सत्य दर्शन (kavita)

August 1970

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मानव-मानव ममतामय हो, जग जन-जन से नेह निबाहें,

जिससे जग-जीवन सार्थक हो, हिलमिल अपनाये शुभ राहें।

साथ-साथ सब चल न सको यदि, अलग-अलग सद्पथ अपनाओ,

पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।

(2)

भौतिक-सुख परित्याग श्रेष्ठजन, आध्यात्मिक साधन के द्वारा,

अपनी-अपनी आत्म-शक्ति से, करते हैं प्रकाश-विस्तारा।

भव्य-भावना भर न सको यदि, नहीं कुतर्कों में भरमाओ,

पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।

(3)

नर-तन रत्न न फिर-फिर संभव, इसकी परम प्रभा प्रकटाओ,

योनि-योनि के संस्रति-क्रम का, अंत करो, शुभ सद्गति पाओ।

उपकारों को कर न सको यदि, जग से कर अपकार न जाओ,

पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।

(4)

जग में जितना, जो कुछ करना, उसका अपना नियम बनालो,

मन में मित्र-भावनायें भर, परहित-सेवा को अपना लो।

दलित-दीन-दुःख हर न सको यदि, विपदाएँ उन पर मत ढाओ,

पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।

(5)

जग से जितना लो उतना ही, उसको दे देना समुचित है,

है सिद्धाँत यही युग-युग का, ऋण का रखना नहीं उचित है।

समय, शक्ति, सहयोग न दो यदि, जन-जन को मत दुःखी बनाओ,

पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।

(6)

वित्त-विशेष और बल, वैभव, अन्त समय में साथ न जाते,

दया, दान दोनों लोकों में, नर-जीवन को सफल बनाते।

सुखद शाँत, सन्तोष न दो यदि, असन्तोष में मत भटकाओ,

पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।

(7)

उठो, चलो, गिर-गिरकर संभलो, बढ़ो, विवेकी बनो, बनाओ,

भरसक भक्ति-भावना भर-भर, प्रमुदित प्रभुवर के गुण गाओ।

यदि परहित कुछ कर न सको जग, मग में मत रोड़े अटकाओ,

पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।

(8)

तर्क उठाकर विविधवाद के, चंचलता मन में मत लाओ,

भारतीय दर्शन का उत्तम, आत्मवाद निज लक्ष्य बनाओ।

बुद्धिवाद से पा न सको यदि, शाँति, सत्य-दर्शन में पाओ,

पथ पर पुष्प बिछा न सको यदि, उस पर नहीं बबूल बिछाओ।

-गौरीशंकर द्विवेदी ‘शंकर’

*समाप्त*


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