जीवन और मरणोत्तर जीवन का तारतम्य

April 1972

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अब से कोई बीस वर्ष पूर्व इंग्लैंड में एक ऐसी घटना प्रकाश में आई जिसने एक प्रकार से तहलका ही मचा दिया।

पोर्ट्स साउथ रोड इशर कस्बे के पास से गुजरती है इस घने जंगलों से घिरे हुए क्षेत्र में लगातार ऐसी घटनाएं होने लगीं कि कोई मोटर उधर से गुजरती तो बन्दूक की गोली की तरह सनसनाती हुई चीज आती और मोटर के शीशे, छत या दरवाजे से टकराकर उसमें छेद कर देती। छेद एक इंच का इतना साफ सीधा, गोल और व्यवस्थित होता मानो किसी बहुत होशियार मिस्त्री ने सधी परखी हुई मशीन से किया है। अन्यथा काँच भी किसी चीज की टक्कर से टूट सकता है, उसके टुकड़े बिखर सकते हैं पर चिकने किनारे वाला सही छेद होना तो सचमुच एक बड़े अचंभे की बात है।

घटनाएं लगातार होने लगी। उधर से गुजरने वाली मोटरों को उस दुर्घटना का अक्सर सामना करना पड़ता। मोटर रुकती, आस-पास को क्षेत्र खोजा छाना जाता, पर आक्रमण कहाँ से होता है, कौन करता है इसका कुछ भी पता न चलता।

पुलिस ने भारी माथा पच्ची की पर कुछ पता न चला। गुप्तचर विभाग के स्काटलैण्ड यार्ड ने आहत मोटरों को वैज्ञानिक जाँच के लिए प्रस्तुत किया पर वहाँ भी सुराग न मिला। इशर कस्बे की नगर पालिका ने तो पुलिस के खिलाफ एक प्रस्ताव ही पास कर डाला कि वह इस क्षेत्र को आतंकित करने वाली इन वारदातों को न रोक पाती है न खोज करती है। पुलिस वाले लाचार थे, कुछ समझ ही काम नहीं करती थी कि किस आधार पर खोज आगे बढ़ाई जाय। कितने ही पत्रकार वस्तुस्थिति पर प्रकाश डालने के लिए उधर पहुँचे। मोटरों पर अदृश्य आक्रमण होने, केवल शीशे टूटने, गोल और सही छेद होने, कोई जनहानि न होने मोटर के इंजनों को कोई आघात न लगने की बात एक साथ मन पर बिठाने से ऐसा चित्र बन जाता था जिसका हल सूझ ही न पड़े। सुरक्षा के सारे प्रयत्न बेकार हो गये। घटनाएं रुक नहीं रहीं थी। कौतूहल और आतंक बढ़ने से उस क्षेत्र का आवागमन रुकने भी लगा था और हर तरह की परेशानी अनुभव की जा रही थी।

कोई कहते थे कि इस घने जंगल में कोई मृत्यु किरण जैसा परीक्षण हो रहा है और वे किरणें छिटक कर ऐसा छेद करती हैं। इन किम्वदंतियों का विज्ञान विभाग ने स्पष्ट खण्डन किया। फिर कारण क्या हो सकता है यह रहस्य बीस वर्ष बाद भी अभी जहाँ का तहाँ बना हुआ है। कुछ समय बाद दुर्घटनाएं बन्द हो गई पर गुप्तचर विभाग के खोज कार्यों में वह तथ्य अभी भी जहाँ का तहाँ मौजूद है।

परोक्ष जीवन और अदृश्य जगत पर विश्राम करने वाले इस घटनाक्रम का संबंध दो भूतकालीन तथ्यों के साथ जोड़ते हैं इनमें से एक तथ्य यह है कि यह क्लेयर माउण्ट स्टेट पहले एक जागीरदार ड्यूक आफ न्यू कान्सिल के पास थी। उसने इस क्षेत्र में एक सुन्दर झील बनवाई। विलियम केन्ट नामक ठेकेदार ने इसे बहुत दिलचस्पी और खूबसूरती के साथ बनवाया। तैयार हो गयी तो ड्यूक ने उसका पैसा दबा लिया और अपने नौकरों से उसे उसी झील में फिंकवा दिया। बेचारा किसी प्रकार निकल तो आया पर दो दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। सुना जाता है कि उसकी क्षुब्ध आत्मा को मोटर स्वामी ड्यूक के साथ-साथ मोटरों से भी घृणा करने लगी होगी और अब ड्यूक के न रहने पर उन्हीं से बदला लेती होगी,

दूसरी एक और घटना भी इस स्टेट से संबंधित है और उस आधार पर भी उद्विग्न मृतात्मा द्वारा इस प्रकार के उपद्रव की बात सोची जाती है। लार्ड क्लाइव ईस्ट इण्डिया कम्पनी की ओर से हिन्दुस्तान गया। वहाँ उसने छल बल से जहाँ अँग्रेजी राज्य बढ़ाया वहाँ अपना व्यक्तिगत स्वार्थ साधन भी खूब किया। वह करोड़ों रुपये की जागीर बनाकर ले गया और जागीरी शान से रहने के लिए इसने क्लेयर माउण्ट का इलाका खरीद लिया। नवाबी ठाठ और वैसी ही विलासिता के साथ वहाँ रहने लगा। इंग्लैंड भर में उसके दुष्ट दुराचरण की चर्चा थी। हर कोई उससे घृणा करता था। कहीं उसे न सम्मान मिलता था, न स्वागत, न सहयोग। उस जंगल में महल बनाकर वह बहुत से खानसामा, रसोइया, नौकर, वेश्याएं साथ लेकर रहा करता था। किसी को वह सुहाता न था न उसे कोई। सुनसान जंगलों में मरघट के प्रेत की तरह विचरण करके वह अपना जी बहलाता था अपने पुराने कुकृत्यों की याद करके वह जीवन के अंतिम दिनों में अर्द्ध विक्षिप्त की तरह रहने लगा था। खूँखारों जैसी इसकी प्रकृति हो गई थी, मोटरों की आवाज उसे बहुत ही ना पसन्द थी। उसने एक दिन सनक में आकर पास वाली सड़क को बन्द करा दिया और मोटरों के लिए बारह मील दूर रास्ता बना दिया ताकि उसके कान में उसकी द्वेष केन्द्र मोटर की न आवाज आये न उसकी सूरत दीखे।

क्लाइव भारत में किये गये अपने द्वारा कुकर्मों की लम्बी गाथा के पृष्ठ खोलता, कोई दूसरा सुनने वाला न होता तो अपने आप से ही बातें करता। एक दिन इसी असह्य मानसिक तड़पन में आत्महत्या कर ली और घिनौने कुत्ते की तरह ऐसे ही उधर कहीं दफना दिया गया।

क्लाइव की आत्मा संभव है अपना मोटर द्वेष अभी भी धारण किये हुए हो और संभव है इसी के क्षेत्र में उनका आवागमन उसे सहन न होता हो और आक्रमण का ऐसा अनोखा शस्त्र उसी के द्वारा प्रयुक्त किया जाता हो।

मरने के बाद मनुष्य की काया ही नष्ट होती है। अन्तःकरण चतुष्टय मरने के बाद भी यथावत बना रहता है। यदि मन आत्म-ग्लानि, आक्रोश आदि भावों से भरा रहे तो उससे न केवल इस जीवन में अशान्ति रहती है वरन् अगले जीवन में भी वह मनः स्थिति बहुत अंशों में ज्यों की त्यों बनी रहती है और विश्राम के लिये मिले हुए उस अवकाश में भी प्राणी को चैन नहीं लेने देती।

इस तथ्य पर उपरोक्त घटनाओं से प्रकाश पड़ता है। इस प्रकार का यही एक प्रमाण नहीं वरन् समय-2 पर ऐसी ही अनेक घटनायें घटित होती रहती हैं पर इन्हें महत्व नहीं मिलता। उपहास और अविश्वास के गर्त में वे घटनाएं भी उपेक्षित हो जाती हैं जो वस्तुतः बहुत प्रामाणिक थीं; यदि उनका गहराई से विश्लेषण होता तो उस प्रत्यक्ष के आधार पर परोक्ष पर बहुत कुछ प्रकाश पड़ सकता था।

उपरोक्त इशर कस्बे के समीप वाले जंगल की घटना को इसलिए महत्व मिला कि पुलिस, पत्रकार आदि लोगों ने उसमें दिलचस्पी ली। यदि वे लोग उस खोज-बीन में भाग न लेते तो मोटर वालों की ही सनक या शरारत कहकर उसे अपेक्षित कर दिया गया होता। यह ठीक है कि कितनी ही मनगढ़न्त ऊल-जुलूल बातें भी होती रहती हैं पर उनमें से कुछ ऐसी भी होती हैं जिनकी खोजबीन करने से उन तथ्यों पर प्रकाश पड़ सकता है जो अभी तक एक प्रकार से अपूर्ण, उपेक्षित और अविश्वस्त ही बने हुए हैं।


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