मनोबल-संकटों को पार करता है।

October 1972

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शरीर वैसे हाड़-माँस का दिखाई पड़ता है, इसे मिट्टी का पुतला और क्षण भँगुर कहा जाता है पर वस्तुतः उसकी संरचना अष्ट धातु से बढ़कर मजबूत तत्वों से की गई है। छोटी मोटी टूट-फूट, हारी बीमारी तो रक्त के श्वेत कण तथा दूसरे संरक्षण कर्ता, शासक तत्व अनायास ही करते रहते हैं, पर भारी संकट या दुर्घटना उपस्थिति हो जाने पर भी यदि साहस खोया नहीं गया है तो उत्कट इच्छा शक्ति के सहारे उसका सामना भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

मृत्यु की विभीषिका से कोई इनकार नहीं कर सकता, विपत्ति का संकट हलका करके नहीं आँका जा सकता इतना होते हुये भी जिजीविषा का- जीवन आकाँक्षा की सामर्थ्य सबसे बड़ी है। उसके सहारे संकट को परास्त किया जा सकता है। जीवन के लिये संकट प्रस्तुत करने वाले क्षण बहुत लोगों के सामने आते हैं उनमें से आधे लोग तो भयभीत होकर हिम्मत खो बैठते हैं और उस कातर मनः स्थिति में बेमौत मारे जाते हैं।

एकबार यमराज ने मौत को दस हजार मनुष्य मार लाने के लिये भू-लोक में भेजा। वह आई और अपना काम करके ले गई। गिने गये तो मरे हुए लोगों की संख्या बीस हजार निकली। यमराज ने मौत से पूछा- इतने क्यों मारे। उसने गम्भीरतापूर्वक उत्तर दिया। मेरे आघात से दस हजार ही मरे हैं शेष उतने ही लोग डर के मारे बेमौत मरकर अपने आप पीछे चल दिये हैं।

देखा गया है कि पेड़ के नीचे चीते को खड़ा देखकर बन्दर हक्का-बक्का रह जाता है और डर के मारे पेड़ पर से गिर पड़ता है। चीता उसे शान्तिपूर्वक मुँह में दबा कर चल देता है। विपत्ति की घड़ी आने पर अक्सर लोग ऐसे ही भयभीत स्थिति में फँस जाते हैं और बेमौत मरते हैं। इसके विपरीत यदि उस कठिन समय में उनने मनोबल स्थिर रखा होता तो बहुत सम्भव है कि वह विपत्ति बच जाती। इच्छा शक्ति की प्रबलता अंग प्रत्यंग में जीवनेच्छा की ऐसी अद्भुत संरक्षण शक्ति भर सकती है जिसके सहारे यही अपना माटी की पुड़िया कहा जाने वाला शरीर मृत्युञ्जय बन कर जीवित बना रहे। मनस्वी लोगों के ऐसे उदाहरण हमें अपने चारों ओर बिखरे हुए मिल सकते हैं।

बारूद के मिश्रण से धातुओं के मोटे परतों में छेद करने के एक अमेरिकी कारखाने में फिनीज पी. गेग नामक फोरमैन नियुक्त था। उसके साथ एक असाधारण दुर्घटना घटी। सुराख करने का वरमा जो तीन फीट सात इंच लम्बा और तेरह पौण्ड वजन का था भारी धमाके के साथ अपनी मशीन से निकलकर उचटा और उसके मस्तक को बेधता हुआ पार निकल गया। संसार के इतिहास में इतनी बड़ी और भयानक दुर्घटना के बाद भी कोई जीवित रहा हो ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है।

वरमा चेहरे के बाँई और घुसा, भीतरी भाग की हड्डियों को तोड़ता हुआ आँख के निचले भाग। होता हुआ बाहर निकला तब यह अनुमान किया गया था कि वह तत्काल मर गया होगा, पर वह मरा नहीं। झटके के साथ नीचे गिरा-ऐंठ गया फिर भी उसमें जान बाकी थी। एक मील दूर अस्पताल उसे पहुँचाया गया। डॉ. हार्लो ने उसका निरीक्षण किया तो पाया इस घायल के साथ कितना ही परिश्रम क्यों न किया जाय इसे बचाया न जा सकेगा। फिर भी उन्होंने चिकित्सक का कर्त्तव्य निवाहा और साधारण मरहम पट्टी कर दी।

गेग की बेहोशी उसी दिन दूर हो गई। उसका खून बहना बन्द नहीं हुआ था फिर भी दर्द को उसने सहा और रात को 10 वे उपस्थित लोगों से बातें करने लगा। वह तेजी से अच्छा होना शुरू हुआ और लगभग तीन वर्ष अस्पताल में रहने के बाद वह मुक्त हो गया। अन्तिम रिपोर्ट अस्पताल के अधिकारी ने विस्तारपूर्वक तैयार की जो विश्व के समस्त चिकित्सकों के लिए आज भी अध्ययन की और आश्चर्य की वस्तु बनी हुई है। रोगी की नेत्र ज्योति तो चली गई थी पर बाकी मस्तिष्क पूरी तरह ठीक हो गया और वह अपना सामान्य जीवन-क्रम ठीक तरह चलाने लगा। इतने भयानक मस्तिष्कीय आघात के बाद भी कोई व्यक्ति बच सकता है, इस पर शरीर विज्ञानियों को सहसा विश्वास नहीं हो सकता उनका अविश्वास दूर करने के लिए गेग की टूटी हुई खोपड़ी के अस्थि खंड तथा उससे सम्बन्धित पदार्थ और कागजात हार्वर्ड मेडीकल कालेज ब्रकलिन के संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुये हैं, साथ ही वह वरमा भी रखा हुआ है जो खोपड़ी चीरता हुआ बाहर निकला था।

सन 1891 की बात है। एक अंग्रेज मछुआरा अपना जहाज लेकर दलबल के साथ व्हेल मछली के शिकार के लिये चला। आकलेण्ड द्वीप के समीप उसे एक विशालकाय व्हेल दिखाई पड़ी। दो नावों द्वारा उस पर भालों द्वारा आक्रमण किया गया। व्हेल ने पलटा खाया तो उसकी पूँछ की चपेट में नाव आ गई। एक नाविक तत्काल डूब गया। दूसरा जेम्स वर्टली गायब हो गया। उसे व्हेल ने निगल लिया था। ऐसा निगला हुआ व्यक्ति जीवित बच जायेगा इसकी कौन आशा कर सकता है। पर वर्टली निराश नहीं हुआ। उसने अपना चाकू किसी प्रकार निकाला और बड़ी हिम्मत के साथ व्हेल का पेट चीरना शुरू किया। जकड़न कुछ करने नहीं दे रही थी फिर भी उसने अपना प्रयत्न जारी रखा और पेट चीर कर बाहर निकल आने में सफल हो गया।

डेढ़ दिन के तलाश के बाद उसे अचेत अवस्था में तैरता पाया गया। नाविक उसे किसी प्रकार बाहर लाये और अस्पताल में भर्ती किया। तीन हफ्ते में जाकर कहीं उसके मस्तिष्क ने ठीक काम करना शुरू किया उसका सारा शरीर पीला हो गया वैसा ही चमड़ी का रंग अन्त तक बना रहा।

वर्टली का संस्मरण ‘डेट डिवैटस्’ पत्र में छपा है। उसने बताया है के व्हेल के मुँह में मैंने एक अँधेरी गुफा में घसीटे गये व्यक्ति की तरह प्रवेश किया। उस तालाब जैसे पेट में साँस लेने की तो गुंजाइश थी पर गर्मी इतनी तेज पड़ रही थी मानो खौलते पानी में उबाला जा रहा हो, फिर भी मैंने साहस से काम लिया। कमर में से कठिनाई से ही चाकू निकला मछली की आँतों में बेतरह कसा हुआ था। हिलने-डुलने की गुंजाइश नहीं थी, फिर भी किसी तरह निकला और भीतर में मछली का पेट चीरने का सिलसिला चलाया। पेट की परत इतनी मोटी थी और उसकी भीतरी अंग रचना इतनी जटिल थी कि उसके परतों को फाड़ते उभारते घण्टों लग गये तब कहीं बाहर निकलने का रास्ता बन सका।

शरीर ऐसा नहीं है जो सहज ही मर जाय। मनोबल साथ न दे तो बात दूसरी है पर यदि उसे इच्छा शक्ति की सहायता मिले तो इसमें कितनी ही ऐसी विशेषताएं उत्पन्न की जा सकती हैं जो साधारणतया असम्भव मालूम पड़ती हैं। पर जो लोग शरीर पर मन के नियन्त्रण का तथ्य जानते हैं उन्हें यह समझना कठिन न होना चाहिए कि देह के अवयव अपनी प्रकृति बदल सकते हैं और मन की इच्छानुसार ऐसा भी करने के लिए तत्पर हो सकते हैं जो अतिरिक्त प्रयत्नशीलता के अभाव में असम्भव ही समझा जा सकता है।


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