सामान्यतः देखा जाता है कि व्यक्ति 40-45 की आयु के बाद अपने को वृद्ध समझने लगते हैं। कुछ करने की, आगे बढ़ने की उनकी महत्वाकाँक्षायें बुझ सी जाती हैं। स्वास्थ्य और सामर्थ्य होने पर भी यह मानसिक धारणा कि ‘वे वृद्ध हो गये हैं’ उनकी शक्ति को पंगु बना डालती है। वस्तुतः देखा जाये तो विश्व के महापुरुषों ने अपने ख्याति प्राप्त कार्य 50-60 वर्ष की आयु के बाद ही किये हैं क्योंकि वर्षों का संचित अनुभव उनकी सहायता करता है, यौवन शारीरिक अवस्था मात्र नहीं है अपितु शक्ति और सामर्थ्य का आनन्द और उल्लास का, सृजन शक्ति का दूसरा नाम ही यौवन है। गेलार्ड हाजर का कथन है- ‘उम्र का सम्बन्ध आदमी के शरीर, आत्मा और मन से है। कैलेन्डर से उसका कोई सम्बन्ध नहीं।’
महापुरुषों के जीवन पर यदि हम दृष्टि डालें तो स्पष्ट हो जायेगा, कि आयु का बन्धन न मानने वाले व्यक्ति तथाकथित वृद्धावस्था में भी महान कार्य करते हैं। महात्मा गाँधी ने 63 वर्ष की आयु में, और उसके बाद भी अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। उनका कथन था- ‘मुझे’ तो ख्याल भी नहीं आता कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ। जिस आदमी को ऐसा लगता हो, वह क्या पाठशाला के एक विद्यार्थी की तरह उर्दू का अध्ययन करेगा? तामिल, तेलुगु और बंगला का अध्ययन करने के सपने देखेगा? और सचमुच ही उन्होंने वृद्धावस्था में भी इन लिपियों तथा भाषाओं का अध्ययन किया।
नोबेल पुरस्कार विजेता विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर 60 वर्ष की आयु तक निरन्तर साहित्य साधन में लगे रहे। परिणामतः वे श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियाँ हमें देते रहे और विश्व वन्दनीय बने।
अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध कवि मिल्टन ने अपनी विश्व प्रसिद्ध कृति पैराडाइज लास्ट की रचना 50 वर्ष की आयु में तथा पैराडाइज रीगेन्ड की 62 वर्ष की अवस्था में की थी। जर्मन कवि गेटे ने 80 वर्ष की आयु में अपनी महत्वपूर्ण कृति ‘फास्ट’ पूरी की थी। महान दार्शनिक बैनैदित्तो क्रोचे 80 वर्ष की आयु में भी कठिन श्रम करते थे। वे प्रतिदिन 10 घंटे निश्चित रूप से कार्य करते थे। 82 वर्ष की आयु में भी उनकी 2 पुस्तकें प्रकाशित हुई थीं। प्रसिद्ध चित्रकार टीटान ने 98 वर्ष की आयु में अपना ऐतिहासिक चित्र ‘बैटिल ऑफ लिमान्टो’ का अंकन किया था।
उद्योग के क्षेत्र में भी ऐसे अनेकों उदाहरण मिलते हैं जबकि वृद्ध समझे जाने वाले व्यक्तियों ने युवकों से भी अधिक कार्य कुशलता तथा शक्ति का परिचय दिया। कौमोडोर वैन्डरबिट ने 70 से 80 की वर्ष की आयु के मध्य लगभग 10 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित कर युवकों को भी मात दे दी। विश्व प्रसिद्ध उद्योगपति हेनरी फोर्ड ने अपने पिता से जब कम्पनी का उत्तरदायित्व लिया तो वे 82 वर्ष के थे। इस आयु में भी जिस कुशलता से वे कार्य संचालन करते थे उसे देखकर कर्मचारी भी दंग रह जाते थे।
ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री श्री विंस्टन चर्चिल 70-80 साल की आयु के उपरान्त भी शक्तिशाली डायनेमो के समान अपना कार्य करते रहे। अपनी क्रियाशीलता, अदम्य उत्साह तथा शक्ति के कारण वे इस आयु में भी ‘उज्ज्वल भविष्य वाले युवा’ कहे जाते थे।
तरुण बने रहने के लिये यह आवश्यक है कि सन्तुलित आहार-विहार अपनायें, खाद्य अखाद्य सभी कुछ पेट में भरकर शरीर के कोषाणुओं को शक्तिहीन न करें। शरीर को स्वस्थ रखें क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है। व्यायाम तथा भ्रमण के द्वारा शरीर के प्रत्येक अवयव तथा माँसपेशी को शक्तिशाली बनायें। प्रसन्न रहने की आदत डालें तथा खिलखिला कर हँसे। साथ ही यह भी आवश्यक है कि सदैव किसी न किसी कार्य में लगे रहें, बेकार बैठने से हमारी शक्ति तथा प्रतिभाओं पर जंग लग जाती है।