जागरुक ही इस जीवन अनुष्ठान में जागृत रहते हैं

April 1972

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एक संत दस शिष्यों समेत सघन वन में रहते थे। एक रात्रि को उनने एक विशेष साधना कराई। शिष्यों को पंक्तिबद्ध होकर ध्यान करने के लिए बिठा दिया।

रात्रि के तीसरे प्रहर गुरु ने धीमे से आवाज दी-राम। राम उठा गुरु ने उसे चुपके से दुर्लभ भी सिद्धि प्रदान की। अब दूसरे की बारी आई। पुकारा श्याम। पर श्याम सो रहा था। इस बार भी राम ही आया और दूसरी सिद्धि भी लेकर चला गया।

शेष सभी शिष्य सो रहे थे। गुरु को उस दिन दस सिद्धियाँ देनी थी। सोते को जगाने का निषेध था। दसों बार राम ही आया और एक-एक करके दसों सिद्धियाँ प्राप्त करके कृत-कृत्य हो गया। सोने वाले दूसरे दिन जागे। वे पछताये तो, पर यह भी समझे कि जागरुक ही इस जीवन अनुष्ठान में जागृत रहते हैं। भगवान की पुकार सुनते हैं और धन्य हो जाते हैं।


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