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November 1972

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दूसरे के मन का भाव समझने में समय लगता है; परन्तु कभी-कभी यह बात अपने बारे में भी लागू हो जाती है। बहुत से लोग अपने मन का भाव भी नहीं समझ पाते।

-गोरा

अन्य मानसिक कारण जो मनुष्य को भीतर ही भीतर क्षुब्ध, असंतुष्ट किये रहते हैं, घृणा, ईर्ष्या, निराशा भरे रहते हैं, शोक संतप्त और उद्विग्न बनाये रहते हैं अवश्य ही आज नहीं तो कल किन्हीं ऐसे रोगों की शक्ल में फूटेंगे जिनका कोई कारण न तो डाक्टरों की समझ में आवेगा और न वे उपयुक्त इलाज ही कर सकेंगे। आत्म धिक्कार की भावना भी ऐसी ही है। अनैतिक कर्म करने वाले की अन्तः चेतना उन्हें हेय और पतित ठहराती रहती है; यह आत्म प्रताड़ना लाठियों से पिटने की तुलना में अधिक गहरी चोट पहुँचाती है और उनके दर्द की अनुभूति घुमाव दार रास्ते से इतनी अधिक होती रहती है कि जीवन दूभर हो जाता है। बाहर से सुखी दीखने और भीतर से घोर दुखी रहने वाले विडम्बना भरे व्यक्तित्व अब हर जगह प्रचुर मात्रा में देखे जा सकते हैं ।


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