महारानी विक्टोरिया की ट्रेन का कीड़ा(Kahani)

October 1972

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महारानी विक्टोरिया की स्पेशल ट्रेन रात के घने कोहरे को चीरती हुई-धड़धड़ाती लन्दन की ओर दौड़ रही थी। ट्रेन के ड्राइवर को रेल की पटरी पर एक विशालकाय दैत्य खड़ा हुआ-हाथ पैर चलाता हुआ दिखाई दिया। रेल के आगे आगे ही वह पटरी पर दौड़ रहा है।

गाड़ी रोक दी गई। पटरी पर दौड़ने वाले दैत्य को तलाश किया गया पर वह गायब हो चुका था। असमंजस के साथ गाड़ी आगे बढ़ाई गई। देखा गया कि दो सौ गज आगे ही नदी का पुल टूट गया है। यदि गाड़ी तेज चाल से चली आती होती तो वह जरूर नदी में गिर जाती और महारानी समेत सभी लोगों को प्राण गँवाने पड़ते।

दैत्य ने पटरी पर दौड़कर गाड़ी को रुकवाया। सचमुच वह कोई बड़ा शुभ चिन्तक होगा। महारानी ने इस उपकार के लिये बहुत बहुत अहसान माना और धन्यवाद दिया। वह यह जानने को बहुत उत्सुक थी कि आखिर वह देव दैत्य था कौन? दूसरे दिन गाड़ी यथास्थान पहुँची, सफाई करते समय मालूम हुआ कि एक छोटा कीड़ा रेल फ्लैश लाइट में फंस गया था। बल्ब के सामने वही फड़फड़ाता था। उसकी छाया पटरी पर दैत्य, बनकर उछल कूद करती थी।

तथ्य जब महारानी को बताया गया तो उनने, उस उपकारी कीड़े को बहुत कृतज्ञता और सम्मानपूर्वक ब्रिटिश म्यूजियम में रखवा दिया, जो अभी तक सुरक्षित है।

ऐसे उपकारी तत्व हमारे चारों ओर भीतर और बाहर बिखरे पड़े हैं और निरन्तर अज्ञात सहायता करते रहते हैं। काश हम उन्हें देखने समझने में समर्थ होते तो प्रतीत होता कि यहाँ उपकारियों और शुभचिन्तकों का कितना महत्व है।


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