन अधिक प्रखर और प्रख्यात होती जा रही हैं।
चाहा गया है कि जिनकी इस संदर्भ में अभिरुचि है, जिनके पास भूमि की, सिंचाई की व्यवस्था है, वे भी एक छोटा जड़ी-बूटी उद्यान लगाएँ। देखभाल, साज-संभाल की उसमें विशेष आवश्यकता है। इस विषय में शान्तिकुञ्ज से अपने यहाँ लग सकने वाली बूटियों की पौध प्राप्त की जा सकती है। इससे बिना फीस कीमत का एक ग्रामीण अस्पताल चल सकता है। जो हजारों रुपयों को डाक्टरों की जेब में अनावश्यक रूप से डालना नहीं चाहते अथवा उनकी वैसी स्थिति नहीं है, वे इन वनौषधियों के सहारे जीवन लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अच्छा होता प्रज्ञा परिजनों ने एक-एक लाख के जहाँ पाँच संकल्प लिए हैं, वहाँ अशोक-वाटिका के साथ ही जड़ी-बूटी उद्यान लगाने की बात भी ध्यान में रखें। स्वयं लगाएँ या जो लगा सकने की स्थिति में हैं, उन्हें प्रोत्साहित करें। यह एक लाख अस्पताल निर्धन किंतु सघन-क्षेत्र में खोलने जैसा पुण्य है। इसका महत्त्व समझा जाना चाहिए और उत्साहपूर्वक सतत प्रयत्न किया जाना चाहिए।
इस वर्ष इस पक्ष का सबसे सरल कदम तुरंत उठाने के लिए प्रत्येक प्रज्ञा परिजन को कहा गया है। यह इस रूप में कि घर-आँगन में तुलसी का बिरवा रोपा जाए। बच्चों की खिलवाड़ से कुछ ऊँचे साइज की एक चबूतरी बनाई जाए और उसके बीच में खाद-पानी की सुविधा वाला गड्ढा बनाकर तुलसी की पौध लगाई जाए।
इसके लिए एक लाख पौधे शान्तिकुञ्ज में तैयार किए गए हैं, जिन्हें स्थापना के लिए हर परिजन को दिया जाएगा। जो ले जाएँगे, उनसे आशा की जाएगी कि जब मार्गशीर्ष में उसके बीज पक जाएँ तो स्वयं नई पौध बना लें और बसंत पंचमी के दिन उसी प्रकार की स्थापना 24 घरों में कराने की पहले से ही तैयारी कराकर रखें। इस प्रकार शान्तिकुञ्ज में प्रेरित पौधों की दूसरी पीढ़ी 24 लाख की संख्या में लहराती हुई दृष्टिगोचर होनी चाहिए। मार्गशीर्ष में पके बीजों की पौध बसंत पंचमी तक बढ़ाने और लहलहाने की स्थिति में हो सकती है।
तुलसी के हजारों लाभ हैं। वह वायुशोधक, कृमि-निवारक और रोग-संहारक है। किस रोग में तुलसी किस प्रकार दी जाए इसकी जानकारी अनुपान भेद से चिकित्सारूप में मिशन द्वारा प्रकाशित इस संबंध में पुस्तकों से ली जा सकती है।
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