जो सोचता है, धन से सब कुछ किया जा सकता है। उस पर सन्देह किया जाना चाहिये कि यह धन के लिये कुछ भी कर सकता है।
-गेटे
लन्दन के एक नागरिक ए. जेरमन ने 10 नवम्बर 1974 की रात को सपना देखा कि लेसिस्टर नामक स्थान में होने वाली घुड़दौड़ में (टुवेन्टी-टुवेन्टी) घोड़ा जीतने वाला है। वह सवेरे उठते ही घुड़दौड़ की इनामी टिकट बेचने वाली केम्वल कम्पनी के डायरेक्टर श्री एम.वी. केम्वेल से मिले और बीस नंबर के घोड़े पर दाँव लगाने के लिये उन्हें धन प्रस्तुत किया।
वास्तव में इतने घोड़े दौड़ने वाले नहीं थे। उन्होंने कह दिया बीस नम्बर का घोड़ा कोई नहीं है। निराश जेरमन अपना धन वापिस लेकर लौट आये।
घुड़दौड़ यथासमय हुई और 17 नवम्बर के अखबारों में छपा कि- ‘टुवेन्टी-टुवेन्टी’ नामक घोड़ा जीता और उस पर दाँव लगाने वालों को पुरस्कार मिले।
जेरमन सिर धुन कर रह गया। उसने सपने के शब्दों को यथावत् न समझकर उसका अर्थ न समझकर उसका अर्थ ‘बीस’ लगाया और इस नम्बर को तलाश करने के चक्कर में घूमता रहा।
पैसा तो उसे नहीं मिला पर सपने की यथार्थता को प्रमाणित करते हुए केम्वेल कम्पनी ने यह प्रकाशित कराया कि वस्तुतः जेरमन का सपना सही था और उसने उस नम्बर के बारे में बहुत पूछ-ताछ और बहुत झंझट किया था। पर घोड़े के नाम और नम्बर का भ्रम खड़ा हो जाने से उसे टिकट प्राप्त न हो सका।
स्काटलैंड के एडेन स्मिथ नामक किशोर को एक सपना कई बार आया कि उसके मकान के देहरी के सामने सत्रहवीं शताब्दी में पहने जाने वाले पोशाक पहने हुए कोई व्यक्ति खुदाई करता है। लड़के ने अपने घर में यह बात कही ‘खुदाई’ कराई गई तो वहाँ ताँबे के एक बर्तन में 80 स्वर्ण मुद्रायें निकली जो सत्रहवीं शताब्दी की थीं।
स्पेन के एक रेलवे कर्मचारी की तीन लड़कियाँ थी। उनकी माँ उन्हें बहुत चाहती थी और भरपूर प्यार करती थी, परी उन्हें एक बुरा सपना बार-बार दीख पड़ता था कि उनकी माँ डायन हो गई और उन्हें खाने को दौड़ती है। पहले तो वे लड़कियाँ इसे बताने में ही संकोच करती रहीं पर पीछे जब कई बार तीनों ने एक ही सपना देखा एक ही समय देखने लगीं तो वे डर गई और उन्होंने उसकी चर्चा की। ऐसा कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं था, इसलिये उस स्वप्न को निरर्थक एवं ऊटपटाँग माना गया। पर कुछ समय बाद एक विचित्र बात हुई। उनकी माँ पागल हो गई और एक रात उसने सोती हुई तीनों लड़कियों को बुरी तरह घायल कर दिया।
ताशकन्द (रूस) से भेजा श्री उदय कुमार वर्मा का एक समाचार 2 अक्टूबर 66 के धर्मयुग में छपा है। उसमें बताया गया है कि श्री लालबहादुर शास्त्री जिन दिनों ताशकन्द आये थे तब वहाँ की एक ‘दोम अस्पीरान्तीव नामक स्नातकोत्तर छात्रा उन्हें देखने को बहुत उत्सुक थी। भारत के प्रति ही नहीं उसके प्रधानमन्त्री के प्रति भी उसको बहुत दिलचस्पी थी। उसने सपना देखा था कि वह श्मशान में खड़ी है और वहाँ शास्त्री जी का मृत शरीर रखा है। इस सपने को सच मानती थी और कहती थी कि यदि इस बार शास्त्री जी को उसने न देख पाया तो फिर कभी भी वह देख न पायेगी ता. 9 जनवरी 66 को ताशकन्द प्राच्य भाषा संस्थान में शास्त्री जी का भाषण हुआ और वह उन्हें देखकर सन्तुष्ट भी हुई।
उसी ता. 9 की रात को मैंने सपना देखा कि हम लोग शास्त्री जी को हवाई अड्डे पर विदा करने जाते हैं। इतने में यह छात्रा आ जाती है और कहती है शास्त्री जी तो मर चुके। अब मरी देही को विदा करने जाकर क्या करोगे।
ता. 10 को सवेरे वह लड़की फिर मिली। वह हमारी पड़ोसिन ही थी। मैंने उससे कहा- उसकी बात को मेरे अचेतन मन पर बुरा असर पड़ा और मैंने भी रात को तुम्हारे आगमन और शास्त्री जी की मृत्यु का सपना देखा।
ता. 11 को शास्त्री जी काबुल जाने वाले थे। हम ताशकन्द निवासी भारतीय उन्हें विदा करने हवाई अड्डे पर जाने की तैयारी कर रहे थे कि डॉक्टर पाण्डेय ने आकर शास्त्री जी की मृत्यु का समाचार सुना दिया। सपनों के द्वारा इस प्रकार का अप्रत्याशित पूर्वाभास मिलने की बात ने हमें अचम्भे में डाल दिया।
मादरा (राजस्थान) में कुछ दिन पूर्व खुमान सिंह नामक लड़के की अन्ध विश्वासियों ने देवी पर बलि चढ़ा दी। यह दुर्घटना घटित होने से पूर्व उसकी माँ को यह पूर्वाभास हो रहा था कि उसके लड़के का कुछ अनिष्ट होने वाला है। वस्तु वह उसे काम पर जाने से रोज मना कर रही थी। लड़का मान नहीं रहा था। यद्यपि उसे 62 पैसा प्रतिदिन की मजदूरी मिलती थी फिर इतने पैसे भी उस गरीब परिवार की सहायता में कुछ न कुछ सहायक होते थे। काम पर जाने को माँ हर रोज मना करती थी और लड़का जिद करके जाता था। एक दिन तो माँ ने रोटी बनाने से इन्कार कर दिया तो वह उस दिन अपने हाथ से रोटी बनाकर काम पर गया। 9 दिन की इस माँ बेटे के बीच चली आ रही जद्दोजहद का अन्त तब हुआ जब बालक की बलि चढ़ गई और माँ का वह पूर्वाभास सच हो गया। जिसके अनुसार उसे अपने लड़के का अनिष्ट होना दिखाई पड़ता था।
नन्दगाँव (छतरपुर) निवासी श्री हुकमचन्द एक बार प्रवास में गये और मथुरा में उन्हें सर्प ने डस लिया। रामकृष्ण मिशन अस्पताल वृन्दावन में भरती हुए और पीछे वे अच्छे भी हो गये। इसी बीच उन्होंने एक सपना देखा जिसमें उन्हें एक स्थान पर भगवान पार्श्वनाथ की बहुमूल्य मूर्ति दबी होने का संकेत था।
स्वप्न के अनुरूप स्थान की खोज में वे बहुत दिन घूमते रहे पीछे वह स्थान मिल गया और तीन दिन की खुदाई के बाद वह मूर्ति निकाली गई। उस पर सम्वत् 189 लिखा था इस प्रकार वह लगभग दो हजार वर्ष पुरानी सिद्ध होती है। उसके प्राचीन होने में किसी को सन्देह नहीं था।
मथुरा के पुरातत्व विभाग ने उसे अपने कब्जे में ले लिया। पीछे राज्य सरकार की अनुमति से जुलाई सन् 62 में जैन समाज को सौंप दिया। यह मूर्ति ‘कसौटी’ पत्थर की बनी हुई और उसका मूल्य एक लाख पच्चीस हजार रुपया आँका गया है।
मूर्तियाँ गाढ़कर उसे सपने का संकेत बताकर खुदवाने और पीछे उस मूर्ति को चमत्कारी बताकर मन्दिर बनवाने तथा अन्य लाभ उठाने की जालसाजियाँ भी खूब चलती है फिर इस मूर्ति के बारे में वैसी बात नहीं हो सकती। इतनी बहुमूल्य और इतनी प्राचीन मूर्ति को प्राप्त करना और गाढ़ना कठिन है। फिर स्वप्न दृष्टा ने इसके लिये अलग मन्दिर न बनाकर मथुरा के चौरासी तीर्थ में ही स्थापित करा दिया।
इसका अर्थ यह न समझा जाय कि हर सपना सही ही होता है। उनमें से अधिकाँश असत्य निकलते हैं। कुछ समय पूर्व शोलपुर में एक कपड़े के व्यापारी ने स्वप्न देखा कि उसके मकान के नीचे विपुल सम्पदा दबी पड़ी है। उसने उसे सच माना और मकान का आँगन गहरा खुदवा डाला। खजाना तो नहीं मिला पर मकान गिर पड़ा और उसका मलबा उस खुदे हुए गड्ढे में समा गया। व्यापारी के हाथ पछतावे के अतिरिक्त और कुछ न लगा।
कहा जा चुका है कि अधिकाँश स्वप्न अलंकारिक और साँकेतिक भाषा में होते हैं, उनके रहस्यों को जानने के लिए स्वप्न विज्ञान के स्वतन्त्र विकास की आवश्यकता है। ज्यों के त्यों सही निकलने वाले सपने तो बहुत ही कम होते हैं।
स्वप्न विश्लेषण विद्या अध्यात्म विज्ञान का महत्व पूर्ण अंग है, यदि उसका विकास किया जा सके तो मनुष्य की अतींद्रिय चेतना के विकास में भारी सहायता मिल सकती है और उन रहस्यमय जानकारियों से अवगत हुआ जा सकता है जो मनुष्य के लिये हर दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।