हर किसी को मरना ही पड़े यह आवश्यक नहीं। कहा जाता है परशुराम, भीष्मपितामह, अश्वत्थामा, हनुमान आदि कितने ही महाभाग इस धरती पर ही अजर-अमर हैं। यह कहाँ तक सत्य है कुछ कहा नहीं जा सकता। पर अमीबा, पैरामीसियम, पूग्लीना आदि कितने ही एक कोशीय जीव अमर हैं। इनमें नर मादा का अन्तर नहीं होता। न इनके बच्चे होते हैं। अपने विकास क्रम में आगे बढ़ते हुए वे टूटकर एक से दो बन जाते हैं और यदि मानना हो तो यही इनका जन्म-मरण माना जा सकता है।
आत्मा की अमरता असंदिग्ध है पर यदि प्रयत्न किया जाय तो पूर्ण अमरता न सही वर्तमान जीवन अवधि को कई गुना बढ़ाया जा सकता है।