ईश्वर और पाप के अतिरिक्त किसी से भी न डरो। मृत्यु से भी नहीं।
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अपने दोषों का इल्जाम ईश्वर पर न लगाओ और पाप करते हुए यह न कहो कि उसने कराया सो किया।
भैंसे को डंडे के बल पर चलाया जाता है; किंतु घोड़ा लगाम का इशारा करने पर ही दौड़ने लगता है। यह प्रकृति की भिन्नता है। उसी के अनुरूप व्यवहार का औचित्य भी है। इस वर्गीकरण के लिए योग दर्शन के सूत्र में मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा का संकेत किया है, पर हम आज की परिस्थितियों को देखते हुए वर्गीकरण के और भी भेद-उपभेद कर सकते हैं और तद्नुरूप व्यवहार के और भी तरीके निकाल सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि आवश्यकतानुसार व्यवहार में साम, दाम, दंड, भेद की चतुरता का समावेश किया जाए। जहाँ एक से काम न चलता हो, वहाँ दूसरे-तीसरे की नीति अपनाई जाए। भावना हमारी सुधार की है। व्यक्ति से नहीं अनीति से घृणा करें और डाॅक्टर के आॅपरेशन जैसी कठोरता को भी नीति के अंतर्गत ही समझें तो वह समन्वित व्यवहार सभी के लिए श्रेयस्कर हो सकता है।