संकल्पशक्ति का कल्पवृक्ष

July 1986

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हमारे दूरदृष्टा ऋषि-मुनियों ने विचारों की महत्ता पर बहुत अधिक बल दिया है। वृहदारण्यकोपनिषद् में कहा गया है कि इच्छाप्रधान व्यक्ति जैसा संकल्प करता है, वैसा ही कर्म करता है। जैसा कर्म करता है, वैसा ही बन जाता है। वस्तुतः जैसे हमारे विचार होते हैं, वैसा ही हमारा स्वभाव, हमारा आचार भी ढल जाता है। हमारा चेहरा, हमारा शरीर, हमारा स्वास्थ्य, हमारी सफलता-असफलताएँ सभी कुछ हमारे विचारों की प्रतिच्छाया है। अंग्रेजी में एक कहावत है— “तुम वह नहीं हो जो तुम अपने विषय में सोचते हो कि तुम यह हो; अपितु तुम जैसे विचार करते हो, वास्तव में तुम वही हो।” यदि हम अपने विचारों को उन्नत बना सकें, विचारशक्ति पर नियंत्रण रख सकें तो हमारे जीवन की अनगिनत समस्याओं, कष्टों और असफलताओं का स्वतः ही निदान हो जाए।

विचारों के नियंत्रण से वे बड़ी से बड़ी शक्तियाँ प्राप्त की जा सकती हैं, जो सहज ही लोगों को चमत्कृत कर दें। विचारों का संयमन और ध्यान की एकाग्रता, यह दो इतने बड़े जादू हैं कि समस्त पृथ्वी का कायाकल्प करने की शक्ति स्वयं में रखते हैं। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन सबकी सफलता का मूलमंत्र उन्नत विचारशक्ति और दृढ़ संकल्पबल ही है। उनके जीवन में अगणित कष्ट, कठिनाइयाँ आईं परंतु इन दो शक्तियों के बल पर उन्होंने उन सब पर विजय प्राप्त की। ईश्वरीय प्रतिभा लेकर तो विरले ही व्यक्ति आते हैं। संकल्प और साहस के अभाव में वह प्रतिभा भी धूमिल पड़ जाती है। कष्ट, कठिनाइयाँ किसके जीवन में नहीं आतीं? जो मन को निग्रहित कर कठिनाइयों में जीना सीख लेता है, संसार में वही महान और अनुकरणीय बनता है। यदि हम महापुरुषों के जीवन-चरित्र का अध्ययन करें तो पाएँगे कि उन्होंने कठिनाइयों को सहकर ही विजयश्री का वरण किया है। ईसा, सुकरात, गाँधी और दयानंद ने अपने सिद्धांतों के प्रचार और प्रसार के लिए क्या नहीं सहा? आज मरकर भी वे यशकाया से अजर अमर हैं; क्योंकि उन्होंने विचारशक्ति और संकल्पबल के द्वारा तूफानों-झंझावातों को हँसते-हँसते सहकर विश्व को नूतन प्रकाश दिखलाया। इसी प्रकार अन्य लोगों के उदाहरण भी हमारे सम्मुख हैं। कार्लमार्क्स जब अपने विश्वप्रसिद्ध ग्रंथ “कैपीटल” की रचना में पूरी तरह से डूबे थे तब उनके घर में खाना खाने को एक पैसा तक नहीं था। गोर्की सारे दिन साहित्य सृजन में लगे रहते और जब क्षुधा बहुत व्याकुल करती तो कूड़े के ढेर से डबलरोटी के टुकड़े ढूँढ़ते थे। ग्राहमबेल ने जब टेलीफोन का आविष्कार किया था, तब अंतिम राशि तक उसमें लगा दी थी और भूख की भी परवाह न कर वे अपने अंवेषण में जुटे रहे थे। वज्रमूर्ख कालिदास संकल्पशक्ति के बल से ही विश्ववन्द्य महाकवि बने थे। वस्तुतः हम में से कोई भी कार्लमार्क्स, गोर्की, कालिदास आदि से कम नहीं है। जो हाथ-पैर और प्रतिभाएँ-क्षमताएँ भगवान ने उन्हें दी थीं, वही हमें भी दी हैं। अंतर इतना ही है कि उन्होंने अपने दृढ़ निश्चय को, आगे बढ़ने के भाव को निरंतर बनाए रखा, कभी निराशा और कायरता को प्रश्रय नहीं दिया; परंतु हम छोटी-छोटी बाधाओं में ही हार मानकर, थककर और निराशा से चूर होकर बैठ जाते हैं। अपने विचारों को ऊँचा उठाइए। अपने संकल्पशक्ति को जगाइए। कायरता और निराशा-कुंठाओं के विचारों को पास न फटकने दीजिए। कौन ऐसा कार्य है, जो आपके लिए असंभव है? अपने पौरुष और कर्मठता पर विश्वास रखिए और पूरी शक्ति से लक्ष्य की ओर बढ़ जाइए। अंधकार से प्रकाश की ओर जाइए। तभी आप मनुष्य कहलाने के अधिकारी हैं। इसी में मनुष्य की गरिमा भी है।


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