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April 1972

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उद्देश्य को यदि आरम्भ से ही साधना के पथ पर थोड़ा-थोड़ा प्राप्त न करते रहें, तो इस दीर्घ अराजकता के अवकाश में साधना ही सिद्धि के स्थान पर अधिकार जमा लेगी, शुचिता को ही अन्तिम प्राप्ति समझ लेंगे और अनुष्ठान ही देवता बन जायगा।

-रवींद्र नाथ टैगोर

मात्रा प्राण के रूप में कैसे प्राप्त की जाय? यह साधना विज्ञान का विषय है। सूर्योपासना इसी प्रयोजन को पूरा करती है, उससे आहार द्वारा स्वल्प मानसिक शक्ति के झंझट से बचकर अभीष्ट मात्रा में सूर्य से मस्तिष्कीय शक्ति प्राप्त की जा सकती है। उतना ही नहीं, ओजस्, तेज और वर्चस्व भी इतना मिल सकता है जिससे व्यक्तित्व को हर दिशा में तेजस्वी और प्रतिभावान बनाया जा सके। सूर्योपासना एक विशुद्ध विज्ञान है जिससे मानव जीवन की अगणित आवश्यकता पूरी कर सकने योग्य सशक्तता प्राप्त होती है। गायत्री मंत्र द्वारा सूर्य शक्ति का आह्वान करके हमारे पूर्वज अपने व्यक्तित्व को सर्व समर्थ बनाये रहने में सफलता प्राप्त करते रहे। हमारे लिये भी उस पथ का अनुसरण श्रेयस्कर ही होगा।


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