शक्ति की कमी सूर्य पूरी करेगा

April 1972

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शक्ति की पग-पग पर आवश्यकता होती है। वैयक्तिक जीवन विकास से लेकर कल कारखाने चलाने तक विविध प्रयोजनों के लिये पग-पग पर शक्ति की जरूरत पड़ती है अशक्त व्यक्ति को तो हर प्रकार से पराश्रित रहना पड़ता है; यदि सामर्थ्य और भी अधिक घट जाय तो भोजन पचाना और मल विसर्जन करना भी कठिन हो जाता है तब दूसरों की सहायता से भी कुछ काम नहीं चलता।

कृषि, उद्योग, मजूरी आदि कार्यों द्वारा आजीविका उपार्जित की जाती है इन्हें करने वालों में शारीरिक मानसिक क्षमता भी होनी ही चाहिए इसके अतिरिक्त यंत्र वाहन आदि के चलाने में भी शक्ति के आधार ढूँढ़ने पड़ते हैं। शरीर से ही सब कुछ नहीं हो जाता, उपकरणों को गतिशील करने के लिए पहले बैल घोड़ा आदि की पशु शक्ति काम में लाई जाती थी अब भाप, बिजली, तेल, अणु आदि से वह काम लिया जाने लगा है।

बढ़ते हुए उत्पादन के लिए शक्ति की अधिकाधिक मात्रा में जरूरत पड़ने लगी है। तेल, कोयला आदि साधन सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं। बढ़ती हुई माँग वे पूरा न कर सकेंगे और कुछ ही दिन में समाप्त हो जायेंगे तब हमें अन्य प्रकार के ऐसे ईंधन की जरूरत पड़ेगी जो भारी खर्चीला न हो तथा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो सके। इस संदर्भ में अणु शक्ति की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान गया है। प्रयत्न भी हो रहे हैं पर भारी कठिनाई यह है कि अणु भट्टियों में निकली हुई राख को कहाँ फेंका जाय। समुद्र में फेंका जाय या जमीन में गाड़ा जाय हर हालत में संकट उत्पन्न होगा। समुद्र में फेंकने पर उसका जल विषाक्त होता है, उस जल को लेकर बरसने वाले बादल संकट उत्पन्न करते हैं। जमीन की गड़ी हुई वह राख भी चुप बैठने वाली नहीं है। जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट करेगी और उगी हुई वनस्पति में तना खोद कर निकाली गई धातुओं में वह प्रभाव आवेगा। किसी कारणवश अणु भट्टी फूट पड़े तो उससे फैला हुआ विकरण व्यापक क्षेत्र में विनाश उत्पन्न करेगा। फिर अणु शक्ति उत्पन्न करने वाला ईंधन भी सीमित ही है। सदा तो वह भी काम नहीं दे सकता।

ऐसी दशा में सूर्य ही एकमात्र ऐसा शक्ति केन्द्र रह जाता है जिसके अनन्त शक्ति भण्डार में से अपने लिये आवश्यक ऊर्जा अभीष्ट मात्रा में सरलता पूर्वक ली जा सकती है और उससे उद्योग उत्पादन से लेकर परिवहन तक के विभिन्न कार्य एवं यंत्र चलाये जा सकते हैं। निकट भविष्य में सूर्य ही धरती की आन्तरिक शक्ति की आवश्यकता को पूरी करेगा।

ऊर्जा के स्रोत की समस्या के निराकरण का उपाय बताते हुए डॉ0 फ्रायलच लिखते हैं कि समस्त सौर मण्डल में दिखाई दे रही ऊर्जा जनित सक्रियता का एकमेव आधार और स्रोत सूर्य है। पिछले दिनों कुछ उपग्रह और चन्द्रयान छोड़े गये तब यह बात स्पष्ट हो गई कि सूर्य की ऊर्जा को विद्युत शक्ति में बदला जा सकता है। इन उपग्रहों में जो विद्युत संस्थान काम करता है उसके लिए लगे बिजली के सेलों की क्षमता बहुत सीमित है पर ऐसा प्रबन्ध किया गया है कि वे आकाश में सूर्य की गर्मी से बार-बार चार्ज होते हैं और इस प्रकार विद्युत-सप्लाई को शिथिल नहीं पड़ने देते।

जबकि सेल चार्ज हो सकते हैं बड़े-बड़े बिजली घरों, कल कारखानों के लिए भी विद्युत शक्ति का विपुल मात्रा में सूर्य से उत्पादन किया जा सकता है उसके लिए इंजीनियर लोग ऐसे जनरेटरों के निर्माण की दिशा में तत्पर हैं जो सूर्य की ऊर्जा को सीधे विद्युत शक्ति में बदल सकें।

डॉ0 फ्रायलच के इस सिद्धान्त की समीक्षा में ही वह सत्य भी उभर कर सामने आया जिसका प्रतिपादन इन पंक्तियों में किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि ऐसी ही शक्ति मनुष्य के शरीर में भी है व्यक्तिगत आवश्यकता के छोटे-छोटे काम तो इस बिजली से भी चलाये जा सकते हैं। उदाहरण के लिए टार्च का काम, पढ़ने के लिए प्रकाश का बैटरी खर्च, रेडियो ट्रांजिस्टर आदि के लिए साधारण बिजली की आवश्यकता को अपने शरीर से भी पूरा किया जा सकता है भविष्य में ऐसे “ट्रान्सफार्मर” यंत्र बन सकते हैं जो शारीरिक विद्युत को भौतिक विद्युत में बदल सकें।

तात्पर्य यह कि शरीर में काम करने वाली बिजली सूर्य-ऊर्जा का ही रूपांतर है। फ्रायलच के अनुसार मनुष्य ही नहीं यह क्रिया तो सृष्टि के हर जीव में है। तात्पर्य यह कि सूर्य ही सीधे-सीधे प्राण-प्रदाता है सृष्टि के जीवन जगत का। अब केवल मात्र प्रश्न यह है कि उस ऊर्जा को विद्युत में बदला कैसे जाए?

भौतिक यंत्रों के लिए विद्युत उत्पादन के लिए लेन्स या कोई उपकरण प्रयुक्त हो सकते हैं पर शरीर को प्राण विद्युत से भरने का माध्यम मन ही है। मन एक प्रकार से दो विजातीय वस्तुओं में सम्बन्ध स्थापित करने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंग है यह बात अमेरिका के सुप्रसिद्ध फोटोग्राफर, टेडसेरियस तथा जोहान्स ने सिद्ध कर दी है। टेडसेरियस कल्पना का फोटोग्राफ कैमरे में उतार देने वाले जादूगर के रूप में विख्यात हैं वे न केवल वर्तमान वरन् अतीत के भी फोटो कैमरे में उतार देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि हर वस्तु में विद्युत है मन एक प्रकार से ट्रान्समीटर और रिसीवर दोनों का काम कर सकता है तब फिर सूर्य के मानसिक ध्यान द्वारा सूर्य ऊर्जा को विद्युत में रूपांतरित करने और उससे अपने शरीर में प्राणवान बनाने की प्रक्रिया को भी एक महत्वपूर्ण विज्ञान मानना चाहिए।

अगले दिनों मनुष्य को शारीरिक श्रम की अपेक्षा बौद्धिक श्रम अधिक करना पड़ेगा। उसके लिए ऐसे शक्ति स्त्रोत की आवश्यकता पड़ेगी जो प्रचुर श्रम करने योग्य सामर्थ्य मस्तिष्क को प्रदान करता रह सके। शरीर को अपना क्रिया कलाप जारी रखने और आजीविका उपार्जन के लिए जो शक्ति खर्च करनी पड़ती है उसकी पूर्ति अन्न, जल तथा वायु से हो जाती है। रस, रक्त, माँस, मज्जा आदि की आवश्यक मात्रा आहार में मिल जाती है पर चिन्तन का समय और स्तर यदि बढ़ा-चढ़ा हो तो उसके लिए अन्न से उत्पन्न होने वाला रक्त ही पर्याप्त नहीं उसे दूसरे किस्म की अतिरिक्त खुराक चाहिए जो मस्तिष्कीय सचेतन केन्द्रों की आवश्यकता पूरी करते रह सकें। यह इसलिए भी आवश्यक होगी कि शारीरिक श्रम घट जाने के कारण पाचन अंग शिथिल होंगे। खुराक थोड़ी खाई जा सकेगी फलस्वरूप उससे किसी स्वल्प मात्रा में बनेगा। वह मुश्किल से उतना होगा जिससे शरीर के दैनिक क्रिया कलाप चल सकें। मस्तिष्कीय कार्यों के लिए इस प्रकार एक और कठिनाई उत्पन्न हो जायगी।

उस कमी को पूरा करने के लिए भी सूर्य का ही आश्रय लेना पड़ेगा। भौतिक विज्ञानी इतना ही सोच और कर सकते हैं कि सूर्य से बिजली के स्तर की ऊर्जा प्राप्त कर लें। मस्तिष्कीय और चेतनात्मक शक्ति की अभीष्ट


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