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October 1972

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मनुष्य तो केवल प्राकृतिक नहीं है, वह मानसिक है, इसी से मनुष्य विश्व पर अहोरात्र अपने मन का प्रयोग करता रहता है; वस्तुतः विश्व के साथ वह अपने मन का सामंजस्य करता रहता है।

-रवीन्द्र


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