चींटियों को आटा खिलाने (Kahani)

October 1972

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक धनी ने कहीं सुना कि चींटियों को आटा खिलाने से सारे पाप कट जाते हैं। इतना सस्ता नुस्खा पाकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और एक छटाँक आटा वह रोजाना सवेरे मन्दिर के आस-पास चींटियों के बिलों पर बिखेरने जाने लगा।

महीने भर में चींटियों के हजारों नये बिल तैयार हो गये और इस सुविधा से लाभ उठाने के लिये करोड़ों चींटियाँ उस क्षेत्र में जमा हो गई। उनकी संख्या इतनी बढ़ी की मन्दिर के समीप रहने वाले लोगों के नाकों दम आ गया और वे वह इलाका छोड़कर अन्यत्र भागने लगे।

मन्दिर के आँगन में एक दिन एक संत का प्रवचन हुआ उनने कहा -”जोश के साथ होश भी कायम रखा जाना चाहिये, भावुकता के साथ विवेक का भी ध्यान रहना चाहिये। धर्म कृत्य करने के साथ यह भी सोचना चाहिये कि उससे धर्म की जड़ें तो नहीं कट रहीं चींटियों को बुलाकर हम इन्सानों को भगाने में तो नहीं लगे हुए हैं।

धनी ने उस प्रवचन पर गहराई से विचार किया और अपने अविवेक से हाथ खींच लिया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles