ईश्वरीय कृपा मानवीय संकल्प के बिना कुछ नहीं कर सकती; न मानवीय संकल्प ईश्वरीय कृपा के बिना कुछ कर सकता है।
- सन्त जान क्राइसोस्टोम
परमेश्वर किसी व्यक्ति का नाम नहीं है। न उसका कोई विशेष रूप स्थान है। यह विश्व ब्रह्माण्ड ही परमात्मा है। आत्माओं का समन्वित स्वरूप ही परमात्मा कहा जाता है। उसी से दिव्य प्रेम किया जा सकता है। समष्टि के अनुदान से ही व्यक्ति का जन्म और विकास होता है इसलिए उसी को पालनकर्ता माना जाता है। समाज के स्नेह सहयोग में ईश्वर की महिमा झाँकती हुई देखी जाती है और उस समष्टि आत्मा को प्रेमास्पद मानकर ही सार्थक भक्ति का परिचय दिया जाता है। स्वार्थ को परमार्थ पर उत्कर्ष करें। समाज की आवश्यकताओं पर अपनी विभूतियाँ निछावर करने की तैयारी करें तो समझना चाहिए दिव्य प्रेम को चरितार्थ करने की प्रक्रिया विदित हो गई। परमेश्वर की भक्ति कल्पना जगत में विचरण करने वाली भावुकता नहीं वरन् वह कठोर सचाई है, जिसमें मनुष्य व्यक्तिवाद का परित्याग कर समाजवादी बनता है। यही है ईश्वर भक्ति और प्रेम साधना का तत्व ज्ञान।