यह संसार जितना विस्तृत है उसके रहस्य उससे भी अधिक गहन हैं। हमें उन रहस्यों को समझने के लिए मस्तिष्क खुला रखना चाहिए और तथ्य एवं प्रमाणों के आधार पर जो भी सत्य सिद्ध हो उसे स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
जो हम जानते या मानते हैं सर्वांगपूर्ण नहीं है। अभी उसमें सुधार और परिष्कार की बहुत गुंजाइश है। यह क्रम अनन्त काल तक चलता रहेगा क्योंकि मनुष्य की बुद्धि का क्षेत्र और विकास का क्रम बढ़ते रहने पर भी उसमें अपूर्णता बनी ही रहेगी। प्रकृति की परिधि निस्संदेह मनुष्य की समझ से कहीं अधिक बड़ी है। इसलिए बौद्धिक विकास के साथ-साथ नवीन तथ्यों के सामने आने और नवीन रहस्यों का उद्घाटन होने का सिलसिला बना ही रहेगा।
किसी समय मनुष्य ने आत्म-विज्ञान पर बहुत ध्यान दिया था और प्रयत्न करके अनेक ऐसी उपलब्धियाँ प्राप्त की थीं, जिन्हें आज अद्भुत और आश्वस्त समझा जाता है। आज भौतिक विज्ञान पर ध्यान दिया गया है और ऐसी उपलब्धियाँ प्राप्त की गई हैं जो प्राचीन काल के लोगों की दृष्टि में अद्भुत और आश्वस्त समझी गई होंगी। आज से हजार वर्ष पूर्व का मनुष्य यह विश्वास करने को शायद ही तैयार होता कि भविष्य में रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, रेल, मोटर, वायुयान, कम्प्यूटर, अणु आयुध जैसे आविष्कार सम्भव हो जायेंगे। जब वो वस्तु सामने होती है उसे सामान्य कहते हैं और जिसका प्रचलन नहीं है उसी को अद्भुत और अविश्वस्त मानते हैं।
आध्यात्मिक अन्वेषणों, रहस्यों और उपलब्धियों के बारे में भी यही बात है। इस प्रकार के प्रसंग जब सामने आते हैं तो उन अलौकिकताओं को आश्वस्त ठहरा दिया जाता है। किम्वदन्तियों और दन्त कथाओं का प्रचलन अधिक हो जाने से ऐसा अविश्वास उचित भी है। किन्तु हमें आग्रही नहीं होना चाहिए और तथ्यों के आधार पर अपनी मान्यताओं में हेर-फेर करने की कोमलता मस्तिष्क में बनाये रखनी चाहिए।
भौतिक वैज्ञानिकों द्वारा प्रकृति के अन्तराल में छिपे हुए नित नये रहस्यों का उद्घाटन होता रहता है। आत्मिक-विज्ञान की दिशा में भी यदि वैसा ही अन्वेषण परीक्षण चल पड़े उस दिशा में भी प्रयोग के लिए उत्साह उत्पन्न हो जाय तो ऐसे तथ्य सामने आ सकते हैं जो आज समझ में नहीं आते किन्तु कल उन्हें सिद्धान्त घोषित किया जा सकता है।
अन्वेषण के लिए ऐसा व्यापक क्षेत्र खाली पड़ा है। फिलीपीन के एक तान्त्रिक की ऐसी ही एक उपलब्धि साप्ताहिक ‘धर्म-युग‘ में छपी है। उससे प्रतीत होता है कि संसार में ऐसी रहस्यमय शक्तियाँ भी विद्यमान हैं जिनको यदि सर्वसाधारण के लिए उपलब्ध किया जा सके तो मानवीय कष्टों की निवृत्ति में महत्वपूर्ण योगदान मिल सकता है। घटना इस प्रकार है-
फिलीपीन में एक आश्चर्यजनक चिकित्सक है-टोनी एप गोआ। उसकी चिकित्सा प्रणाली इस युग के चिकित्सा शास्त्रियों को अचरज में डालती है। वे उसे देखने जाते हैं उसकी प्रणाली देखते हैं, तो चकित रह जाते हैं पर समझ नहीं पाते कि उसका कारण क्या है और यह सब कैसे सम्भव होता है।
27 वर्षीय तान्त्रिक टोनी चिकित्सा व्यवसाय करता है। मुख्य रूप से वह शल्य चिकित्सक है। ट्यूमर, केन्सर, मोतियाबिन्द के आपरेशन करता है और विकृत माद्दा शरीर में से निकाल कर बाहर रख देता है। उसके पास न चाकू है न कैंची न सुई फिर भी ऑपरेशन करते रहना एक अद्भुत काम है। जो जादू जैसा प्रतीत होता है।
टानी क्लेजन के कुवाओं इलाके में दो मंजिल मकान में रहता है। ऊपर अपने परिवार सहित खुद रहता है नीचे उसका अस्पताल है। विभिन्न रोगों से ग्रस्त आपरेशन योग्य रोगी ही उसके पास आते हैं, उन्हें वह एक मेज पर लिटाता है मन्त्र पढ़ता है। चाकू का काम उसका हाथ करता है। काटने-फाड़ने चीरने की क्रिया वह उंगली से करता है। ट्यूमर, केन्सर, गाँठ, मवाद आदि को भीतर से निकाल कर बाहर रख देता है। इसके बाद वह बिना सुई के घाव को जोड़ देता है। इस बीच उसका चचेरा भाई एल्फ्रेडो उसको साथ रहता है और तौलिया देने-चीजें उठाने जैसे काम करता रहता है। थोड़ा खून तो निकलते देखा जाता है पर रोगी को दर्द जरा भी नहीं होता और आपरेशन ठीक और सम्पन्न हो जाता है। प्रतिदिन ऐसे 10 से लेकर 20 तक आपरेशन उसे करने पड़ते हैं।
रोगियों की-प्रशंसकों की भारी भीड़ उसे घेरे रहती है। पहले वह फिलीपीन की राजधानी मनीला में रहता था। ख्याति के साथ-साथ भीड़ बढ़ी तो उसने वह स्थान छोड़ दिया। नई जगह में उसने नाम का बोर्ड आदि कुछ नहीं लगाया है तो भी लोगों ने वहाँ का पता लगा लिया और रोगी वहाँ भी पहुँचते हैं। जो आधुनिक आपरेशनों से सम्भव है वह कर देने का दावा टोनी भी करता है। उसकी चिकित्सा विधि देखने डॉक्टर वैज्ञानिक आते हैं और सारे क्रिया-कृत्य के फोटो फिल्म ले जाते हैं पर इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाते कि यह असम्भव दीखने वाली बात सम्भव कैसे हो पाती है।
टोनी सपगोआ अपने इस कार्य का श्रेय किसी देवता को देता है। कहता है-उसका ‘अद्भुत रक्षक’ जो कराता है वही करता है। आपरेशनों में वही उसके साथ रहता है और सहायता करता है। इसके अतिरिक्त उस देवता के बारे में वह कुछ अधिक नहीं बताता।
मियामी फ्लोरिडा के वेल्क पेरा साइकोलॉजी रिसर्च फाउण्डेशन के प्रतिनिधि डॉ0 बनर्जी वहाँ गये। यह सब देखा-क्रिया-कलाप के फोटो भी लाये पर इस निष्कर्ष पर न पहुँच सके कि यह सब कैसे और क्यों कर संभव होता है?
क्या मनुष्य के भीतर ऐसी अद्भुत शक्तियाँ हैं जिनसे वह मानवीय कष्टों के सरल करने की जटिल प्रक्रियाओं को सरल कर सके? क्या कोई अदृश्य शक्ति और आत्माएं विद्यमान हैं जो इस प्रकार के कार्यों में मनुष्य का सहयोग कर सकें? क्या अतींद्रिय विज्ञान और गूढ़-विद्या में ऐसी संभावनायें विद्यमान हैं जो मनुष्य की वर्तमान क्षमता में अधिक वृद्धि कर सकें और उसे अधिक सुखी एवं सफल बना सकें ? इन प्रश्नों का समाधान ढूँढ़ने के लिए हमें अपना मस्तिष्क खुला रखना चाहिए। फिलीपीन जैसी घटनायें प्रायः हर देश में समय-समय पर उपलब्ध होती रहती है। हमें बिना अन्ध-विश्वासी और अविश्वासी बने तथ्यों का अन्वेषण करना चाहिए।
उपेक्षित और लुप्त प्रायः आत्म-विज्ञान को यदि अन्वेषण और प्रयोगों का क्षेत्र मान लिया जाय और उसके लिए भौतिक विज्ञानियों जैसी तत्परता बरती जाय तो अगले दिनों ऐसे अनेक उपयोगी रहस्य उद्घाटित हो सकते हैं जो भौतिक आविष्कारों से भी अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकें।