मनुष्य तो केवल प्राकृतिक नहीं है, वह मानसिक है, इसी से मनुष्य विश्व पर अहोरात्र अपने मन का प्रयोग करता रहता है; वस्तुतः विश्व के साथ वह अपने मन का सामंजस्य करता रहता है।
-रवीन्द्र