निराशाग्रस्त-निर्जीव और निरर्थक जीवन

October 1972

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निराशा का दूसरा नाम है भय, बेचैनी और अशाँति। भविष्य को अन्धकार में देखना और प्रस्तुत विपत्ति को अगले दिनों और अधिक बढ़ती हुई सोचना एक ऐसा स्वविनिर्मित संकट है जिसके रहते, सुखद परिस्थितियाँ प्राप्त कर सकना कदाचित ही सम्भव हो सके।

सोचने का एक तरीका यह है कि अपना गिलास आधा खाली है और अभावग्रस्त स्थिति सामने खड़ी है। सोचने का दूसरा तरीका यह है कि अपना आधा गिलास भरा है जबकि सहस्रों पात्र बिना एक बूँद पानी के खाली पड़े हैं। अभावों को, कठिनाइयों को सोचते रहना एक प्रकार की मानसिक दरिद्रता है।

जो रात्रि के अन्धकार को ही शाश्वत मान बैठा और जिसे यह विश्वास नहीं कि कुछ समय बाद अरुणोदय भी हो सकता है उसे बौद्धिक क्षेत्र का नास्तिक कहना चाहिए। दार्शनिक नास्तिक वे हैं जो सृष्टि की अव्यवस्थाओं को तलाश करके यह सोचते हैं कि दुनिया बिना किसी योजना व्यवस्था या सत्ता के बनी है। उन्हें सूर्य और चन्द्रमा का उदय अस्त-बीज और वृक्ष का अनवरत सम्बन्ध जैसे पग-पग पर प्रस्तुत व्यवस्था क्रम सूझते ही नहीं। ईश्वर का अस्तित्व और कर्तव्य उनकी दृष्टि से ओझल ही रहता है। ठीक इसी प्रकार की बौद्धिक नास्तिकता वह है जिसमें जीवन के ऊपर विपत्तियों और असफलताओं की काली घटाएं ही छाई दीखती हैं। उज्ज्वल भविष्य के अरुणोदय पर जिन्हें विश्वास ही नहीं जमता।

जीवन का पौधा आशा के जल से सींचे जाने पर ही बढ़ता और फलता-फूलता है। निराशा के तुषार से उसका अस्तित्व ही संकट में पड़ जाता है। उज्ज्वल भविष्य के सपने देखते रहने वाला आशावादी ही उनके लिये ताना-बाना बुनता है। प्रयत्न करता है-साधन जुटाता है और अन्ततः सफल होता है। यह सही है कि कई बाद आशावादी स्वप्न टूटते भी हैं और गलत भी साबित होते हैं पर साथ ही यह भी सत्य है कि उजले सपनों का आनन्द कभी झूठा नहीं होता। वह प्रकाश तब तक अन्तर में बना रहेगा जब तक ऐसी गुदगुदी बनी रहेगी जो मनोरथ पूरा न होने पर भी उस उपलब्धि जैसा ही उल्लास बनाये रहे। यह उज्ज्वल सपनों का आनन्द जब अभ्यास में आता है तब इतना मधुर होता है कि उसे बनाये रखने के लिये कठिन से कठिन कर गुजरने की हिम्मत की जा सके।

मुसीबतें और असफलताएं सिर्फ यह जानने के लिये आती हैं कि व्यक्ति किस हद तक साहस सँजोये रह सकता है। जिन्होंने हर कठिनाई को एक चुनौती माना उसके लिए इस संसार में कोई अवरोध नहीं, छात्रों को आये दिन अध्यापक के पूछे प्रश्नों को हल करना पड़ता है। तभी उसे उत्तीर्ण होने की प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। अवरोध एक प्रकार का अध्यापक है जो प्रतिभा को विकसित करने के लिये उत्तेजना प्रदान करता है और चिर स्मरणीय सफलता वरण कर सकने की क्षमता से सुसम्पन्न बनाता है। जो कठिनाई के दिनों में आशावादी रह सका, समझना चाहिए पुरुषार्थी महामानवों की पंक्ति में उसी का अभिषेक किया जाने वाला है।

बड़ी सफलताएं इस बात की अपेक्षा करती हैं कि व्यक्ति में धैर्यपूर्वक देर तक कठिन परिश्रम करते रहने की क्षमता हो। ऐसी मनः स्थिति उसी की हो सकती है जिसने आशावाद को अपने स्वभाव का अंग बना लिया हो। छुई-मुई की तरह जरा-सी कठिनाई आने पर जो मुरझा जाते हैं, अवरोधों को राई न मानकर जो पर्वत समझते हैं, उनके लिये अपना मानसिक सन्तुलन बनाये रहना ही एक समस्या है, अपने आपको सँभाल सकना ही जिनके लिए भार बना हुआ है, उनके लिये सफलता के लिये जितनी शक्ति आवश्यक है उतनी जुटा सकना किसी भी प्रकार सम्भव न हो सकेगा और वे हर काम में हर बार असफल ही होते रहेंगे। आशा रहित जीवन एक प्रकार से निर्जीव ही कहा जा सकता है।


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