दुर्भाग्य सौभाग्य बना

July 1986

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मैक्सिको, अमेरिका की मध्यरात्रि। कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी और सुनसान सड़क पर एक व्यक्ति चला जा रहा था। अचानक वह फालिज का शिकार हो गया और सड़क पर ही लुढ़क गया। अचेतावस्था में ही बहुत देर तक पड़ा रहा। एक ट्रक उस रास्ते से गुजरा तो ड्राइवर का ध्यान गया और उसने अचेत व्यक्ति को कंबल में लपेटकर गाड़ी में सुला लिया।

एक विशाल भवन के सामने ट्रक रोका। उस इमारत का नाम था 'पुनर्वास संस्थान', जो अपंगों की आवास और निर्वाह व्यवस्था करती थी। अपंग व्यक्ति को संस्थान में ले जाया गया और परिचारकों ने उसकी आठ महीने तक सेवा-सुश्रूषा की। तदुपरांत वह “पट्टी” के सहारे अस्पताल से बाहर निकल आया।

दान देने वाले के मन में बड़प्पन और लेने वाले के मन में दीनभाव स्वाभाविक रूप से आ जाते हैं। संस्थान ने इस बात को ध्यान में रखते हुए अपंगों को आत्मनिर्भर बनाने का कार्यक्रम हाथ में लिया, ताकि कहीं भी रहते हुए उन्हें पराश्रित न होना पड़े। इसी संस्थान से उस व्यक्ति ने घड़ीसाजी का धंधा सीखा और उसी के सहारे अपना तथा अपने परिवार का समुचित निर्वाह करने लगा।

ऐसे महान संस्थान के संस्थापक हैं— 'डान रोमुलो ओ फेरिल'। वह मैक्सिको का सबसे बड़ा प्रकाशक और समाजसेवक है। सारा लैटिन अमेरिका उसके सत्कार्यों से परिचित है। समाजसेवा के लिए इस दिशा में लगने की प्रेरणा भी उसे एक ऐसी ही घटना से मिली जो उसके स्वयं के साथ ही बीती थी।

जुलाई 1955 की बात है, जैनेवा की एक व्यस्त सड़क पर रोमुलो की कार का एक पहिया पंचर हो गया। रोमुलो ने कार को वहीं रोक दिया और तेजी से पहिया बदलने लगा। उसी समय पीछे से आती हुई एक मोटर साइकिल उससे टकरा गई और उसकी बाई टांग कुचलती हुई निकल गई।

मैक्सिको के अस्थिविशेषज्ञ डॉ. जुआन फेरिलजा रोमुलो के अभिन्न मित्र थे, उन्होंने तुरंत रोमुलो की मदद की और टांग बचाने की पूरी-पूरी कोशिश की; परंतु सारे प्रयत्न असफल रहे। एक के बाद एक ग्यारह बार ऑपरेशन किए गए, मगर एक भी ऑपरेशन सफल नहीं हुआ। अंत में निराश होकर बारहवीं बार टांग ही देनी पड़ी।

सामान्य व्यक्ति के लिए ऐसी घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और निराशाजनक हो सकती है; परंतु रोमुलो के लिए आशा और एक नए प्रकाश का उदय हुआ। संकल्प के धनी और आशावादी लोगों के लिए जो घटनाएँ सामान्य लोगों को स्मरण से भी ज्यादा भयभीत करती हैं— नए जीवन की प्रेरणा देती हैं। रोमुलो मात्र दौलतमंद ही नहीं, संकल्प का भी धनी था। उसने निश्चय किया कि मैं वैसाखियों का सहारा नहीं लूँगा। उस समय वह 60 वर्ष का था; परंतु तरुणों से भी ज्यादा उत्साही था। इष्ट मित्रों ने उसे ओकलैण्ड कैलीफोर्निया के विख्यात सैनिक अस्पताल में भर्ती करवाया। एक और एक कृत्रिम जलसिद्ध (वाटर प्रूफ) टांग लगाई गई। जिसे पहनकर तैरा भी जा सकता था। रोमुलो ने इस टाँग का इतनी कुशलता से उपयोग करने का अभ्यास कर लिया कि जब वह चलता था तो यह अनुमान भी नहीं होता कि यह टांग शरीर के अंगों से भिन्न है।

जिस समय रोमुलो को कृत्रिम टांग का उपयोग करने की विधि सिखाई जा रही थी, अस्पताल के डाॅक्टर ने चर्चा के दौरान बताया कि मैक्सिको में कोई छह लाख ऐसे अपंग है, जिनकी चिकित्सा आदि की कोई व्यवस्था नहीं है और नहीं राजकीय सहायता का कोई प्रबंध है। रोमुलो का मानवीय अंतःकरण आंदोलित हो उठा और इस दिशा में कुछ करने के लिए उसका अंतःकरण छटपटाने लगा। उसने अबकी बार संकल्प किया कि उन छह लाख अपंगों की सेवा करना मेरा धर्म है। ईश्वर ने मुझे फिर से काम करने की क्षमता दी है तो उसके ऋण से उन्मुक्त होने के लिए मुझे इन छह लाख लोगों को समर्थ बनाने में ही आत्मार्पण करना होगा।

उसने निश्चय किया कि अपंगों के अंग-भंग से लेकर पुनर्वास तक की व्यवस्था के लिए प्रयत्न करेगा। 'मैक्सिको लौटकर रिहैबिलिटेशन–एसोसिएशन' नाम से एक संस्था की स्थापना की और लोक-मंगल की दिशा में जब भी कोई नया कदम उठाया जाता है, तो बहुत से सहयोगी लंका विजय अभियान में रीछ-वानरों की तरह दौड़ उठते हैं। मैक्सिको के तत्कालीन राज्यपाल से लेकर सामान्य व्यक्ति ने रोमुलो के अभियान में अपनी सेवा-सहायता प्रस्तुत की। राष्ट्रपति ने एक विशाल दो मंजिली इमारत इस संस्थान के लिए देने की घोषणा की।

अपनी टांग कटने के ठीक पाँच वर्ष बाद रोमुलो ने सन् 1960 में लाजयान नामक स्थान में 'रिहैबिलिटेशन–एसोसिएशन संस्थान' का उद्घाटन किया। जैसे ही इस संस्थान की स्थापना का समाचार फैला। देश के कोने-कोने से अपंग लोग आने लगे। संस्थान में केवल चालीस व्यक्तियों के ठहरने का ही प्रबंध था; परंतु आगंतुक अपंगों की संख्या कम से कम हजार तक पहुँच चुकी थी। विवशताभरी लाचारी के कारण वे सब शहर में ही ठहरते थे। यह देखकर श्रीमती रोमुलो को बड़ी व्यथा हुई और उन्होंने एक अतिथि गृह का निर्माण करवा दिया। असमर्थ मानव परमात्मा की सेवा का लाभ मिल सके, इसलिए श्रीमती रोमुलो ने अतिथि गृह में अपंगों की स्वयं ही परिचर्या करना शुरू कर दिया। कुछ दिनों के बाद सेवाभावी स्त्रियों का एक स्वयं सेविका दल श्रीमती रोमुलो के नेतृत्व में गठित कर लिया गया।

संस्थान की ओर से यह सार्वजनिक घोषणा कर दी गई कि जहाँ कहीं भी कोई अपंग किसी को भी दिख पड़े उसे तुरंत संस्थान तक पहुँचाने का प्रयत्न करें। संस्थान में ऐसी व्यवस्था है कि अपंग व्यक्ति स्वयं ही बिना किसी की सहायता लिए सामान्य लोगों की तरह अपना दैनंदिन जीवन व्यतीत कर सके तथा निर्वाह के लिए दूसरों पर निर्भर भी न रहना पड़े।

रोमुलो के इस संस्थान ने अपंग लोगों में नवजीवन का संचार किया है। इसमें से ही एक भूतपूर्व शिक्षक हेरीवरतो कास्त्रों की कहानी बहुत ही हृदयद्रावक है। बचपन में ही एक दुर्घटना से उसके दोनों हाथ और दोनों पाँव नष्ट हो चुके थे। उसके कई वर्ष बाद अपने फार्म पर जब उसने रोमुलो के इस संस्थान के बारे में सुना तो आशा की एक क्षीण रेखा दिख पड़ी और मैक्सिको आया। उसके माता-पिता ने कास्त्रों के संबंध में आवेदन भेजा। उसे संस्थान में भरती कर दिया। कास्त्रों को कृत्रिम अंग लगा दिए गए और वह शीघ्र ही बिना किसी की सहायता के चलने फिरने लगा। इस कृत्रिम अंगों से वह अन्य सामान्य लोगों की तरह चलने लगा। संस्थान में ही सेरानो प्रशिक्षण लेकर वहाँ शिक्षक भी हो गया और अपने कृत्रिम हाथों से ही टाइपिंग सीखकर कुशल टाइपिस्ट बन गया। उसके साहस और कौशल ने रोमुलो को बड़ा प्रभावित किया। उसने सेरानो को नगर के जकाते आफ युनिवर्सिटी में भर्ती करवा दिया। प्राकृतिक अंगों से विहीन अपंग सेरानो ने अपने कृत्रिम अंगों से भी इतनी योग्यता अर्जित करली जितनी कि समर्थ व्यक्ति भी नहीं कर पाते।

प्रायः लोकसेवी संस्थाएँ दान और चंदे पर चलती हैं। रोमुलो ने इस परंपरा को तोड़कर संस्थान को एक स्वावलंबी आधार दिया। यद्यपि संस्थान में अपंगों से किसी भी प्रकार का चिकित्सा शुल्क नहीं लिया जाता फिर संस्थान के आर्थिक आत्मनिर्भरता प्रदान करने के लिए रोमुलो ने कृत्रिम अंग बनाने का एक कारखाना खोल दिया है तथा जब रोमुलो ने देखा कि पूरे मैक्सिको में कार रेडियो बनाने का कोई कारखाना नहीं है, तो अमेरिका की बेडिक्स कंपनी से एक समझौता किया। जिसके अनुसार बेडिक्स ने संस्थान के कुछ कार्यकर्त्ताओं को कार रेडियो बनाने का प्रशिक्षण दिया। इन प्रशिक्षित कार्यकर्त्ताओं ने अपंग-रोगियों को प्रशिक्षण दिया। इस योजना के सफल होने पर संस्थान प्रतिवर्ष एक हजार से अधिक कार रेडियो तैयार करने लगी।

डान रोमुलो के इस संस्थान की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि आज तक किसी भी अपंग रोगी को निराश कर नहीं लौटाया गया। जो भी कोई आया, अपनी आशा के अनुरूप लाभ उठाकर और उससे भी अधिक योग्य बनकर वापस गया। यहाँ तक कि किसी दुर्घटना में जिन लोगों का चेहरा कुरूप या विकृत हो चुका होता है, उनके लिए संस्थान ने एक अलग विभाग जो सौंदर्य-प्रसाधन विभाग के नाम से सक्रिय है। जहाँ प्लास्टिक के कान, नाक, हाथ आदि लगाए जाते हैं और आकार की दृष्टि से मनोनुकूल उपयुक्त उपकरण तैयार किये जाते हैं। इस विभाग के पीछे रोमुलो का यह विचार मूल सिद्धांत है कि- रूप और सौंदर्य का अपना मनोवैज्ञानिक महत्त्व है। व्यक्ति को उत्साही और साहसी बनाने के लिए सुंदरता भी एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।

संस्थान के व्यावसायिक प्रशिक्षण विभाग, विद्युत-यंत्रों से लेकर घड़ी साजी, टाइपिंग, टाइपराइटर सुधारने की कला, सिलाई और मोचीगिरी तक का प्रशिक्षण दिया जाता है। रोगी बच्चे तो अपनी चिकित्सा के दौरान स्कूल पढ़ने भी जाया करते हैं। इस प्रकार रोमुलो का रिहैविलिटेशन एसोसिएशन अपने ढंग का एक अनूठा और अद्वितीय चिकित्सा संस्थान है। जिसकी कार्यपद्धति स्वयं रोमुलो ने अपने ऊपर किए गए प्रयोगों के आधार पर निर्धारित की।

डान रोमुलो अपनी कृत्रिम टांग के माध्यम से कूद-फाँद लेता है, दौड़ सकता है। उसे देखकर यह अनुमान लगाया जा सकना प्रायः असंभव है कि यह व्यक्ति प्रकृति और नियति से अभिशाप लेते हुए भी स्वयं के साहस और श्रम के बल पर अपने भाग्य पर विजयी हुआ।

डान रोमुलो अभी भी अठारह घंटे श्रमरत हैं। यद्यपि उनका पुनर्वास संस्थान पर्याप्त रूप से लोकसेवा कर रहा है; परंतु रोमुलो को इतने मात्र से ही संतोष नहीं है। वस्तुतः महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति का संतुष्ट हो जाना प्रगति में बाधक ही है। ज्यों-ज्यों वह अपनी उपलब्धियों से असंतुष्ट होता है, विकासपथ पर आगे बढ़ने की लगन उसी तीव्रता से बढ़ती चलेगी। रोमुलो का एक सपना है कि इस प्रकार के पुनर्वास संस्थान सारे विश्व के कोने-कोने में स्थापित किए जाएँ, जिनसे विकलांग और अंगहीन लोगों के जीवन में नये प्रभाव का प्रकाश फैल सके।

स्थूलरूप से ईश्वरपूजा के लिए कोई क्रिया-कांड ही अपनाते रहने की अपेक्षा साकार ईश्वर— मानवता की सेवा सार्थक एवं श्रेष्ठ उपासना है।


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