अन्य लोक वासियों का पृथ्वी से संपर्क

April 1972

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30 जून 1908 साइबेरिया के ताइना प्रदेश में एक ऐसा भयंकर धमाका हुआ, जिसका कारण अभी तक ठीक तरह समझा नहीं जा सका। संध्या के बाद अँधेरी बढ़ती आ रही थी, अचानक सारा आसमान ऐसे तेज प्रकाश से जगमगा उठा मानो कई सूर्य एक साथ निकल पड़े हों। गर्मी इतनी बढ़ी कि लोग प्राण बचाने के लिए जहाँ-तहाँ दौड़े। हजारों हवाई जहाज एक साथ उड़ने जैसी भर्राहट आसमान में गूँजने लगी, उसी समय ऐसी तेज-आँधी पैदा हुई कि सैकड़ों वर्ग मील के पेड़-उखड़ गये और मकानों की छतें उड़ गई।

इस भयंकर विग्रह को दूर-दूर तक सुना, समझा देखा और अनुभव किया गया। जहाजों जैसी भर्राहट हजारों मील तक सुनी गई। यूरोप भर में तीन रातें अँधेरे से रहित पूरे प्रकाश में बीती। आकाश में बादल छाये रहे। लाल, नीले और हरे रंग की किरणें चमकती रहीं, वेधशालाओं के यन्त्रों ने भूकम्प अंकित किया। इर्कतुस्क की वेधशाला ने लम्बी पूँछ वाली तेज प्रकाश जैसी कोई वस्तु दौड़ती हुई नोट की और पुच्छल तारे जैसी आकृति बताई।

बेनोबरा तक पहुँचते-पहुँचते यह प्रकाश और भी अधिक चमक से भर गया। आग के गोले जैसा उछला और भयंकर धमाके के साथ फट गया। इस विस्फोट की गर्मी तीन दिन तक छाई रही। इसके बाद स्थिति संभली तो जाँच-पड़ताल की जा सकी। देखा गया तो सारा जंगल जलकर खाक हो गया था। बड़े पेड़ों के ठूंठ जहाँ तहाँ सुलग रहे थे। पशु-पक्षी कोयले की तरह जले-भुने पड़े थे। उस समय यही अनुमान लगाया कि आकाश से कोई उल्का जमीन पर गिरी है और उसी के पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करने पर जलने से यह विस्फोट हुआ है। पर यह समाधान भी पूरा और संतोषजनक नहीं था।

घटना के बीस वर्ष बाद सुयोग्य वैज्ञानिकों का एक दल नये सिरे से उस दुर्घटना की जाँच करने भेजा गया। दल ने पूरे इलाके की छान-बीन की पर उल्कापात में अनिवार्य रूप से उपलब्ध होने वाले धातुओं के टुकड़े कहीं भी नहीं मिले। उल्का छोटी चीज तो होती नहीं उसका आकार बड़ा होता है। जमीन में धँसने की शंका को निवारण करने के लिए भी सारी धरती कुरेद ली गई पर उसके किसी परत में भी कुछ न मिला, उल्का धँसने पर जमीन में गड्ढा होना चाहिए सो भी कहीं न था।

एक और विशेष बात देखी गई कि पूरे ताइना प्रदेश की जमीन पर राख फैली पड़ी थी और उसमें रेडियो सक्रिय तत्व बड़ी मात्रा में मौजूद थे। उल्काओं में ऐसे तत्व कभी नहीं होते।

वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि जमीन से 3 मील ऊपर अति शक्तिशाली हाइड्रोजन बम जैसा विस्फोट हुआ है। पर यह हुआ कैसे? किया किसने? बम बना कहाँ? आया कहाँ से? उस समय तक संसार में विज्ञान की जो स्थिति थी, उसमें इस प्रकार के अणु बम बनने की कतई सम्भावना नहीं थी।

रूसी वैज्ञानिकों के अग्रणी एलेक्जेंडर काजनसोव ने सन् 1959 में अपना प्रतिपादन यह प्रस्तुत किया कि अणु शक्ति से चलने वाला कोई अन्तरिक्षयान धरती पर आया, उतरने की टैक्निक ठीक तरह से न बन पड़ने से यान का आकाश में विस्फोट हो गया। इसके बाद समस्त संसार के वैज्ञानिक यह पता लगाने के लिए प्रयास करने लगे कि क्या अन्य ग्रहों में जीवन है? और क्या वहाँ के निवासी अन्तरिक्षयान बनाने और उन्हें पृथ्वी तक ला सकने में समर्थ हैं?

मानवी बुद्धि सीमित है उसकी जानकारी बहुत समझी जाने पर भी एक प्रकार से अति स्वल्प ही है। ब्रह्माण्ड का विस्तार ही नहीं रहस्य भी इतना बड़ा है कि उसे पूरी तरह समझ पाना भौतिक उपकरणों के आधार पर शायद कभी भी सम्भव न हो सकेगा।

व्यापकता की परिधि को स्पर्श करने वाला माध्यम केवल एक ही आत्मा का साधना समुद्भूत ब्रह्मवर्चस उसे जागृत, परिष्कृत और सूक्ष्म बनाकर उन रहस्यों को भी समझा जा सकता है जो भौतिक उपकरणों और लौकिक चिन्तन तक सीमित बुद्धि के लिए एक प्रकार से सदा रहस्यमय ही बने रहेंगे।

इस ब्रह्माण्ड में पृथ्वी अकेला ही बुद्धिधारी जीवों का ग्रह नहीं है, ऐसे-ऐसे असंख्यों पिण्ड इस विशाल ब्रह्माण्ड से भरे पड़े हैं। उनमें से कितने ही ग्रहों के निवासी हम धरती के मनुष्यों की अपेक्षा अत्यधिक ज्ञान सम्पन्न और साधन सम्पन्न हैं। जिस तरह हम लोग चन्द्रमा पर उतर चुके, सौर-मण्डल के अन्य ग्रहों की खोज के लिए अन्तरिक्ष यान भेज रहे हैं, सौर-मण्डल से बाहर के तारकों के साथ रेडियो संपर्क जोड़ रहे हैं, उसी प्रकार अन्य ग्रहों के बुद्धिमान मनुष्यों का हमारी धरती के साथ संपर्क बनाने, अनुसंधान करने का प्रयत्न चल रहा हो तो उसमें कुछ भी आश्चर्य की बात नहीं है।

अति दूरवर्ती यात्राओं में साधारण ईंधन कारगर नहीं हो सकते उनमें परमाणु शक्ति को ही आधार बनाया जा सकता है। सम्भव है कि अन्य ग्रहों का अन्तरिक्ष यान पृथ्वी से संपर्क स्थापित करने आया हो और किसी गैर-जानकारी और खराबी के कारण वह नष्ट हो गया हो, उसे ही साइबेरिया में हुए अणु-विस्फोट जैसी स्थिति में देखा गया हो।

इससे पूर्व भी ऐसे कितने ही बिखरे हुए प्रमाण मिलते रहें हैं जिनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि किन्हीं ग्रह लोकों के निवासी पृथ्वी पर आवागमन करने में किसी हद तक सफलता प्राप्त भी कर चुके हैं।

सहारा के रेगिस्तान में-सेफारा पर्वत पर ऐसी विचित्र गुफायें पाई गई जिनमें अन्य लोकवासी मनुष्यों की आकृतियाँ थी। प्रो0 हेनरी ल्होत के अन्वेषक दल ने इन विचित्र अवशेषों को देखकर उन्हें विशाल मंगल ग्रही देवता की अनुकृति बताया।

रूस के इटरुस्किया प्रदेश में भी ऐसे ही अवशेष मिले हैं जिनसे अन्य ग्रह निवासियों के साथ पृथ्वी-वासियों का संबंध होने पर प्रकाश पड़ता है।

दक्षिणी अमेरिका की ऐडीज पर्वत माला में चस्का पठार पर ऐसे चमकीले पत्थर जड़े हुए पाये गये हैं जो अन्तरिक्षयानों के प्रकाश से प्रकाशित होकर उन्हें सिग्नल देते रहे होंगे। इसी पर्वतमाला पर एक जगह विचित्र भाषा में कलेण्डर खुदा मिला है। तत्ववेत्ताओं ने इस कलेण्डर में 290 दिन का वर्ष और 24 तथा 25 दिन के महीने प्रदर्शित किये गये हैं। ऐसा वर्ष किसी अन्य ग्रह पर ही हो सकता है।

आस्ट्रिया में सौ वर्ष पूर्व 785 ग्राम भारी एक ऐसी इस्पात नली मिली है जिसे 5 करोड़ वर्ष पुरानी बताया जाता है। तब मनुष्य अपने पूर्वज बंदरों के रूप में था। उस समय तक आग का आविष्कार नहीं हुआ था तब इस्पात कौन ढालता। सोचा जाता है कि यह भी किन्हीं अंतर्ग्रही यात्रियों का छोड़ा हुआ उपकरण है। गोबी मरुस्थल के चपटे पत्थरों पर पाये गये पद चिन्हों की करोड़ों वर्ष पुरानी स्थिति में किन्हीं अन्य ग्रह निवासियों के आगमन की स्मृति आँकी जाती है।

समृद्ध लोकों में समुन्नत प्राणियों के अस्तित्व की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। विज्ञान इसकी शक्यता स्वीकार करता है। अन्य लोकों से आने वाली ध्वनि तरंगों से किन्हीं प्रसारणों को सुना गया है और उनका विश्लेषण हो रहा है।

भौतिक उपकरण और भौतिक क्रिया-कलाप इस दिशा में किस हद तक कब तक सफल होगा इसे भविष्य ही बतावेगा। पर भूतकाल यह बताता है कि आत्मिक सशक्तता बढ़ाकर उसके आधार पर लोक-लोकान्तर की समुन्नत आत्माओं से न केवल संपर्क ही संभव है वरन् उनके साथ महत्वपूर्ण सहयोगात्मक आदान-प्रदान भी संभव है। स्वर्गलोक वासी देवताओं के साथ मनुष्यों के संपर्क संबंध की पौराणिक गाथाओं में ऐसे ही तथ्य विद्यमान हैं। उस विज्ञान को पुनः समुन्नत करके लोकान्तर व्यापी आत्म चेतना के साथ घनिष्ठता उपलब्ध की जा सकती है और इस प्रकार विश्व बन्धुत्व के लक्ष्य को ब्रह्माण्ड बन्धुत्व तक विकसित किया जा सकता है। साइबेरिया विस्फोट सम्भव है इसी दिशा में अँगुली निर्देश करता हो।


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