मनुष्य की आन्तरिक स्थिति उसकी त्वचा को देखकर जानी जा सकती है। इस तथ्य का निर्धारण हो जाने के उपरान्त अब इस विज्ञान की शोध का एक विशेष क्षेत्र मान लिया गया है और इस संबंध में विस्तृत अनुसंधान आरम्भ हो गया है।
त्वचा देखकर शरीर की अन्तःस्थिति और मन की गुत्थियों को समझने के विज्ञान का नाम है-”टुर्माटाग्लिफिक्स” इस विद्या के आधार पर इस प्रकार के परीक्षणों में एक और नई महत्वपूर्ण कड़ी जुड़ जायगी। आगे रक्त, मूत्र, मल, आदि परीक्षणों का झंझट कम हो जायगा और अपेक्षाकृत अधिक अच्छी तरह सही जानकारियों को प्राप्त कर सकना संभव हो जाएगा।
मिनि थायोलिस (मिनेसटा) के नाड़ी विशेषज्ञ डॉक्टर मिल्टन आल्टर और उनके सहयोगी डॉक्टर शुलन वर्ग ने इस संदर्भ में लम्बी खोज की है और शरीर की आंतरिक स्थिति का सही पता लगाने में अद्भुत सफलता पाई है।
जिन अंगों की त्वचा पर इस प्रकार के लक्षण अधिक स्पष्ट उभरते हैं उनमें हथेलियाँ, हाथों, के पोरवे, तलवे, और पैरों की उँगलियाँ मुख्य है। उनको शारीरिक और मानसिक स्थित के कारण कई तरह के उतार चढ़ाव-गड्ढे तथा टीले उभरते दबते रहते हैं। झुर्रियाँ और सलवटें पड़ती मिटती रहती हैं कोमलता और कठोरता में चमक और रुक्षता में अन्तर आता रहता है।
उपरोक्त शरीर शास्त्रियों का कहना है कि मोटे तौर से हथेलियों, तलवों, और उनकी उँगलियों में समय का अन्तर होने पर भी कोई खास अन्तर दिखाई नहीं पड़ता पर वाटी की से निरीक्षण करने पर उनमें बराबर हेर-फेर होता रहता है। यह परिवर्तन मनुष्य की वर्तमान और भावी स्थिति की सम्भावना को बहुत कुछ स्पष्ट करता है।
हस्त रेखा विज्ञान के पीछे सम्भवतः यही आधार रहा होगा। प्रणाम आशीर्वाद की प्रक्रिया अंग स्पर्श द्वारा समर्थ और दुर्बल व्यक्तियों के इन अंगों में रहने वाली महत्वपूर्ण संवेदनशीलता का आदान-प्रदान भी संभव है, एक बड़ा कारण रहा है।