बूढ़े होने की बात ही न सोचें

July 1986

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राजनीति के क्षेत्र में बिन्सटन चर्चिल, वेंजामिन प्रेंकलिन, डिजरैली, ग्लेडस्टोन आदि अनेकों ऐसे ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं; जो अपनी वृद्धावस्था की चुनौती के बावजूद बहुत सक्रिय रहे, अपने देश की अमूल्य सेवा में अनवरत रूप से लगे रहे।

पश्चिम एवं भारत के वे कुछ महान पुरुष उल्लेखनीय हैं, जिनकी रचनात्मक शक्ति का ह्रास उनकी ढलती उम्र के कारण कतई नहीं हुआ था और जिन्होंने अपने बुढ़ापे में बड़े महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी काम करके मानवता की अपूर्व सेवा की।

ऐसे महान पुरुषों में कुछ ये हैं— महान दार्शनिक संत सुकरात, प्लेटो, पाइथोगोरस, होमर, खगोलशास्त्री गैलीलियो, प्रसिद्ध कवि विलियम वर्डसवर्थ, वैज्ञानिक थामस अलका एडीशन, लेखक निकोलस कोपर निंकस, विख्यात वैज्ञानिक न्यूटन, सिसरो, अलबर्ट आइन्स्टीन, टैनीसन, महात्मा टॉलस्टाय, महात्मा गाँधी तथा जवाहर लाल नेहरू।

महात्मा सुकरात सत्तर वर्ष की उम्र में अपने अत्यंत महत्त्वपूर्ण तत्त्वदर्शन की विशद व्याख्या करने में जुटे हुए थे। यही बात प्लेटो के संबंध में भी थी। वे अपनी अस्सी वर्ष की आयु तक बराबर कठोर परिश्रम करते रहे। इक्यासी वर्ष की अवस्था में हाथ में कलम पकड़े हुए उन्होंने मृत्यु का आलिंगन किया।

टेनीसन ने अस्सी वर्ष की परिपक्व अवस्था में अपनी सुंदर रचना “क्रासिंग दी वार” दुनिया को प्रदान की। राबर्ट व्राउनिंग अपने जीवन के संध्याकाल में बहुत सक्रिय बने रहे। उन्होंने सत्तर साल की उम्र में मृत्यु के कुछ पहिले ही अपनी सर्वश्रेष्ठ कविताएँ लिखीं।

एच.जी. वैल्स ने सत्तर वर्ष की अपनी वर्षगाँठ के उपरांत भी पूरे चुस्त और कर्मठ रहते हुए एक दर्जन से ऊपर पुस्तकों की रचना की। यूरोपिया की कल्पना पर आधारित उनकी पुस्तकें जीवन के उत्तरार्ध में ही लिखी गईं।

सिसरो ने अपनी मृत्यु के एक वर्ष पूर्व तिरेसठ वर्ष की आयु में अपनी महत्त्वपूर्ण पुस्तक “ट्रीटाइज ऑन ओल्ड एज” की रचना की। कीरो ने अस्सी साल की उम्र में ग्रीक भाषा सीखी।

प्लूटार्क यूनान के माने हुए साहित्यकार हुए हैं। उन्होंने पचहत्तर वर्ष की आयु के बाद लैटिन भाषा पढ़ना आरंभ की थी। इटली का प्रख्यात उपन्यासकार बोकेशियो को ढलती उम्र में साहित्यकार बनने की बात सूझी। उस ओर वह पूरी दिलचस्पी के साथ जुटा और अंततः मूर्धन्य कथाकार बनकर चमका।

दार्शनिक फ्रेंकलिन की विश्वव्यापी ख्याति है। वे पचास वर्ष की आयु तक दर्शनशास्त्र से अपरिचित रहे। रुझान इसके बाद ही उत्पन्न हुई और वह उन्हें विश्वविख्यात बनाकर ही रही।

सुकरात ने साठ वर्ष पार करने के उपरांत यह अनुभव किया कि बुढ़ापे की थकान और उदासी को दूर करने के लिए संगीत अच्छा माध्यम हो सकता है, अस्तु उन्होंने गाना सीखना आरंभ किया और बजाना भी। यह क्रम उन्होंने मरते दिनों तक जारी रखा। बिनोवा ने भाषाएँ सीखने का क्रम आजीवन चालू रखा। वे 24 भाषाओं के विद्वान थे तथा अंतिम वर्षों में सबसे कठिन चीनी भाषा सीख रहे थे। दामोदर सातवलेकर ने वेदों का भाष्य एवं आर्ष साहित्य पर अपना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य पिचहत्तर वर्ष के बाद आरंभ किया एवं सौ वर्ष की आयु तक बराबर लिखते रहे।

अंग्रेजी राजनीति का इतिहास जिनने पढ़ा है, वे ग्लेडस्टन के नाम से परिचित हैं। उनने अपना प्रायः सारा ही जीवन राजनीति की सेवा में लगाया और अच्छी लोकप्रियता प्राप्त की। 70 वर्ष की आयु में उन्होंने राज्य का उत्तरदायित्व सँभाला और तीसरी बार भी जब वे प्रधानमंत्री बने तब उनकी आयु 79 वर्ष की थी। ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी में होमर पर उनका भाषण अत्यंत शोधपूर्ण माना जाता है। वह उन्होंने 80 वर्ष की आयु में दिया था। बुढ़ापे में भी वे चैन से न बैठे। 85 वर्ष की आयु में उन्होंने ‘ओडिसी ऑफ होरेस’ ग्रंथ की रचना की थी।

आठवीं जर्मन सेना का सेनापतित्व पालवान हिन्डैन वर्ग को जब सौंपा गया तब वे 67 वर्ष के थे। 78 वर्ष की आयु में वे पार्लियामेंट के अध्यक्ष चुने गए। वे 87 वर्ष की आयु तक जिए तब तक उसी अध्यक्ष पद पर प्रतिष्ठित रहे एवं सक्रियतापूर्वक संचालन करते रहे।

हैनरीफिलिप मिटेन जब फ्रांस के प्रधानमंत्री बने तब वे 84 वर्ष के थे। उसी देश की नेशनल असैम्बली के अध्यक्ष स्टवर्ड हैरियो 79 वर्ष की आयु में चुने गए। 86 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हुआ, तब तक वे उस पद का बड़ी योग्यतापूर्वक निर्वाह करते रहे।

लायड जार्ज ब्रिटेन के मूर्धन्य राजनेता रहे हैं। 75 वर्ष की आयु में भी उनकी कार्यशक्ति नौजवानों जैसी थी। चर्चिल ने द्वितीय महायुद्धकाल में जब इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री पद सँभाला तब वे 80 वर्ष के थे। जनरल मेकआर्थर 73 वर्ष की आयु में 45 वर्ष जैसे सक्रिय थे। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति सिंगमन 80 वर्ष की आयु में भी पूरी तरह क्रियाशील थे एवं पुनः चुने गए थे।

अमेरिका की सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री ‘दादी रेनाल्डस’ ने पाश्चात्य जगत में बहुत ख्याति प्राप्त की है। उनकी फिल्म सफलता समूची जीवन-साधना का ही एक छोटा अंग है। पैंसठ साल की उम्र में वे चार बच्चों की माँ और दर्जनों नाती-पोतों की दादी बन चुकी। तब उन्हें उत्साह उठा कि जो शिक्षा उन्होंने प्राप्त कर रखी है, वह कम है। उन्हें सफल जीवन जीने के लिए अधिक विद्या उपार्जित करनी चाहिए। सो वे काॅलेज जाने लगीं और 69 साल की उम्र में कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय की स्नातक बन गईं। इसके बाद उन्होंने हाॅलीवुड का दरवाजा खटखटाया। जिस आत्मविश्वास के साथ वे बातें करती थी उसे देखकर डायरेक्टरों ने उन्हें छोटा काम दे दिया। उनके परिश्रम मधुर-स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व ने उस क्षेत्र में बढ़-चढ़कर काम करने का अवसर दिया। अस्तु उन्होंने लगातार तेरह वर्षों तक प्रत्यक्ष फिल्मों में काम किया। 82 वर्ष की उम्र में वे एक विद्वान शरीरशास्त्री से वह परामर्श लेने गई कि उनके पेट का मांस थुलथुला हो गया है। यह कसा हुआ कैसे हो सकता है? डाॅक्टर गैलार्ड हॉजर ने उपचार बताए। तद्नुसार उनका पेट भारमुक्त हो गया। साथ ही डाक्टर ने उसकी इतनी लंबी आयु और चुस्ती का कारण पूछा तो उनने बताया कि आहार संबंधी सतर्कता, व्यायाम में नियमितता और जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण ही उनकी वृद्धावस्था को जवानी स्तर की बनाए रहने में समर्थ हुआ है। वे जिंदगी को प्यार करती हैं और हरपल बहुत ही आनंद का रसास्वादन करते हुए जीना चाहती हैं। मोटेतौर से यही था उनकी वृद्धावस्था में भी जवानी की स्थिति बनाए रहने का प्रमुख कारण।

अमेरिका के प्रख्यात तेल व्यवसायी अरबपति राक फेलर पूरे 100 वर्ष जिए। उन्हें कभी बेकार समय गुजारते नहीं देखा गया। एकदूसरे व्यवसायी कोमोडोर विन्डरबिट ने 70 वर्ष की आयु में व्यापार क्षेत्र में प्रवेश किया और दस वर्ष के भीतर ही वे सफल उद्योगपतियों की श्रेणी में जा पहुँचे। मोटर उत्पादक हैनरी फोर्ड 82 वर्ष की आयु में भी उतने ही चुस्त पाए गए थे, जितने कि जवानी में वे थे।

वस्तुतः स्फूर्ति, चुस्ती, उमंग, उल्लास ही जीवन का प्राण है। जब तक वह विद्यमान है, भले ही व्यक्ति आयु की दृष्टि से कितना ही बड़ा क्यों न हो वह चिर युवा है। उदासी, निरुत्साहिता, नैराश्य का नाम बुढ़ापा है। चेहरे पर छाई मुर्दनी बताती है कि यह व्यक्ति असमय बुढ़ा गया है। जिन्हें जीवन जीना हो उन्हें कभी भी बूढ़े होने की बात सोचनी ही नहीं चाहिए।


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