प्रेम तो अद्वैत है

April 1972

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एक भक्त देवता के मन्दिर में गया। द्वार खटखटाया प्रवेश पाने के लिए। देवता उठकर दरवाजे पर आया और पूछा- तुम कौन हो? भक्त ने कहा- मैं हूँ आपका भक्त-प्रेमी।

देवता ने दरवाजा बन्द कर लिया-और कहा इस मन्दिर में दो के लायक जगह नहीं है। यहाँ ‘मैं’ और ‘तू’ दो नहीं रह सकते। कुछ दिन बाद वह भक्त फिर आया।

द्वार खटखटाया। देवता फिर आया और उसी तरह पूछा-तुम कौन हो। भक्त ने कहा-’तू’ देवता ने भक्त को छाती से लगा लिया और कहा-प्रेम तो अद्वैत है। वहाँ तो एक होकर ही रहा जाता है।


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