कुसंस्कारी मन की दुःखदायी प्रतिक्रिया

November 1972

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मन की देख-रेख और साज-सँभाल न करने से अक्सर वह बिगड़ैल घोड़े की तरह मनचाही दिशा में चलने का अभ्यस्त हो जाता है। फिर उसे अपनी ही बात सबसे सही मालूम पड़ती है। दूसरों के तर्क या सुझावों का अपरिष्कृत मन के सामने कोई मूल्य नहीं रहता। ऐसा तब होता है जब कोई दूसरा सुझाने, समझाने, रोकने, सँभालने वाला न हो, मनमर्जी चलने का अवसर मिलता रहे। अपने आप अपने मन के गुण, दोषों पर दृष्टि न रखने से भी ऐसा हो जाता है। जिनके अहंकार को निरन्तर पोषण मिलता रहता है, जो चापलूसों से घिरे रहते हैं और हर सही गलत बात का समर्थन पाते रहते हैं, उन्हें अपनी स्थिति की सर्वोत्कृष्टता का भ्रम हो जाता है और फिर वे अपनी मर्जी के आगे दूसरे किसी की सुनते ही नहीं। राजा महाराजाओं, रईस अमीरों का, सन्त महात्माओं का प्रायः यही हाल होता है वे चापलूस खुशामदियों से घिरे रहते हैं और अपनी हर सही गलत बात की प्रशंसा सुनते रहते हैं। उससे उनकी आत्म निरीक्षण वृत्ति कुण्ठित हो जाती है। विश्लेषण और विवेचन मादा नहीं रहता। फलतः वे एकपक्षीय, एकाँगी दृष्टिकोण के ही अभ्यस्त हो जाते हैं, काट-छाँट करके उचित अनुचित का भेद करने और यथार्थ ढूंढ़ निकालने की प्रतिभा ही वे खो बैठते हैं। ऐसे लोग आये दिन अपनी सनकों के शिकार होते रहते हैं, और उलटे परिणाम सामने आने पर हानि उठाते और पछताते रहते हैं।

अड़ियल अभिरुचि का एक निर्मम उदाहरण इतिहास के पृष्ठ पर यह भी है कि फ्राँस के राजा लुई सप्तम ने ईसाई धर्म के दो वर्गों में चल रहे धर्मयुद्ध के बाद अपने गलमुच्छे मुड़वा डाले। राजा चेहरे को साफ सुथरा रखना चाहता था, गलमुच्छे तो उसने युद्ध में आतंक पूर्ण आकृति बनाने के लिए ही रखाये थे पर ये रानी ऐलीनोर को बहुत भा गये। वह नहीं चाहती थी कि उसका पति-उसकी दृष्टि में सुन्दर लगने वाले इन गलमुच्छों को मुड़ाये। दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़े रहे और जिद को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाये रहे। धीरे-धीरे बात बढ़ती चली गई और अन्ततः रानी ने घोषणा करदी कि उसका प्रेम समाप्त हो गया है और वह तलाक लेकर अलग रहेगी। तलाक मंजूर हो गया।

रानी ऐलीनोर दक्षिणी फ्राँस के गिनी और पाइटो दो प्रान्त पिता के परिवार से दहेज में अपने साथ लाई थी। वह उसने वापिस माँगे और अपने पुनर्विवाहित पति इंग्लैंड के राजा हेनरी द्वितीय के नाम से लिख दिये। अब इन दिनों में युद्ध छिड़ गया और वह सन् 1152 से लेकर 1453 तक 301 वर्ष तक चला।

गलमुच्छे मुड़ाने या न मुड़ाने की तनिक सी बात को दुराग्रह ने कितना जटिल बना दिया और उसका दुष्परिणाम कितनों को कितना अधिक भुगतना पड़ा इसे इतिहास के विद्यार्थी भली प्रकार जानते हैं।

बोरबारा का राज्य मंत्री फरीदएद्दीन 84 वर्ष जिया। वह सन् 870 में जन्मा और 954 में मरा। 17 वर्ष की आयु में वह एक दुर्घटना का शिकार हो गया जिससे उसका चेहरा बेतरह विकृत और कुरूप हो गया। उसे कुरूपता नापसन्द थी, अपनी भी। पर करता क्या? आखिर उसने एक सोने का मुखौटा बनवाया और मृत्यु समय तक उसे ही पहने रहा। दूसरों को अपना असली चेहरा दिखाना तो दूर कभी दर्पण में खुद भी उसने उसे नहीं देखा। यों वह बड़ा विद्वान और अनुभवी राजनीतिज्ञ था। उसे अपने जीवन काल में महत्वपूर्ण पद प्राप्त हुए पर चेहरा उसने न राजा को दिखाया न प्रजा को। जब उसकी मृत्यु हुई तो भी उसकी वसीयत के अनुसार उसे उस सोने के मुखौटे सहित ही दफनाया गया।

राजा सबसे बड़ा और सबसे पवित्र होता है यह मान्यता अपनाकर एक राजवंश ने अपने ऊपर विचित्र प्रतिबन्ध लगा लिये कि वह न जो जमीन पर पैर रखेगा और न मनुष्य के अतिरिक्त और किसी वाहन का प्रयोग करेगा। इस सनक ने उस राजवंश के लोगों को पराधीन जैसी कष्टकर स्थिति में डाले रखा पर वे अड़े अपनी ही बात पर रहे।

बेल्जियम के अफ्रीकी उपनिवेश काँगो में एक राज्य है कुन्डी। यहाँ का राजा वहाँ के धार्मिक विश्वासों के आधार पर अपने को देवता का अवतार मानता था और इतना पवित्र समझा जाता था कि वह कभी जमीन पर पैर न रखे अन्यथा जनता को दैवी प्रकोप सहना पड़ेगा। उसके लिए एक शाही भारवाहक नियत रहता था, उसी के कन्धे पर चढ़कर उसे जहाँ कहीं भी जाना होता-जाता। राज सिंहासन पर भी यह भार वाहक ही उसके लिये कुर्सी का काम देता।

साथ ही एक और भी प्रतिबन्ध यह रहता था कि राज सिंहासन पर बैठते समय जो भारवाहक राजा को मिलता केवल वह एक ही उसे मिलता और यदि किसी प्रकार उस भारवाहक की मृत्यु हो जाय तो राजा को भी सिंहासन छोड़ना पड़ता। इस भय से राजा को लादे फिरने वाले सेवक को सुविधायें भी भरपूर मिलती ताकि वह मोटा तगड़ा बना रहे, मरने न पाये।

एक महिला ऐसा पति ढूँढ़ना चाहती थी जो उसकी मर्जी के अनुसार बिलकुल फिट बैठ सके। जीवन भर वह ऐसा ही दूल्हा तलाश करती रही। उसने ढेरों को पटाया और पसन्द किया, सगाई भी हुई और शादी भी। पर जैसे ही साथ रहना आरम्भ हुआ कि उसमें मर्जी के विरुद्ध कुछ दोष दीख गया और उस रत्ती भर के अन्तर से वह शत्रु जैसा बुरा लगने लगा और क्षण भर में तलाक की बारी आ गई। इस प्रकार उसके सभी विवाह असफल हुए।

ब्रूग्स (बेल्जियम) की एक महिला एड्रीन कुयोत ने पति के साथ निर्वाह करने में सबसे अधिक अस्थिरता का रिकार्ड कायम किया है। उसने अपने यौवन के 23 वर्षों में 652 व्यक्तियों से सगाई पक्की की। किन्तु विवाह 53 से किया। बाकी तो विवाह से पूर्व ही दुत्कार दिये गये। इस प्रकार औसतन उसने प्रत्येक 12 दिन में एक बार पतियों के बारे में अपना विचार बदला और पुराने को छोड़कर नये को पकड़ने के लिए कदम उठाया।

मानसिक रोग उन्हें ही नहीं कहते जिसमें मनुष्य नंगा हो जाय, ईंट पत्थर फेंके या पागलखाने में बन्द करना पड़े। मन का कुसंस्कारी ही नहीं, एकाँकी, एक पक्षीय या सनकी शक्की होना भी एक प्रकार का मनोविकार है। ऐसे आदमी की किसी से पटरी नहीं बैठती। वह सबकी निन्दा करता है और हर जगह दोष देखता है। साथ ही किसी पर विश्वास करे या उदार हो जाये तो उस पर सब कुछ उड़ेल देने में भी कमी नहीं रखता। ऐसे अव्यवस्थित चित व्यक्ति भी मनोविकार ग्रस्त रोगियों में आते हैं। शारीरिक रोग पीड़ितों की तरह इनके भी उपचार की आवश्यकता है।

मन पर बुरा प्रभाव डालने वाली वे दुष्प्रवृत्तियाँ भी हैं जिन्हें अनैतिक आचरण या पाप कर्म कहते हैं। शरीर से कुकर्म करने की तरह मन से अपने लिए या दूसरों के लिए अशुभ चिन्तन करते रहने से अंतर्द्वंद्व खड़ा हो जाता है और अपने भीतर ही एक देवासुर संग्राम खड़ा हो जाता है। दो हाथी जिस क्षेत्र में लड़ते हैं उसे कुचल कर रख देते हैं। दुष्प्रवृत्तियों के उठने पर शाश्वत सत्प्रवृत्तियाँ उनसे लड़ने खड़ी होती हैं और फिर उनमें मल्लयुद्ध आरम्भ हो जाता है। इससे सामान्य चेतना क्रम लड़खड़ाने लगता है और उसका प्रभाव, परिणाम शारीरिक रोगों के रूप में बाहर उभरकर आता है। यदि सीधा सरल, निर्मल और निश्चिन्त जीवन जिया जाय तो उन मानसिक रोगों से बचा जा सकता है जो शारीरिक रोगों से भी अधिक कष्टकारक होते हैं। इनसे छुटकारा अवाँछनीय विचारणाओं और गतिविधियों और गति विधियों का परित्याग करने पर ही मिलता है।


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