स्वामी रामतीर्थ की विद्वत्ता तथा ओजस्वी वाणी से प्रभावित होकर अमेरिका की 18 युनिवर्सिटियों ने मिलकर उन्हें एल.एल.डी. की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा। जिसे उन्होंने सधन्यवाद अस्वीकार करते हुए कहा— ‘स्वामी’ और ‘एम.ए.’ ये दो कलंक पहले ही नाम के आगे पीछे लगे हुए हैं, अब तीसरे कलंक को कहाँ रखूँगा?
यश, कीर्ति, लोकेषणा, प्रतिष्ठा, प्रशंसा, पूजा, मान, बड़ाई के फेरे में पड़कर संतों और लोकसेवियों का अहंकार उभरता है, इसलिए सच्चे संत मान बड़ाई से सदा बचते रहते हैं।