बूँद समुद्र में मिल गई (Kahani)

November 1972

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बूँद समुद्र में मिल गई। पर उसे अपने आपका अन्त सहन न हुआ, वह फिर अलग रहने के लिए छटपटाने लगी।

समुद्र ने समझाया नादान छोकरी, अलग रहकर क्या करेगी। मैं इतना विशाल हूँ तुझ जैसी अनेक बूँदों के मिलने से ही तो बना हूँ। क्षुद्रता गँवाकर महानता पाने की ललक ही तो मेरी लहरों पर थिरकती है ? तेरा साथ रहने में क्या हर्ज है ?

पर बूँद मानी नहीं, उसे अकेलापन ही भाया और उसी के लिये जिद करने लगी। सूरज ने कहा, तो तू मेरी किरणों के साथ तप और धरती पर उतर, जिस आपे को पाकर तू सुखी रह सके वह उससे कम मूल्य पर नहीं मिल सकता। बूँद ने यही निष्कर्ष निकाला कि अलग रहने की बात व्यर्थ है, सही या तो समुद्र का बताया रास्ता है या सूरज का बताया।


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