मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह जितना अधिक सम्भव है, बाहरी परिस्थितियों पर शासन करे और जितना कम हो सके उनसे शासित रहे।
-गेट
सिकन्दरिया में एक ऐसा बौना मनुष्य था जिसकी ऊँचाई केवल 17 इंच थी, उसका नाम था अलीपियस। उसे वहाँ के अमीर जैम्बिलकस ने अपने मेहमानों के मनोरंजन के लिये अपने पास रखा था। उसे कभी कभी तोते के पिंजड़े में बंद करके इधर उधर ले जाया जाता था।
ओहियो (संयुक्त राज्य) के सिनसिनाटी नगर में एक लड़की थी कुमारी फैनी माइल्स। यह सन् 1880 में जन्मी। इसके और सब अंग तो साधारण थे पर पैरों के पंजे असाधारण रूप से लम्बे थे। उनकी लम्बाई दो-दो फुट थी। उसकी इस विचित्रता से सभी डरते थे और कोई उससे विवाह करने के लिये तैयार न हुआ।
डेट्रामेट, मिचीराना (अमेरिका) का एक नागरिक अल्फ्रेड लेंजवेन एक अनोखी शारीरिक विशेषता से सम्पन्न था। जिस प्रकार दूसरे लोग नथुनों से साँस लेते हैं वह आँखों से साँस ले सकता था और छोड़ सकता था। परीक्षा के तौर पर वह जलता दीपक और मोमबत्तियाँ मुँह और नाक बन्द करके मात्र आँखों से देखकर बुझा देता था।
फेडपैटजेल की आवाज इतनी बुलन्द थी कि जब वे गरज कर बोलते तो उनकी कही हुई बात तीन मील तक सुनी जा सकती थी।
हारमोन स्रावों की घटोत्तरी बढ़ोत्तरी का आहार विहार से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। इसी प्रकार उनका सचेतन और अचेतन मन से भी कोई सम्बन्ध अभी तक स्थापित नहीं किया जा सका। इसी प्रकार आनुवंशिकी विज्ञान में पैतृक जीनों से भी उनकी कुछ संगति नहीं बैठती, अचेतन मन से कोई संग्रहीत संस्कार उन्हें प्रभावित करता हो ऐसी भी तुक किसी प्रकार नहीं बैठती। फिर अकारण इन अन्तःस्रावों की अक्समात क्यों घटोत्तरी बढ़ोतरी आरम्भ हो जाती है इसका यथार्थ कारण ढूंढ़ना हो तो हमें अधिक गहराई तक जाना पड़ेगा। इसके आधार मनुष्य की सूक्ष्मतम चेतना से सम्बन्धित हैं।
मनुष्य तीन भागों में विभक्त है। एक भाग वह जो भौतिक पदार्थों का पंचतत्वों का बना है, जिसे स्थूल शरीर कहते हैं। जिस पर आहार विहार का प्रभाव पड़ता है और जिसका उपचार औषधियों अथवा उपकरणों से किया जाता है। दूसरा भाग वह जिसे मन, मस्तिष्क अथवा अचेतन कहते हैं। यह सूक्ष्म शरीर है। चिन्तन एवं वातावरण का इस पर प्रभाव पड़ता है। तर्क, विवेक विचार विनिमय, भावोत्तेजना जैसे उपायों से इसे विकसित किया जाता है। नशीले तथा दूसरे प्रकार के रसायन भी इसे प्रभावित करते हैं। आहार का एवं क्रिया-कलाप का भी इस पर असर पड़ता है। मनोविज्ञान, परामनोविज्ञान, मस्तिष्कीय विद्या आदि के माध्यम से इसे परिष्कृत, संतुलित किया जाता है।
तीसरा भाग इन दोनों से ऊपर है, जिसके कारण शरीर लिंग शरीर हृदय, अन्तःकरण आत्मा चेतना आदि नामों से पुकारते हैं। इसका सीधा सम्बन्ध मनुष्य की आस्था, श्रद्धा आकाँक्षा, भावना एवं अहंता से है। उस स्तर के पाप पुण्य वहाँ छाये रहते हैं और इन्हीं के आधार पर जीव की अन्तरंग सत्ता का प्रकटीकरण होता है। हारमोन इसी स्तर की स्थिति में प्रभावित होते हैं इसलिए यदि उन्हें चाहें तो संचित प्रारब्ध, अथवा संग्रहीत संस्कार भी कह सकते हैं। यह संचय इस जन्म का भी हो सकता है और पिछले जन्मों का भी परिवर्तन एवं उपचार इस स्तर की स्थिति का भी हो सकता है, पर वे प्रयत्न होने उसी प्रकार के चाहिएं जो आन्तरिक सत्ता की गहराई तक प्रवेश कर सकें और अपना प्रभाव उस पृष्ठभूमि तक उतार सकें।
क्या हारमोन क्षेत्र पर नियन्त्रण हो सकता है? क्या उनकी विकृत गतिविधियों को सन्तुलित किया जा सकता है? क्या इच्छा या आवश्यकता के अनुरूप इन्हें घटाया या बढ़ाया जा सकता है? इसका उत्तर ‘हाँ’ में दिया जा सकता है। पर यह समझ लेना चाहिए कि इसके लिए प्रयास वे करने पड़ेंगे जो अन्तःचेतना को गहराई तक प्रभावित करते हैं। शारीरिक आहार विहार या मानसिक तर्क वितर्क या उपचारों से उस गहराई तक नहीं पहुँचा जा सकता जहाँ इन हारमोनों का मूलभूत उद्गम है। केवल आध्यात्मिक साधनाओं का मार्ग ही ऐसा है जो शरीर और मन को प्रभावित कर के हारमोनों को ही नहीं और भी कितने ही महत्वपूर्ण आधारों में हेर फेर करके मनुष्य को सामान्य से असामान्य बना सकता है।