एक अनपढ़ किसान ने अपने गुरु से दीक्षा ली। गुरु ने मन्त्र दिया-’ॐ लक्ष्मी पतये नमः’ किसान ने भक्ति और निष्ठा के साथ इसी मन्त्र का जप आरम्भ कर दिया किन्तु अनपढ़ होने के कारण वह मूल मंत्र भूल कर ‘ॐ लछमनये मयः ‘जप करने लगा। एक दिन भगवान विष्णु लक्ष्मी के साथ उधर से विचरण करते हुए निकले, अशुद्ध जप करते देख लक्ष्मी जी किसान के पास जाकर पूछने लगीं-तुम किसका जप कर रहे हो, किसान मुँह से शब्द तो रट रहा था पर ध्यान में उसे बस रहे थे भगवान। उसे लक्ष्मी जी के शब्द सुन न पड़े। लक्ष्मी जी के कई बार टोकने से उसका ध्यान भंग हो गया-खीझकर किसान ने उत्तर दिया-तुम्हारे पति का ध्यान कर रहा हूँ बोलो क्या करोगी?
लक्ष्मी जी अपने स्वामी की भक्ति से बड़ी प्रसन्न हुई और किसान को धन धान्य से परिपूर्ण कर दिया। नारद जी ने भगवान से एक दिन इसी प्रसंग का विवरण देकर लक्ष्मी जी की शिकायत की तो भगवान बोले-नारद हमारे यहाँ शब्द जाल का उतना महत्व नहीं जितना भावना का। किसान की भावना निर्दोष थी फिर उसे लक्ष्मी जी ने वरदान दिया तो क्या हुआ।