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April 1972

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कितना सुन्दर जीवन हो यदि मनुष्य को इस बात का विश्वास हो जाय कि मानव जीवन की मूल सत्ता में आनन्द है। -अज्ञात

परमेश्वर के प्रेम में न्यूनता ढूँढ़ना व्यर्थ है। अपनी दयनीय स्थिति के लिए दैव को दोष देना निरर्थक है। देखने के-सोचने के उलटे तरीके को बदलें। आत्मा और परमात्मा की सघनता को समझें, उसकी तरह सोचें और उसके इशारे पर चलें तो वह हमारा हो जाय।

परमेश्वर का प्रसाद हम निरन्तर पा रहे हैं, उसे देख सकें तो उसे पाने के लिए व्याकुलता भी जग पड़े। इस महान जागरण में ही मानव जीवन की सार्थकता सन्निहित है।


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