मृत्यु जीवन का अंत नहीं है

July 1986

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विश्वविख्यात अंग्रेज साहित्यकार ऑस्कर वाइन्ड अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध थे। मरणोत्तर जीवन और प्रेतात्माओं के अस्तित्व के संबंध में वे सदा असहमति प्रकट करते और मजाक उड़ाते रहे; किंतु कुछ घटनाओं ने उन्हें विचार बदलने के लिए विवश कर दिया। उनकी सतडडडडड पुत्री ने एक माध्यम के द्वारा ऐसे विवरण बताये और प्रश्न पूछे जिनके संबंध में उपस्थित लोगों में से किसी को कोई जानकारी न थी। यह घटना 8 जून 1925 की है। इसके बाद उनने इस विषय में रुचि लेना आरंभ किया और जो देखा-पाया उसका विवरण ऐसा था, जिससे उन्हें मृतात्माओं के अस्तित्व का पूर्ण विश्वासी कहा जा सके।

माइन्ड ओवर स्पेस, न्यू एप्रोचेज टु ड्रीम इन्टर प्रटेशन, एन साइक्लोपीडिया आफ साइकिक साइन्स, डिक्शनरी आफ दि अन्कान्शप्त आदि ग्रंथों के लेखक परामनोविज्ञानी नैनदोर फोदोर ने अपनी नई पुस्तक “दि इन एकाउन्टेबुल” में ऐसी कितनी ही घटनाओं का उल्लेख किया है, जिससे न केवल प्रेतात्माओं के अस्तित्व का; वरन उनकी प्रकृति तथा गतिविधियों पर भी प्रकाश पड़ता है। उन्होंने अपने परिचित दिवंगतों में से कितनों से ही संपर्क स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। इस संपर्क के माध्यम से जो तथ्य उन्हें उपलब्ध हुए वे ऐसे हैं, जिन्हें मनगढ़ंत नहीं कहा जा सकता। बताए गए विवरणों में से अधिकांश ऐसे थे, जिन्हें मृतात्मा के अतिरिक्त अन्य उँगलियों पर गिनने जितने लोग ही जानते हैं। उन विवरणों की यथार्थता ने अविश्वासियों में भी विश्वास उत्पन्न कर दिए।

मोनेरो रिसर्च इन्स्टीट्यूट वर्जिनिया के राबर्ट ए. मोनेरो ने मरणोत्तर जीवन पर आयोजित एक सम्मेलन में लगभग एक हजार व्यक्तियों के मरणोपरांत अनुभवों का संप्रेषण अवगत कराया। उन्होंने स्वयं दूसरी दुनिया में प्रवेश करने तथा एक अत्यंत विकसित सभ्यता से संपर्क साधने, उससे वार्त्तालाप करने की विस्मयकारी घटना को प्रस्तुत किया। अपने रोमांचकारी अनुभवों को उनने अपनी पुस्तक, जर्नीज आउट ऑफ दी बॉडी’ में भी प्रतिपादित किया है, जिसके अंतर्गत उनने बाल्यकाल से ही ऐसे परोक्ष अनुभवों से संबंधित घटनाओं का जिक्र किया है।

मनोविज्ञान के व्याख्याता डॉ. एन्ड्रियॉज रीस्क ने अमेरिका के एक वैज्ञानिक डॉ. केरियोस ओसिस का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिनने लगभग एक हजार शरीर से परे के अनुभवों को प्रमाणित किया है। इन सबों में यह अनुभव व्यक्त किया गया— मृत्यु के बाद वे शरीर के बाहर निकले, ऊपर को उड़े, मृतक संबंधियों का आगमन हुआ आदि। इस बात की पुष्टि स्विट्जरलैंड के एक शिल्पकार- हरीफन जैकोविच की इस उद्घोषणा से होती है कि जो दुर्घटनाग्रस्त होने से मृत्यु के शिकार हुए, वे हॉस्पिटल में पुनः जीवित हो उठे। कुछेक लोगों द्वारा स्वेत दिव्य प्रकाश तथा संबंधियों द्वारा आशीर्वचन का अनुभव व्यक्त किया पाया गया है। कुछ ने तो यह भी कहा कि मृत्योपरांत हमने शांति व प्रसन्नता का अनुभव किया; परंतु शरीर में प्रविष्ट होते ही पुनः कष्ट सा अनुभव होने लगा।

अमेरिका के जॉन अलेक्जेन्डर ने भी मृत्युपरांत जीवन की बात को सत्य बतलाया है। उनने यह भी कहा कि अपूर्ण इच्छाओं के कारण व्यक्ति मृत्यु के बाद भी कष्ट का अनुभव करता है तथा उसे अंधकार के वातावरण में रहना पड़ता है। इसके विपरीत संतोषी स्वभाव के सज्जन व्यक्ति चिर आनंद की अनुभूति लेते रहते हैं। जॉन अलेक्जेण्डर ने अपनी पुस्तक ‘घोस्ट’ में अब्राहम लिंकन के भूत शरीर को अमेरिका के ‘व्हाइट हाउस’ में चलने, दरवाजा खटखटाने तथा तत्कालीन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत होने की घटना को संकलित किया है। राष्ट्रपति रुजवेल्ट प्रायः लिंकन के दुःखी चेहरे को देखने तथा सभी कमरों में टहलने का अनुभव व्यक्त करते थे। ऐसा दृश्य यूनाइटेड स्टेट्स के जन आंदोलन समय तक देखा जाता रहा।

नीदरलैंड की रानी विथहेलमिनिया एक बार ‘रोज रूम’ में ठहरी थीं। रात को अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज हुई। उन्होंने दरवाजा खोला, परंतु सामने लिंकन को प्रत्यक्ष रूप में खड़े देखकर भयाक्रांत हो गईं। विंस्टन चर्चिल भी लिंकन के कमरे में जब भी सोते तो रात को लिंकन भी वहाँ उपस्थित पाते थे।

डॉ. मोनेरो ने इस रहस्यात्मक तथ्य के ऊपर विशेष अध्ययन करने हेतु एक ‘सिगनल जनरेटर’ का विकास किया है, जिसके द्वारा शरीर से आत्मा के पृथक होते समय शरीर में होने वाले धड़कनों की ध्वनि को रिकार्ड किया जा सकता है तथा इस आधार पर विशेष अध्ययन आरंभ किया जा सकता है। अभी इस दिशा में अंवेषण चल रहे हैं।

पुनर्जन्म प्रकरण में अगले जन्मों में पिछले जन्म से मिलती-जुलती प्रकृति एवं परिस्थिति प्राप्त होती है, ऐसा भी देखा गया है। कई बार तो कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्हें किन्हीं पूर्ववर्ती लोगों की ‘ट्रू कापी’ कहा जा सके। ऐसी परिस्थितियों को भी पुनर्जन्म के रूप में स्मरण किया जाता है।

दार्शनिक एम. एच. विलिस की मान्यता के अनुसार शोपेन हावर बुद्ध के अवतार थे। ऐनीवीसेन्ट पहले ब्रूनो थीं। सिसरो ने दूसरा जन्म ग्लैड स्टोन के रूप में लिया था।

पादरी जिम विशेष शत कैनेडी को अब्राहमलिंकन का अवतार मानते थे। फ्रांस के सन्त लुइस तो 539 वर्ष बाद सम्राट लुइस सोलहवें के रूप में जन्मे। दोनों की बहने भी साथ-साथ जन्मी और एक जैसी स्वभाव की थीं, इतना ही नहीं उन दोनों का नाम भी संयोगवश एक ही रखा गया। दोनों लुइसों की जीवनचर्या एवं घटनाक्रम में भी असाधारण समानता रही।

वर्जीनिया युनिवर्सिटी के परामनोविज्ञानी डॉ. स्टीवेन्सन ने मानवी अतींद्रिय क्षमताओं के खोज संदर्भ में यह मंतव्य भी प्रकट किया है कि पुनर्जन्म की घटनाओं का स्मरण हो आना भी एक वास्तविकता है। ऐसे विवरणों को कपोल-कल्पना मनगढ़ंत नहीं कहा जा सकता। यदि ऐसा होता तो उन अविज्ञात घटनाक्रमों का वर्णन सही न मिलता जो ऐसे लोगों द्वारा बताया गया। सिखाई-पढ़ाई बातें तो ऐसी ही हो सकती हैं, जो विदित हैं; किंतु जो सर्वथा अविज्ञात, नितांत व्यक्तिगत एवं महत्त्वरहित थीं, उनका विवरण बताने की घटना सुनी या मन से गढ़ी हुई नहीं हो सकती।


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