मुशाकी (जापान) में अब से ढाई सौ वर्ष पूर्व हवाना होकीची नामक एक बालक गरीब परिवार में जन्मा। उसे सात वर्ष की आयु में चेचक निकली और उसी में दोनों आँखों से अन्धा हो गया। अब उसके लिए कुछ भी देख सकना सम्भव न था। इस दुर्भाग्य भरे जीवन में अब अन्धकार के अतिरिक्त और कुछ रह नहीं गया था। ऐसी स्थिति में लोग पराश्रित होकर जीते हैं। दूसरों की सहायता पर ही उनकी जीवन यात्रा चलती है।
पर होकीची हिम्मत नहीं हारा। एक-एक इंच की दो आंखें ही तो गई थीं। इतने बड़े शरीर के अन्य कलपुर्जे तो ज्यों के ज्यों थे, फिर वह क्यों यह माने कि उसका सब कुछ चला गया। 63 इंच लम्बे शरीर में से दो इंच घट जाने पर भी 61 इंच की काया तो यथावत थी ही।
होकीची 101 वर्ष जिया। 7 वर्ष बचपन के छोड़कर शेष 94 वर्ष उसने अनवरत रूप से ज्ञान की साधना की। किशोर अवस्था तक वह केवल पढ़ता रहा इसके बाद उसने पढ़ाने का कार्य अपना लिया। वह छात्रों को पढ़ाता और पढ़ाने के बदले में उनसे अपने काम की पुस्तकें पढ़वाकर अपने ज्ञान की वृद्धि करता। यह पढ़ने और पढ़ाने का क्रम उसने आजीवन जारी रखा और जापान ही नहीं समस्त संसार के अद्भुत स्मरण शक्ति सम्पन्न विद्वानों, की अग्रिम पंक्ति में अपना नाम लिखाया। वह एकबार जो सुन लेता उसे कभी भूलता न था।
उसके मस्तिष्क में संग्रहित अति उपयोगी ज्ञान को एक राष्ट्रीय शिक्षा संस्था ने नोट कराया और उसके आधार पर (एक विश्व ज्ञान कोष) प्रकाशित किया गया जो 2820 खण्डों में प्रकाशित हुआ है। संसार के इतिहास में इससे बड़ी और इससे अधिक तथ्यपूर्ण पुस्तक अभी तक कोई भी नहीं छपी।