कौन, कितना जिया इसका लेखा-जोखा इस आधार पर लिया जाना चाहिए कि उसने कितना आनंद पाया और कितना लुटाया।
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जब मनुष्य के भीतर उचित और अनुचित का अंतर्द्वन्द्व उठ खड़ा हो तो समझना चाहिए कि सुख-शांति के दिन नजदीक आ गए।