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October 1972

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हमारी आत्मा ब्रह्म का ज्योतिस्वरूप है, उसे मैं द्वेष, इच्छाओं और चिन्ताओं से मुक्त रखना चाहता हूँ। आत्मा के लिए पूर्ण अखण्ड स्वतन्त्रता सर्वश्रेष्ठ वस्तु है।

कुछ दिन अमरीका प्रति रक्षा विभाग के एक गधे पर यह प्रयोग किया गया था और उसे उपकरणों से प्रभावित करके अकेला छोड़ा गया था। उसे जिधर चलने और जो करने के लिए निर्देश किया उसने वही सब कर दिखाया।

इस अन्वेषण के आधार पर कई उपयोगी चमत्कार अमेरिका के मेयो क्लिनिक ने कनाडा के मोन्ट्रियल न्यूरोलॉजिकल इन्स्टीट्यूट ने तथा नार्वे के गुस्टाड मेन्टल हॉस्पिटल ने दिखाये हैं। रोगी को खुशी-खुशी बिना डरे आपरेशन करा लेने के लिए इस आधार पर तैयार करने में आश्चर्यजनक सफलता पाई गई है। एक प्रयोग में तो एक 18 वर्ष से अन्धी चली आई महिला को उसका मस्तिष्कीय दृष्टि संस्थान उत्तेजित करके देख सकने की शक्ति ही प्रदान कर दी। यह इस अन्वेषण का उपयोगी पक्ष है। निस्सन्देह इन आविष्कारों का उपयोग मानवी सुविधाओं की वृद्धि भी कर सकता है पर खतरा तो उस दिशा से है जिस पर कि आज के विश्व राजनेता धृष्टतापूर्वक चलते हुए एक दूसरे से बाजी मारने की बात सोच रहे हैं।

अवाँछनीय दृष्टि-कोण लेकर किया हुआ इस आविष्कार का उपयोग किसी भी अधिनायक वादी के हाथ में चक्रवर्ती विजय सौंप सकता है। इस क्षेत्र में प्रगति सम्पन्न देश अपने विरोधी या असहयोगियों की जनता तथा सैन्य शक्ति में निराशा, भीरुता, एवं भयाक्राँत मनः स्थिति व्यापक रूप से उत्पन्न कर सकता है और उस व्यामोह में फँसे हुये विशाल जन समाज को मुट्ठी भर लोग अपने काबू में रखने और इशारे पर चलने के लिये विवश कर सकते हैं। गुलामी के बंधनों से जकड़ने के अब तक के प्रयासों में यह सबसे घृणित प्रयास होगा। जब आदमी सोचने की निजी क्षमता ही खो बैठा तो फिर उसका ‘अपनापन’ तो कुछ रहा ही नहीं, तब उसे जीवित होते हुए भी मृतकों की तरह कहीं भी खींचा घसीटा जाता रहेगा। ऐसे शक्ति सम्पन्न लोगों के चंगुल से तो मुक्त होने की भी फिर कोई आशा न रहेगी।

रूस के लौह आवरण में क्या हो रहा है इसका पता चलना कठिन है पर अमेरिका के समाचार हैं कि कुछ उच्च कोटि के वैज्ञानिकों ने मनुष्य समाज की वर्तमान मनोदशा से इस आविष्कार के खतरे को देखते हुए इस प्रयास में भाग लेने और काम करने से स्पष्ट इनकार कर दिया है। जो लगे हुये हैं उनका तर्क यह है कि हम इस प्रयास में इसलिये लगे हुए हैं कि रूस हमसे आगे न निकल जाय और कहीं उसके चंगुल में हमारा देश ही न फँस जाय। वे कहते हैं अन्तरिक्ष यानों की प्रतिस्पर्धा का भी तो यही कारण है फिर मस्तिष्क पर नियन्त्रण प्राप्त करने की इस खोज में ही क्या दोष है?

भौतिक विज्ञान मनुष्य के मस्तिष्क तक ही पहुँच सकता है क्योंकि मस्तिष्क भी शरीर का ही एक अंग होने से उसे भी भौतिक क्षेत्र में सम्मिलित रखा गया है। मन को छठी या ग्यारहवीं इन्द्रिय ही माना गया है। वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा मस्तिष्कों को प्रभावित करने की विधि लगभग खोज निकाली गई है और वह निकट भविष्य में सामने आ भी रही है। इसका भला बुरा प्रभाव जल्द ही देखने के लिये मिल जायेगा

पर भाव क्षेत्र फिर भी सूना ही पड़ा रहेगा। वह भौतिक विज्ञान की परिधि से बाहर है क्योंकि अन्तरात्मा विशुद्ध चेतना का अंश है उसे प्रभावित, परिणत और परिष्कृत करने में केवल आत्मसत्ताएं ही समर्थ हो सकती हैं।

आज आत्मसत्ता की दुर्बलता के कारण भौतिक वादी असुर सत्ता संसार की समस्त सम्पदाओं पर हावी होती जा रही है। मस्तिष्क की स्वतन्त्र चिन्तन शैली पर भी उसका दाँत है और आश्चर्य नहीं कि वह भी उसकी पकड़ में आ जाय। ऐसी विषम घड़ियों में इस बात की आवश्यकता और भी अधिक बढ़ जाती है कि आत्म सत्ता का पक्ष इतना प्रबल हो कि उसके द्वारा संसार की भाव चेतना को उत्कृष्टता की दिशा में अग्रसर किया जा सके। ऐसा हो सका तो भौतिक विज्ञान और उसकी समस्त उपलब्धियों को विश्व कल्याण में नियोजित किया जा सकेगा। यदि ऐसा न हो सका तो भौतिक विज्ञान के बढ़ते हुये चरण मनुष्य को एक मशीन मात्र बनाकर छोड़ेंगे और कुछ सत्ताधारियों की कठपुतली बनकर समस्त मनुष्य समाज को सबसे बुरी पराधीनता-मस्तिष्कीय गुलामी के निविड़ बंधनों में बंध कर दयनीय स्थिति में जीना पड़ेगा। ऐसे विषम समय में आत्म विज्ञान पक्ष को अधिक समर्थ और अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता है।


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