सनकियों की इस दुनिया में कमी नहीं

July 1986

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धन की अनावश्यक मात्रा ओछी बुद्धि के लोगों को एक प्रकार का सनकी बना देती है। वे यह नहीं सोच पाते कि उपलब्ध साधनों का सदुपयोग कैसे किया जाए, उनके ऊपर यही सनक सवार रहती है कि लोग किसी प्रकार हमें बड़ा आदमी माने और हमारे सौभाग्य की प्रशंसा करें। इसी में वे अपनी दौलत को उड़ा देते हैं। काश, उनमें दूरदर्शिता रही होती तो इन्हीं साधनों का कितना उत्तम सदुपयोग बन पड़ता और कितना लोकहित होता।

कांगो अफ्रीका की जनजाति बाकुला का मुखिया ऐसी कसीदाकारी के वस्त्र पहनता था जो 230 पौंड भारी होते थे। मध्यकालीन जिरहबख्तर से भी तीन गुने अधिक भारी।

स्पेन के उपनिवेश अफ्रीका के गायना का हब्शी राजा न्यूविस अपने लिए एक नया सिंहासन रोज बनवाता था। यद्यपि वह जंगली लकड़ियों का होता था, पर उसे बनाने और लकड़ी काटने के लिए 100 श्रमिकों की टोली को नित्य काम करना पड़ता था।

टुल्ली वार्डाइन के अमीर सर डेविड के 17 पुत्र थे। वे उन्हें साथ-साथ रखना चाहते थे, इसलिए एक ऐसा विशालकाय गोल पलंग बनवाया था, जिसमें गोलाकार सभी छोटे-बड़े बच्चे एक साथ सो सकें।

गुजरात के शासक खांडेराव को कबूतर पालने का शौक था। उनने एक जोड़ा कबूतर के विवाह में धूमधाम की अति बरती। दावत, दहेज तथा धूमधाम में 20 लाख रुपया खर्च किया।

अफ्रीका में बोर्नू इलाके के शासक अमीर अली ने पड़ोसी राज्य अहेर पर इसलिए 1000 घुड़सवारों के साथ हमला बोला कि उसके राज्य की एक महिला की तीलियों से बनी टोकरी उस राज्य का कोई प्रजाजन क्यों छीन ले गया। खाली टोकरी वापस मिल गई, पर इस आक्रमण और बचाव में सैकड़ों व्यक्ति मरे और घायल हुए।

चार्ल्स डी वोल्ड जिस राजमुकुट को पहनते थे, उसमें 5 लाख डालर मूल्य के रत्न जड़े हुए थे।

प्रतापगढ़ (उ.प्र.) के राजा ने गाडरवारा के शासक को हरा दिया। भागकर उसने अपनी जान बचाई। उसे गीदड़ सिद्ध करने और उपहास उड़ाने की दृष्टि से एक सियार को पकड़ कर गाडरवारा का राजा बना दिया। वह वन्य पशु राजा की पोशाक पहनकर राज सिंहासन पर बैठता था। इस प्रकार 12 वर्ष तक सियार राजा की तूती बोली।

हैदराबाद का छठा निजाम मीर महबूबअली सन् 1856 में जन्मा और 1901 में मरा। जिसे बेशकीमती कपड़े पहनने का शौक था; पर वह उन्हें एक दिन ही पहनता था और दूसरे दिन नौकरों को दे देता था।

भूटान पर कभी लामाओं का राज्य था। उन्हीं का सिक्का चलता था। उस देश के एक शासक ने अपना सिक्का चलाया, जिसमें उसके 16 गुणों का उल्लेख था। उसी में यह भी लिखा था कि मैं पवित्रता और ज्ञान का भंडार हूँ।

बगदाद के खलीफा हीरुँ रसीद का प्रधानमंत्री याहिया अलवरमरी रोज घोड़े पर चलकर शहर का चक्कर लगाता। जहाँ अजनबी लोग दिख पड़ते वहीं अपने सौ रुपये के सिक्कों की थैली उछाल देते। भीड़ उसे लूट लेती। इस प्रकार उसने सन् 786 से 798 के बीच 24 करोड़ डालर की चाँदी बखेरी।

फारस का बादशाह फतहअली शाही उसका राज्याभिषेक 1797 में हुआ, तब उसकी शाही पोशाक पर 170 पौंड हीरे और जवाहरात जड़े हुए थे। वह पोशाक उसने एक दिन के लिए भी छोड़ी नहीं। जब भी राजसिंहासन पर बैठता तभी उस वजनी पोशाक को धारण किए रहता।

वर्मा से मिला हुआ एक 60 वर्ग मील का इलाका है पागान। इसके निवासियों की संख्या 40 लाख है; पर उसी दायरे में 5000 से अधिक मंदिरों के अवशेष अभी भी मौजूद हैं। अनुमान है कि इससे दूने पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं।

मिश्र का एक धन कुबेर 1233 में उत्पन्न हुआ और 60 साल का होकर मरा, नाम था उसका अमीर बेसरी। वह सोच नहीं पाता था कि इतने धन का क्या करे। वह रोज नए सोने-चाँदी के प्यालों में शराब पीता था। पिछले दिन का प्याला वह ऐसे ही किसी को दे देता था। मिश्र का बादशाह बनने का उसके लिए अवसर था; पर उसने यह कहकर ठुकरा दिया कि मैं अपने आराम की जिंदगी में बेकार खलल नहीं डालना चाहता।

वेनिस इटली में सम्राट पियस छटे के आगमन पर एक दिन के लिए एक भव्य भवन खड़ा किया गया था। उनके चले जाने के बाद वह महल भी गिरा दिया गया।

मोरियक के शासक द्वारा बनाया हुआ एक किला फ्रांस की इस शर्त पर मिला कि वह एक अंडा वार्षिक किराया देता रहेगा। अंडा बड़ी सजधज के साथ शानदार गाड़ी में रखकर सैन्यसज्जा के साथ पहुँचाया जाता था। यह क्रम 350 वर्ष चला और सन् 1779 में समाप्त हुआ।

दिल्ली के बादशाह मुहम्मद तुगलक को नई राजधानी दौलताबाद बनाने की सनक आई। उसने दिल्ली के सभी नागरिकों को घर छोड़कर उसके साथ चलने का हुक्म दिया। इस सनक से हजारों साथ चलने वालों को भूख और थकान से प्राण छोड़ने पड़े।

कैरेमियन्स पर 13 वर्ष राज्य करने वाला सुलतान जत्वरी को अपने साथियों और दरबारियों से ही षड्यंत्र करके मार डालने का भय सताता रहता था। रात को वह हथियारों से लैस होकर सोता था और आँखें खुली रखकर सोने का आदी हो गया था। रात भर कड़ा पहरा रहता था, तो भी अंत में षड्यंत्रकारियों द्वारा ही मारा गया।

फ्रांस के ओपेरा हाउस की शानदार बिल्डिंग सन् 1824 में इसलिए शाही फरमान से ढहा दी गई थी कि उसमें वेरी के ड्यूक की हत्या हुई थी। हत्या करने वालों में इस इमारत को भी दोषी माना गया।

गंजी खोपड़ी का एक सनकी अंग्रेज मोटेगू नकली बालों की एक टोपी हर वक्त इसलिए पहने फिरता था कि उसकी खामी का किसी को पता न चले। टोपी के ऊपर जमे बाल उसके सीने तक लहराते थे।

यमन के शासक मालिक अजीज ने अपने शाही कोट के पीछे 60 फुट लंबा पुछल्ला सिलवाया था। उसे उठाकर चार नौकर चलते थे। ऐसी ही शेखीखोरी की और भी कई लतें उसमें थीं। प्रजा ने इस फिजूलखर्ची से क्रुद्ध होकर बगावत कर दी और राजा मार डाला गया।

भारत के एक राजा ने इंग्लैण्ड में ऐसा चाँदी-सोने का पलंग बनवाया था, जिसके चारों ओर नंगी पुतलियाँ लगी थीं और पलंग के नीचे लगी मोटर पुतलियों के हाथ से पंखा झलती थी।

मंगोलिया, फारस, भारत, तुर्किस्तान पर शासन करने वाले शाहरुख ने अपने 43 वें जन्मदिवस पर दावत में अतिथियों को एक-एक जवाहरात की भरी प्लेट भेंट में दी थी।

आॅस्ट्रिया का चांसलर काडनिटस ठंड से भारी डरता था। वह गर्मी में भी एक के ऊपर एक छह कपड़े पहने रहता था। तो भी वह 1798 में ठंड लगने से ही मरा।

लग्जम्बर्ग के शासक ऐडोल्फ की यह सनक थी कि सातवाँ बच्चा अधिक भाग्यवान होता है। उसने अपने राज्य के सभी सातवें बालकों को एकत्रित करके उनका धर्मपिता कहलाने की सनक थी।

मार्किन्स सेनाड़ा स्पेन का मूर्धन्य राजनेता था। उसने अपनी पोशाक में नए जवाहरात जड़वाने का शौक आजीवन जारी रखा। उसकी पोशाक में 7 लाख डालर के रत्न जड़े थे।

व्रिक्शन आॅस्ट्रिया का शासक मेल्शियरवान जब मरा तो उसने अपनी आस्तीन में 3 लाख सोने के सिक्के छुपा लिए ताकि वे परलोक में उसके काम आवें; पर जब उसे ताबूत में बंद करने से पूर्व नए कपड़े पहनाए गए तो वे सभी सिक्के पकड़ में आ गए और सरकारी खजाने में जमा कर दिए गए।

रोम का एक सम्राट कामोडस को नामवरी की इतनी भूख थी कि उसने अपने शासन की सभी इमारतों के नाम अपना नाम जोड़ते हुए 1, 2, 3, 4 आदि क्रम से रखवाए। सेनाओं का नामकरण भी उसी के नाम पर किया गया। तिथियों और वारों को भी अपने नाम के साथ जोड़कर बदलवाया। शासन के सभी विभागों में अपना नाम जोड़ा और शताब्दी को कामोडस सुनहरी शताब्दी कहलवाया; पर उसके मरते ही उत्तराधिकारियों ने इस सनक का पूरी तरह परिमार्जन करके वही पुराने नाम ठीक करा दिए। दुनिया सनकियों से भरी पड़ी है। चित्र-विचित्र दुनिया में मात्र प्रकृति ही नहीं, मानव की स्वयं की प्रकृति भी कम विलक्षण व हास्यास्पद नहीं है।


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