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October 1972

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यदि इस शरीर में परमात्मा को जान लिया तो बहुत ही श्रेष्ठ है, यदि नहीं जाना तो महान अनिष्ट है, इस कारण बुद्धिमान पुरुष इस शरीर में घट घट वासी परब्रह्म को जानकर सदा के लिए अमर हो जाता है।

(केन. 2-5)

यह ध्वंसात्मक परिचय हुआ। सृजन की सम्भावनाओं में कितनी ही बातें ऐसी स्वीकार करली गईं हैं जो वैज्ञानिक प्रयासों में अगले ही दिनों साकार हो जायेंगी। सर्दी-गर्मी वर्षा ऋतुओं में हेर-फेर करना मानवीय इच्छा के अंतर्गत आ जायेगा। समुद्र की अथाह जल राशि से उसके खारेपन को विलग करके मीठा पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध किया जा सकेगा। मरुस्थल तथा ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी और अनुत्पादक भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकेगा। समुद्र में वनस्पतियाँ उगाकर आहार की समस्या का समाधान सम्भव होगा। मानुषी श्रम का बोझ बिजली संभाल लेगी और लोग केवल मनोरंजन जैसा श्रम करके गुजर कर लिया करेंगे। संसार के एक कौने में रहने वाले मनुष्यों का संपर्क दूसरे छोर पर रहने वाले के साथ क्षण भर में स्थापित हो सकेगा आदि आदि।

मौसम को मनुष्य की आवश्यकता के अनुरूप बनाया जा सके इसका आधार तो विदित हो गया है और इस सम्भावना को स्वीकार कर लिया गया है। प्रश्न खर्चे का है। यदि उतने साधन उपकरण जुटाये जा सकें तो निस्सन्देह मौसम को इच्छानुकूल बना लेना मनुष्य के हाथ में होगा। दुनिया में सारी हवा को इच्छानुसार बहाया जा सकता है। पर उसके लिए हर दिन इतनी शक्ति का प्रयोग करना होगा जितनी दस लाख परमाणु बमों के विस्फोट से उत्पन्न होती है। वायुमण्डल में एक सेन्टीग्रेड तापमान बढ़ाना हो तो दो हजार परमाणु बम विस्फोट जितनी शक्ति चाहिए। मध्यम श्रेणी के तूफान को रोकने में मेगाटन अणु शक्ति खर्च करनी पड़ेगी।

इतनी शक्ति जुटाकर मौसम को सदा अनुकूल बनाये रखने के लायक शक्ति सम्पादित कर सकना, कम से कम इस शताब्दी में तो सम्भव नहीं ही हो सकेगा। इसलिए अभीष्ट ऋतु परिवर्तन की बात सोचने का अभी समय नहीं आया। अभी तो हमें इसी की तैयारी करनी चाहिए कि अपने को ऋतुओं के अनुकूल ढालें और उनके प्रभावों से कोई संकट उत्पन्न होने से पूर्व उसकी रोक-थाम कर लें। स्वास्थ्य रक्षा के लिए जिस प्रकार कपड़े, मकान, छाता, हीटर, कूलर आदि का प्रबन्ध करते हैं उसी तरह भूमि और वनस्पतियों पर पड़ने वाले ऋतु प्रभाव से कोई संकट उत्पन्न होता हो तो उसकी रोकथाम करें। भूकम्प, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि की पूर्व सूचनाएं यदि प्राप्त की जा सकें तो उस चेतावनी के आधार पर आपत्ति से बचाव के लिए बहुत कुछ सोचा-और बहुत कुछ किया जा सकता है। इसके लिए एन्टीना उपग्रह एक डेढ़ हजार किलोमीटर की ऊँचाई पर निरन्तर पृथ्वी की परिक्रमा करते रहने के लिए भेजे गये हैं, वे उपलब्ध सूचनाएं भेजकर धरती निवासियों को मौसम की तात्कालिक सम्भावनाओं से अवगत करते रहते हैं। इस उपग्रह में ऑटोमेटिक पिक्चर ट्रांसमिशन और फ्रीक्वेन्सी माडलेटेड ट्रान्समीटर लगे रहते हैं और उनके आधार पर इस प्रयोग के लिए संसार भर में स्थापित साठ वेधशालाओं में चित्र आते रहते हैं। उन्हीं के आधार पर मौसम सम्बन्धी भविष्यवाणियाँ की जाती रहती हैं।

प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि यदि मौसम को अनुकूल बनाने और बदलने में इतनी प्रचण्ड शक्ति की आवश्यकता पड़ेगी तो अनागत क्रम से जो ऋतु परिवर्तन होते रहते हैं। वे अनायास ही क्यों होते होंगे? उनके लिये भी किसी अतिरिक्त शक्ति स्रोत की आवश्यकता क्यों नहीं पड़ती होगी? बात सही है। शक्ति के बिना कोई हलचल नहीं हो सकती। शरीर से लेकर संसार के किसी भी काम को देखा जा सकता है। हलचलें शक्ति की ही प्रतिक्रिया हैं। अशक्तता और गतिहीनता एक ही बात है। शक्ति बिना किसी भी स्तर की गति नहीं हो सकती है, फिर ऋतु परिवर्तन जैसी उलट-पुलट अनायास ही कैसे हो सकती है।

सूर्य द्वारा प्रतिक्षण, ताप एवं प्रकाश के रूप में प्रचण्ड ऊर्जा प्रवाहित होती है। उनका बहुत बड़ा विकरण अंश पृथ्वी के ऊपर की विरल परतों द्वारा सोख लिया जाता है और उस संग्रहीत विकिरण भण्डार में से छन छनकर जो ऊर्जा सघन वायुमण्डल में आती है उसी के आधार पर मौसम बदलता है। वायुमण्डल की सघन परत-ऊपर की विरल परत से जब, जितनी जिस प्रकार प्रभावित होगी ऋतु परिवर्तन का उतना ही स्वरूप सामने आवेगा। कहना न होगा कि सूर्य विकिरण से सञ्चित ऊर्जा विरल परत पर इतनी अधिक है कि यदि किसी प्रकार वह सघन परत को चीरकर ज्यों की ज्यों नीचे उतर आये तो इस धरती को क्षण भर में भून-भान कर रख दे।

यह कुछ थोड़ी-सी सम्भावनाएं हैं जो अणु शक्ति के सृजनात्मक सदुपयोग द्वारा अगले दिनों सहज ही उपलब्ध की जा सकेंगी। फिर यह भी याद रखना चाहिए कि केवल अणु शक्ति की विस्फोट परक ही एक नहीं है। अग्नि, जल, वायु, आकाश चार तत्वों की अनेक ऐसी प्रचण्ड शक्ति हैं जिनके माध्यम से इतना कुछ हो सकता है जिससे स्वर्ग की पौराणिक कल्पनाओं की तुलना में न्यून नहीं वरन् अधिक ही कहा जा सके।

मोटी आँख से देखने पर विश्व के दृश्यमान पदार्थों का मूल्याँकन अकिंचन ही ठहरता है पर गहन स्तर पर उतरने से उसकी क्षमता असामान्य सिद्ध होती है। ठीक इसी प्रकार हाड़-माँस का पुतला मनुष्य दीखता भर तुच्छ है, वस्तुतः इसकी महत्ता इतनी बड़ी है कि यह अपनी समग्र शक्ति का उपयोग कर सकने में समर्थ हो तो दूसरा परमेश्वर सिद्ध हो सकता है।


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