एक सन्त कह रहे थे- मनुष्यों में कुछ देवता कुछ मनुष्य पाये जाते हैं शेष तो नर पिशाच ही होते हैं।
जिज्ञासु ने पूछा- भला इन नर पिशाचों और मनुष्यों तथा देवताओं की पहचान क्या है?
संत ने कहा - मनुष्य देवता वे हैं जो दूसरे को लाभ पहुँचाने के लिए स्वयं हानि उठाने को तैयार रहते हैं, मनुष्य वे हैं जो अपना भी भला करते हैं और दूसरों का भी। नर पिशाच वे हैं जो दूसरों की हानि ही सोचते और करते हैं, भले ही इस प्रयास में भी उन्हें स्वयं भी हानि उठानी और सहनी पड़े।