राज्य तन्त्र (Kahani)

November 1972

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राज्य तन्त्र क्रान्तिकारियों के हाथ में न रहकर प्रतिगामी नौकरशाही के हाथ में चला गया। नौकरशाही की बन आई और निरीह जनता विवश ही देखती रह गई।

सत्ता और सम्पत्ति के लोभ में जो लोग अन्धे हुए हैं- जब तक उनकी प्रतिष्ठा कायम है, देश की स्थिति नहीं सुधर सकती। सरकारी तन्त्र के नाग पाश से मुक्त लोकतन्त्र खड़ा करना जरूरी है। उसके लिए नैतिक क्रान्ति चाहिए।

-काका कालेलकर


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