यह जीवन समुद्र यात्रा की भाँति है, जिसमें हम सभी एक ही संकुचित नौका में परस्पर मिलते हैं। मृत्यु तट पर पहुँचने के समान है, जहाँ हम सभी अपने-अपने लोक को चले जाते हैं।
-रवीन्द्र