वह मत करो, जिसके लिए पीछे पछताना पड़े। निरर्थक वस्तुयें बड़ी मात्रा में एकत्रित कर लेने से भी क्या लाभ, जो उत्तम है उसका थोड़ा सा सञ्जय भी उत्तम है। अव्यवस्थित और असंयत रहकर सौ वर्ष जीने की अपेक्षा ज्ञान और धर्मपूर्वक एक वर्ष जीवित रहना अच्छा है। धुआँ देकर देर तक सुलगती रहने वाली और कालिख उत्पन्न करती रहने वाली अग्नि की अपेक्षा थोड़ी देर उज्ज्वल प्रकाश देकर बुझ जाने वाली आग सराहनीय है।
जिसने धर्म का आधार छोड़ दिया, जो निरंकुश और स्वेच्छाचारी की तरह सोचता और करता है उससे दुष्कर्म ही बन पड़ेंगे वह कुमार्ग पर ही चल सकेगा। धर्म बन्धनों में अनेक स्थानों पर बँधा हुआ मन ही उद्दण्ड घोड़े की तरह काबू में रह पाता है। ढालू जमीन पर फैलाया हुआ पानी जैसे ऊपर की ओर नहीं चढ़ता वैसे ही स्वेच्छाचारी मन न तो भली बातें सोचता है और न भले कार्य करता है, मन को कुमार्ग से रोकना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है, जिसने अपने ऊपर संयम कर लिया वह इस त्रैलोक्य का स्वामी है।
पाप की अवहेलना न करो। वह थोड़ा देखते हुए भी बड़ा अनिष्ट कर डालता है। आग की छोटी सी चिनगारी भी मूल्यवान वस्तुओं के ढेर को जला कर राख कर देती है। पला हुआ साँप कभी भी डस सकता है। मन में छिपा हुआ पाप कभी भी हमारे उज्ज्वल जीवन का नाश कर सकता है।
-भगवान महावीर